मैं बेगैरत सा इंसान,
तुम कहाँ... शहज़ादी,
जानती हो न मेरा सच,
क्या फिर भी मोहब्बत मुझसे कर पाती?
इसलिए तो कहता हूँ मैं —
प्यार से भागता रहा हूँ मैं,
क्योंकि डर है कि कहीं
तुझसे मोहब्बत न हो जाए,
मुझसे ख़्वाबों में भी ये क़यामत न हो पाए।
तू चाँद सी पाक,
और मैं साया —
धूप में भी काला,
रातों में भी तन्हा।
तू सुबह है, तो मैं शाम,
तू आसमां — मैं एक बदनाम नाम,
इस जन्म में तो हमारा मेल नहीं,
ये मोहब्बत है... कोई खेल नहीं।
कोई खेल नहीं... कोई खेल नहीं।