मेरे और तुम्हारे बीच बस प्रेम हो और कोई अंक नहीं।
मैं नहीं चाहती हम प्रेम को अंको में बांटे,
फिर भी यदि कभी इसे संख्या देनी हो,
तो शून्य का देना।
जहां से सब शुरू और सब ख़त्म होता है।
प्रेम तो प्रेम है ना,
मैं नहीं मानती प्रेम में
पहला, दूसरा, आखरी जैसा कुछ भी होता है।

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Hindi Poem by Nidhi shree : 111855764

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