अजिब लोग थे वो तितलियां बनाते थे
सममुद्रों के लिए सीपियां बनाते थे
वही बनाते थे लोहे को तोड कर ताला
फिर उस के बाद वही चाबियां बनाते थे
मेरे कबीले में तालीम का रिवाज न था
मिरे बुजुर्ग मगर तख्तियां बनाते थे
फिजुल वक्त में वो सारे शीशागार मिल कर
सुहागिनों के लिए चुडियां बनाते थे
लियाकत जाफ़री
🙏