अगर यक़ीं नहीं आता तो आज़माए मुझे
वो आइना है तो आइना दिखाए मुझे
अजब चराग हूं दिन रात जलता रहता हूं
मैं थक गया हूँ हवा से कहो बुझाए मुझे
मैं जिस की आंखका आँसू था उस ने कद्र न की
बिखर गया हूं तो अब रेत से उठाए मुझे
बहुत दिनों से मैं इन पत्थरों में पत्थर हूं
कोई तो आए जरा देर को रुलाये मुझे
मैं चाहता हूँ कि तुम ही मुझे इजाजत दो
तुम्हारी तरह से कोई गले लगाए मुझे
——-बशीर बद्र
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- Umakant