"आखिर कब तक"

ये चुप्पी बेबसी... घुटन... लिहाज

आखिर कब तक ??? मानसिक अंतर्द्वंद की स्थिति,

समाज की परिस्थिति, क्यों पहुँचती, नहीं एक चरम बिंदु पर ? वो बिंदु जहाँ लालफीताशाही न हो,अकर्मण्यता न हो रूढिवादिता न हो, विचारशून्यता न हो, संवेदनशून्यता न हो,किंतु ये परिवर्तन होगा आखिर कब तक ?

जब दावेदारियों का दौर खत्म होगा और जिम्मेदारियों का दौर शुरू होगा, परंतु समाज की मनोवृत्ति तो देखिए "आखिर मैं ही क्यों" ऐसा इसलिए क्योंकि यहाँ कतराते है लोग हस्तक्षेप से,

आरंभ से पूर्व परिणाम निकाल लेते है, परंतु क्या पता तुम्हारी पहली ही कोशिश सफल होकर कब आखिरी बन जाए, किंतु इस कलियुग में दुर्योधन से लड़ने कृष्ण बने कौन ?

नारें तो खूब लगा लेते हो कि "हम एक हैं" किंतु माफ किजिएगा हुजुर, जब मुसीबत बगल के घर में भी आये तब क्यों आह भरकर रुक जाते हो? क्यों उनके कंधे पर हाथ रखकर नहीं कहते कि "हम एक हैं"



आखिर कब बंद होगा सरकारी फाइलों पर भार रखना?
क्यों इस रावण को खत्म करने कोई राम सामने नहीं आता? अब लांग भी दो इस गुनाहों की दहलीज को,
और ग्रह प्रवेश कर दो एक नवयुग में,
जहां फैल जाए रोशनी नवीन विचारों के सूर्य की,
किंतु आखिर कब?

(written by kaushalya bhati)


This is my second poem if you liked my post then i will motivate thank u

Hindi Poem by Kaushalya : 111875218
Shikha 5 months ago

बहुत सुंदर लिखा है आपने 👌👌

vi wazir 11 months ago

सही बात है.... दुनिया को दिखाने का व्यवहार और अपने भीतर का व्यवहार बहुत अलग रखते हैं यह लोग....

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