समुद्र का सूर्योदय
रात की लहरें थककर
किनारे पर सोई थीं,
चाँदनी की चादर ओढ़े
धीरे–धीरे डोल रही थीं।
तभी क्षितिज की नीली देहरी पर
एक सुनहरी साँस उभरी,
मानो आसमान ने अचानक
अपने होंठों पर लौ जगी धरी।
पहली किरण के स्पर्श से
पानी में चमक तैरने लगी,
जैसे किसी ने मोती की थाली
भोर के आगे फेर दी।
लहरें गुलाबी रौशनी में
गीतों-सी लहराईं,
और सीपियों के छोटे मुँह
सरगम-सी मुस्काईं।
दूर एक नाव के पालों पर
धूप ने रंग गाढ़े बुने,
जैसे उम्मीद की कोई चिट्ठी
जल-राह में रख दी सुने।