BHAGWAN JI KA TAX
आओ भाई तुमको सुनाए
सच्चाई इस दुनिया की
अपनी तो औकात नहीं
तुम्हारी हमको पता नहीं
भगवान को कोसते हो दिन रात
सांसों पर गर टैक्स होता
तो क्या होता
तो पड़ा बिस्तर पे होता
कोई पड़ा ऑफिस मै
कोई पड़ा सड़क पे होता
कोई गंदे नाले मै होता
ची ची कर के चिल्लाते
रिचार्ज करो जल्दी से
फट गई मेरी आँखें भगवान
अब माफ तू कर दे
अब माफ तू कर दे
ना बोलूंगा उल्टा सीधा
बोलूंगा ना उल्टा सीधा
अब माफ तू कर दे
बस एक बार बस एक बार
भगवान जी भी मान गए
भगवान जी भी मान गए
पर बंदे उसके चालू है
चालू है उस के बंदे
फिर से की बदमाशी
बदमाशी की फिर से
भगवान जी को गुस्सा आया
और बोला सूरज को
सूरज को बोला
अब से तेरी हो गई छुट्टी
संडे मै अब तू
मना अपनी छुट्टी
होना क्या था
चारों ओर अंधेरा
मर गए मर गए मर गए
मर गए मर गए मर गए
बस अब की बार बचा ले
बचा ले बस अब की बार
मानूंगा तेरी हर बात
बस अब की बार बचा ले
गर पानी पे होता टैक्स
तो क्या होता
तो क्या होता
नदी नाले सब सुख गए
सूख गए सब नदी नाले
पानी पानी पानी
पानी पानी सब चिल्लाए
बोले अब भगवान जी के दूत
और करो पानी को वेस्ट
नहीं सुनी जाएगी कोई बात
भाड़ में जाओ तुम सब लोग
गुस्सा है भगवान जी
भगवान जी है गुस्सा
पर बंदे है बहुत चालू
फिर वही रोना धोना
फिर वही रोना धोना
मै भी मानू, तुम भी मानो
बात ऊपर वाले की
वरना वो हो जाएगा
जो सोचा नहीं ख्यालों मै
जो सोचा नहीं ख्यालों मै ।
लेखक
सुहेल अंसारी (सनम)
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