**कोई होश में नहीं क्या बात करूँ**
कोलाहल में डूबे ये चेहरे,
नींद में चलते, सपनों से भरे,
शब्द तो उछलते हैं, पर अर्थ खो जाते हैं
जैसे नदी में डाली नाव, दिशा भूल जाते हैं।
मैं खोजता हूँ एक जागी हुई आँख,
जिसमें विचार का दीया जलता हो,
जहाँ सुनना भी कला हो,
और कहना एक जिम्मेदारी।
भीड़ में शोर है, पर संवाद नहीं,
हर कोई अपनी गली का यात्री है,
मैं राह देखता हूँ उस सहयात्री की
जो समझ सके मेरे मौन के भी अर्थ।
कोई हो तो, जिसके होठ से सच टपके,
जिसकी निगाह में स्पष्टता हो,
तब मैं अपनी कथा कहूँ,
तब मैं अपने मन के दरवाज़े खोलूँ
कोई होश में हो...
तो बात करूँ।
आर्यमौलिक