आतंकवाद - मज़हब ए धर्म
कहते नहीं थक रहे हैं जो लोग, होता नहीं कोई आतंकवाद का धर्म,
सही ही तो कह रहे हैं ना , होता है अगर आतंकवाद का धर्म तो ,
ना चलाते यूँ ही किसी निहत्थे पर गोली,
ना पूँछते ही किसी का वो धर्म,
जानकर हिंदू ना ही ठोंकते सीने में गोली,
ना करते पक्षपात कोई मौत के चुनाव में ,
ना ही बाँटते इंसानियत को क़लमों के ज्ञान में ,,
धर्म के नाम पर जो कर रहे यह उत्पात हैं ,
शायद उनकी ना बल ही ना बुद्धि में विकास है ,
आकाओं के इशारों में यह जो खून बेगुनाहों का बहा रहे ,
क्या यही लिखा है उनके धर्म ग्रंथों में , यह जो सबको बता रहे ,
कैसे तुम कायरों की भाँति वार छिपकर कर रहे ,
है तुझमें जिगरा ही तो क्यूँ मुंह छुपाए फिर रहे ,
हिम्मत है अगर तुममें तो ,आओ सामने,
क़बूलो गुनाह अपना या लड़ो, और खाओ सीने में गोली,,,