*ॐ नमः शिवाय*
*कर्मों का पीछा*
एक छोटे से गाँव में एक व्यक्ति रहता था — नाम था शंभू। वह दिखने में तो बहुत साधारण था, पर उसका अभिमान आसमान छूता था। गाँव में अगर कोई भूखा होता, तो वह कहता – “मुझे क्या लेना? हर कोई अपने कर्मों का फल भोगे।”
वह अपने कर्मों को भी हल्के में लेता — झूठ बोलना, दूसरों का हक मारना, और जरूरतमंद की मदद न करना उसकी आदत बन चुकी थी।
एक दिन गाँव में एक वृद्ध साधु आया। उसने सबको कर्म का महत्व समझाया और कहा —
“कर्म बूमरैंग की तरह हैं बेटा, जो जैसा करेगा, वैसा पाएगा। चाहे आज नहीं, कल सही।”
शंभू ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा —
“महाराज, अगर सच में कर्म लौटते हैं तो मुझे अभी क्यों नहीं सज़ा मिली?”
साधु मुस्कुराया, “बीज बोया है, फल आने दो।”
साल बीतते गए। शंभू का व्यवसाय बढ़ा, धन-वैभव खूब मिला, पर उसका मन और निर्दयी होता गया।
वह गरीबों का मज़ाक उड़ाता, अपने माता-पिता को वृद्धाश्रम भेज देता और मंदिर जाते हुए भी सिर्फ नाम का माथा टेकता।
एक दिन अचानक उसे अजीब बीमारी हो गई। डॉक्टरों ने कहा — “इसका इलाज नहीं।”
दिन-रात वह बिस्तर पर तड़पता, पर कोई उसके पास न आता। जिन लोगों की मदद न की थी, वे अब उससे नज़रें चुरा लेते।
एक दिन वही साधु फिर आया। उसने कहा —
“याद है शंभू, तुमने कहा था — कर्म मुझे क्यों नहीं पकड़ते? अब पकड़ चुके हैं। जिस दर्द की अनदेखी तुमने दूसरों की की थी, वही दर्द अब तुम्हारे जीवन में उतर आया है।”
शंभू रो पड़ा। बोला, “अब क्या करूँ महाराज?”
साधु ने कहा, “अभी भी देर नहीं हुई। भगवान से क्षमा मांगो, सेवा करो, पश्चाताप ही मुक्ति का मार्ग है।”
शंभू ने शेष जीवन गरीबों की सेवा में लगा दिया। उसके कर्मों ने धीरे-धीरे उसे शांति दी।
मृत्यु के समय वह मुस्कुराया —
“सच कहा था महाराज… कर्म कभी पीछा नहीं छोड़ते, पर सच्चे कर्म उन्हें भी माफ कर सकते हैं।”
*शिक्षा:*
मनुष्य योनि में किया गया हर कर्म, चाहे छोटा या बड़ा, लौटकर अवश्य आता है।
इसलिए कहा गया है —
“सोच समझकर कर्म कीजिए,
क्योंकि कर्म ही भाग्य का लेख है।”
आचार्य दीपक सिक्का
संस्थापक ग्रह चाल कंसल्टेंसी