अंजाम जानते हुए भी हद-ए-मोहब्बत से गुज़र जाता है,
वो खुशबू बनकर मेरी रग-ए-जाँ में बिखर जाता है।
वरक़-ए-हयात है वो कुछ इस कद्र हमनवा मेरा,
की हर हर्फ़ साँसों में घुल कर ज़हन में उतर जाता है।
आखिरी साँस तक भी गुम रहूंगी उसकी यादों में,
आईना भी देखूँ तो उसका अक्स उभर आता है।
Kirti Kashyap"एक शायरा"✍️