नारी
शब्द नहीं, संपूर्ण जीवन का विस्तार है,
सृष्टि की पहली धड़कन, धरा का कोमल उपहार है।
उसकी आँखों में सभ्यताओं का उजाला जलता है,
उसके आँचल में आशीषों का सागर पलता है।
ममता की धूप भी वही, करुणा की छांव भी वही,
वो थक जाए तो दुनिया रुके, फिर भी कहे“मैं वही।”
नारी ऊर्जा है, जो अंधेरों में दीप जला सकती है,
शक्ति है, जो टूटे मन को भी पर्वत बना सकती है।
वो जन्म देती है, फिर सपनों को पंख पहनाती है,
अपने दर्द छुपाकर भी, जग को हँसना सिखाती है।
उसकी चुप्पी में तप है, उसकी वाणी में वेद,
वो अकेली ही बना लेती है— मां, बहन, साथी, अवधेद।
जीवन की हर भूमिका में भावों का संगीत है,
नारी केवल देह नहीं वो स्वयं एक अनादि प्रगीत है।
सम्मान उसका धर्म है, आदर उसका स्वभाव,
जहाँ नारी का मान नहीं वहाँ कैसा उगता प्रभाव?
उसका सम्मान करो
क्योंकि दुनिया की हर सुबह उसकी कोख से गुजरती है,
और हर संस्कृति उसकी आत्मा की रोशनी से संवरती है।
नारी
सुंदरता की मूरत भी, ममता का मंदिर भी,
संघर्षों की तपस्विनी भी, जीवन का समंदर भी।
वो झुकती नहीं—
वो बस संसार को सँभालने के लिए थोड़ा मुड़ती है,
नारी कभी कमज़ोर नहीं
वह बस रिश्तों को मजबूत करने में खुद टूटती है।
नमन उस नारी शक्ति को
जिसके बिना यह जग सिर्फ़ एक अधूरी कहानी है…
आर्यमौलिक