*हार ही मेरी जीत*
मैं जानबूझ कर हारता हूँ,
हर बाज़ी यूँ ही छोड़ देता हूँ,
कि कल की सुबह जब उगे—
तो मैं खुद को शांति से जोड़ लेता हूँ।
आज की छोटी जीत मुझे
क्षणिक सुख दे सकती है,
पर आने वाले कल की यात्रा में
वो मेरे कदम थाम न सकेगी।
मैं हारता हूँ—कायर बनकर नहीं,
बल्कि समझदार होकर।
क्योंकि जो आज झुकना सीख ले,
वही कल पर्वत बनकर खड़ा होता है।
मेरी हारें मेरी तैयारी हैं,
मेरे भीतर की गहराई हैं,
मैं समझ गया हूँ—
जीवन की असली लड़ाई
तालियों से नहीं, व्यक्तित्व से जीती जाती है।
जन्म से जारी है ये सिलसिला—
त्याग की राह, धैर्य की थाली,
कभी खुद को रोक लेना ही
सबसे बड़ी जीत होती है— मन की।
लोग पूछते हैं—
“क्यों यूँ हार मान जाते हो?”
काश, वो समझ पाते—
मैं हार नहीं रहा…
मैं भविष्य के बीज बो रहा हूँ।
गमलों में उगने वाले पौधे
आसानी से खिलते हैं,
पर जंगल का वृक्ष—
तूफानों से संघर्ष कर विशाल बनता है।
यही सोचकर मैं हारता हूँ—
ताकि कल जीतूँ…
और वो जीत सिर्फ मेरी नहीं,
मेरे अस्तित्व की हो।
आज का त्याग, कल की विजय,
आज की हार, कल का “मैं” बनाए—
मैं हारकर भी जीत रहा हूँ,
क्योंकि मैं समय को अपने पक्ष में
धीरे-धीरे मोड़ रहा हूँ।
आर्यमौलिक