गुड़गांव
एक बार फिर जिंदगी छाँव तक ले आई
ये उम्मीद बीच लहरों से नाव तक ले आई
सुना था उनको चलाने वाली भी जिंदगी थी
मै फिसला तो ये जिंदगी पाँव तक ले आई
छोड़ कर शहर एक दम से थम सा गया था
फिर मेरी जिंदगी मुझे मेरे गाँव तक ले आई
सिलसिला ता-उम्र चलता रहेगा लेखन का
भले ही जिंदगी अभी गुड़गांव तक ले आई
ज्योति प्रकाश राय
-Jyoti Prakash Rai