Hindi Quote in Book-Review by DHIRENDRA SINGH BISHT DHiR

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“क्या कभी पहाड़ की चुप्पी सुनी है?”
जहाँ कभी बच्चों की किलकारियाँ, माँ की थाली की खनक और खेतों में पिता की हलचल गूंजती थी — आज वहाँ सिर्फ़ नाटा है।

“जब पहाड़ रो पड़े” कोई साधारण किताब नहीं, एक जीती-जागती दस्तावेज़ है उन गाँवों की जो अब मानचित्र पर तो हैं, पर ज़िंदगी से कट चुके हैं। यह उन माँओं की पुकार है जो अब भी दरवाज़े खुले रखती हैं, उन पिता की चुप्पी है जो हर सुबह खेतों में उम्मीद बोते हैं, उन स्कूलों की दीवारें हैं जो अब भी बच्चों की आवाज़ सुनने को तरसती हैं।

ये किताब आँकड़ों की नहीं, आंसुओं की कहानी है। एक ऐसा सच जिसे हमने देखा है, महसूस किया है — लेकिन शायद स्वीकार नहीं किया।

अगर आपने भी कभी अपना गाँव छोड़ा है, या अब भी मन में उस मिट्टी की ख़ुशबू बसती है — तो ये किताब आपकी अपनी कहानी है।

Amazon की Best Seller सूची में शामिल “जब पहाड़ रो पड़े” आज एक भावनात्मक आंदोलन बन चुकी है।
इस किताब को पढ़िए, महसूस कीजिए… और सोचिए — क्या हम सिर्फ़ शहरों के नागरिक हैं, या उन गाँवों के भी ज़िम्मेदार हैं जो हमें जड़ें देते हैं?

📖 लेखक: धीरेंद्र सिंह बिष्ट
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Hindi Book-Review by DHIRENDRA SINGH BISHT DHiR : 111987231
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