दोहा-सृजन हेतु शब्द*
संन्यास,अभिषेक,आलोक,विरासत,रक्षासूत्र
कर्मठ मानव ही बनें, कभी न लें सन्यास।
जब तक तन में साँस है, करते रहें प्रयास।।
श्रम का ही अभिषेक कर, करें पुण्य के काम।
सार्थक जीवन को जिएँ, जग में होगा नाम।।
सत् कर्मों की हो फसल, करें सभी जन वाह।
दिग्-दिगंत आलोक हो, हर मानव की चाह।।
वरासत को संग्रह करें, होता यह अनमोल।
दर्पण रहे अतीत का, चमके मुखड़ा-बोल।।
रक्षासूत्र प्रतीक है, बंधु भगिनि का प्यार।
रक्षाबंधन पर्व यह, रचे नया संसार।।
मनोज कुमार शुक्ल *मनोज*