मैं और मेरे अह्सास

किसी के कंधे पर सर रखकर रोने के लिए l
दोस्त ही बनालो तन्हा रोने से क्या होगा?

जो भी है यही लम्हे है खुशी से जीने को l
प्यार को जतालो तन्हा रोने से क्या होगा?

ना जाने कब जीवन की शाम ढल जाए तो l
रूठे को मनालो तन्हा रोने से क्या होगा?

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

Hindi Poem by Darshita Babubhai Shah : 111927594

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