मुझे तो उस व्यक्ति की खोज है , जिसने महिला के आजादी की बात की ।
क्या इतनी आजादी सही है , जो आज समाज ने अपनी भूख मिटाने के लिए दे रखी है ।
या वो जंजीरें सही थी , जो महिला को महज अपने पति तक सिमीत रखा था ।
आज जो समाज जल रहा है , महिला की आजादी से ,
कितने घर उजड़ गए होंगे , इस आजादी से ।
हम ने एक को अधिकार देने के लिए समाज से अपना अधिकार कहीं खो दिया है ।
यहां सबको अपने मन का करने के आज मौलिक अधिकार का नाम दिया गया है ।
समाज आज उस मौलिक अधिकार के नीचे कहीं दब सा गया है ।