✧ बुद्ध — न संगठन, न एकता, केवल सजगता ✧
बुद्ध ने कभी भी धर्म, संगठन या एकता की बात नहीं की।
उन्होंने न किसी झंडे के नीचे लोगों को बुलाया,
न किसी काफ़िले का नेतृत्व किया।
उन्होंने बस कहा —
“अपने भीतर चलो।”
भीड़ को दिशा चाहिए।
सजग आदमी को बस देखने की आँख चाहिए।
बुद्ध जानते थे —
जहाँ भी भीड़ बनती है, वहाँ अंधापन जन्म लेता है।
भीड़ चाहे धार्मिक हो या राजनीतिक,
उसका पहला काम होता है — सोचने वाले को मौन करना।
इसलिए उन्होंने कहा —
“अप्प दीपो भव” — स्वयं प्रकाश बनो।
किसी और के उजाले पर निर्भर मत रहो।
किसी ग्रंथ, किसी गुरु, किसी नियम को
अपनी चेतना पर हावी मत होने दो।
बुद्ध ने कभी नहीं कहा —
“मेरे पीछे चलो।”
उन्होंने कहा —
“मेरे जैसा देखो।”
यह अंतर बहुत सूक्ष्म है —
और यही जगह है जहाँ से बुद्ध मरे, और बुद्धमत जन्मा।
जहाँ सजगता थी, वहाँ अनुकरण आ गया।
जहाँ स्वतंत्रता थी, वहाँ नियम बन गए।
जहाँ खोज थी, वहाँ संगठन बन गया।
लोगों ने समझा — “संघ” का अर्थ भीड़ है।
पर बुद्ध के लिए “संघ” का मतलब था —
सजग आत्माओं का समुदाय,
जहाँ कोई नेता नहीं,
कोई अनुयायी नहीं,
सिर्फ़ खोजी हैं।
आज के तथाकथित “बुद्धमार्गी”
बुद्ध के नहीं —
भीड़ के शिष्य हैं।
वे फिर वही कर रहे हैं
जिसके विरुद्ध बुद्ध उठे थे —
मूर्ति बनाना, पूजा करना, जुलूस निकालना,
और “हम बनाम वे” की राजनीति।
बुद्ध ने धर्म को तोड़ा था,
लोगों ने उनके नाम पर नया धर्म बना लिया।
उन्होंने कहा था —
“मैं तुम्हें कुछ नहीं दूँगा, सिर्फ़ देखने की कला दूँगा।”
और हमने कहा —
“हमें नियम चाहिए, संगठन चाहिए, सुरक्षा चाहिए।”
सच यह है —
बुद्ध किसी धर्म के संस्थापक नहीं थे,
वे तो धर्म तोड़ने वाले थे।
उन्होंने कहा —
धर्म वह नहीं जो समाज देता है,
धर्म वह है जो भीतर से जागता है।
इसलिए जो सच में बुद्ध का अनुयायी है,
वह कभी अनुयायी नहीं रहेगा।
वह स्वयं बुद्ध बन जाएगा।
क्योंकि बुद्धत्व कोई परंपरा नहीं —
वह चेतना की अवस्था है।
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जो आज “बुद्ध” के नाम पर भीड़ जुटाते हैं,
मंदिर बनाते हैं,
नारे लगाते हैं,
वे बुद्ध के विरोधी हैं,
चाहे नाम कितना भी पवित्र क्यों न हो।
बुद्ध ने कहा था —
“जो मार्ग मैं दिखा रहा हूँ, उस पर अकेले चलना होगा।”
भीड़ नहीं चल सकती,
सिर्फ़ व्यक्ति चल सकता है।
इसलिए —
जो बुद्ध को सच में मानता है,
वह किसी ध्वज के नीचे नहीं रहेगा।
वह मौन में रहेगा,
सत्य की जाँच में रहेगा,
और हर क्षण खुद से पूछता रहेगा —
"क्या मैं देख रहा हूँ,
या बस मान रहा हूँ?"
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✍🏻 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲