**ग़ज़ल — "तेरा ज़िक्र जब भी आता है..."**
तेरा ज़िक्र जब भी आता है,
दिल में इक शोर सा मच जाता है।
तेरी आँखों की जो रवानी है,
जैसे दरिया कोई बह जाता है।
मैं तो ख़ामोश रहूं फिर भी,
मेरा चेहरा सब कह जाता है।
रात भर जाग के तुझको सोचा,
चाँद भी देख कर शरमाता है।
तेरे लब की हँसी की ख़ातिर,
हर ग़म दिल से बहल जाता है।
तेरे एहसास की गरमी से,
सर्द मौसम भी पिघल जाता है।
तू जो छू ले तो लगे जैसे,
हर ज़ख़्म अपना भर जाता है।
तू नहीं पास तो लगता है,
जैसे हर रंग मुरझाता है।
तेरा आना है जैसे सावन,
जो वीराने को महकाता है।
तू अगर रूठ भी जाए मुझसे,
दिल तुझे रोज़ मनाता है।
तेरी बातों में जो नर्मी है,
वो ही रूह तक उतर जाता है।
प्यार तुझसे कुछ ऐसा है,
जिससे हर दिन नया नाता है।
सुहेल अंसारी (सनम)
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