कुछ लोग हमें इतनी सहजता से मिल जाते हैं
कि हम उन्हें आम समझ बैठते हैं।
जो हर बार साथ देता है,
हम अक्सर उसी की कद्र करना भूल जाते हैं।
जो बिना बोले भी हमारी परवाह करता है,
हम उसे 'कमज़ोर' समझ लेते हैं।
और जब वो मौन प्रेम छूट जाता है,
तो दिल तड़पता है,
पर समय लौटकर नहीं आता।
ये पंक्तियाँ उस पछतावे की झलक हैं —
जो तब सामने आती है,
जो कभी सस्ता नहीं था,
बस आपने उसे पहचानने में देर कर दी।
हर बार मिलने वाला सस्ता नहीं होता,
जो चुपचाप साथ खड़ा हो — वही सबसे बड़ा होता है।"
– एक भाव, एक पछतावा, एक सत्य – अभिषेक की कलम से....