छटपटाते मन के भीतर का शोर


खंबो और कस्बों में जलती भूकभुकाती बल्ब
अटकी जीवन मध्य यार्थात और कल्प
अर्ध रात्रि स्वानो के स्वरों का विलाप
सुनाई देती सिर्फ झिंगुरों और सांसों की आबाज
पत्तो की सरसराहट
पवनो की थपथपाहट
है सन्नाटे में पसरा अंधेरा चारो ओर
मन की छटपटाहट
और छटपटाते मन के भीतर का शोर
एकांत मन का सवाल
कुछ टूटा कुछ बिखरा सा जवाब
अकेलेपन की घबराहट
मिटती नहीं अकुलाहट

✍️रिंकी उर्फ़ चंद्रविद्या

Hindi Poem by चंद्रविद्या चंद्र विद्या उर्फ़ रिंकी : 111927870

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