कुछ उलझन में हूँ कान्हा.......
जब आँखे बंद करके यकीन कर पाते थे तो........
कोई अच्छा इंसान मिला ही नहीं......
उनका आना मतलब निकालना और चले जाने की फितरत ने..........
कुछ इस तरह से बदल दिया कि किसी के अच्छे होने पर भी यकीन नहीं होता अब.........
बुरा तब लगता है जब उस इंसान के लगाए हुए प्रयास भी अनदेखे हो जाते है........
क्यों बीतने के बाद कदर का दस्तूर चल रहा हैं........
क्यों जाने के बाद मिलने की उम्मीद बढ़ने लगती है.........