न जन्म हमारी मर्जी से होता है
न मृत्यु ही हमारी मर्जी से होती है
तो जन्म मृत्यु के बीच होने वाली व्यवस्था हमारी मर्जी से कैसे हो सकता है
जो आपके कर्मों के योग्य है वो आपको मिल जायेगा
और जो नही है वो छीन जायेगा
हमारा काम है सिर्फ कर्म करते रहना
वास्तव में कर्म क्या है?
भजन ही कर्म है बाकी तो मोह माया है