Hindi Quote in Poem by Sumeit Sahaj

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छूटे धनुष सुत नयन बहाए, हर्ष-शोक मन डोलत जाए।
गुरु-पितु-बंधु सभी सम्मुख खड़े, कौन बाण अब छाती भेदे।
कृपा करूँ या धर्म निभाऊँ, कौन मार्ग अब मैं अपनाऊँ।
मोह मगन मन भयो अधीरा, रण को देख उठी अंधी पीरा॥
धर्म लगे मोहिन अधूरो, मन बोले कर दे सब दूरो।
कंठ बँध्यो, नयन झमकाए, गांडीव हाथ से नीचे जाए।
गांडीव हाथ से नीचे जाए।

क्यों मोह की माया में बंधकर, तू धर्म-पथ से डोलत है
रण का क्षत्रिय पुत्र हो अर्जुन, फिर कायरता क्यों बोलत है
शरीर क्षणिक, ये बंधन क्षीण,ये जनम मरण का मेला है
धर्म पथ पर चलने की,आई अपूर्व यह बेला है
गांडीव उठा, चढ़ा रथपथ पर, आज धर्म की जय होगी
तेरे बाणों की अग्नि से, दुर्योधन की भस्म तय होगी
ना मृत्युभय,ना युद्ध से डर,
बस कर्म कर, बस कर्म कर!

सुमित ‘सहज’

Hindi Poem by Sumeit Sahaj : 111986833
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