🌍 विश्व मानव अधिकार दिवस पर कविता
“मानव होने का गौरव”
नभ की निस्तब्ध ऊँचाइयों से
जब एक किरण धरती पर उतरती है,
तो मनुष्य के अस्तित्व का अर्थ
अपने आप जगमगाने लगता है।
हर श्वास में छुपा है
स्वाभिमान का एक अनन्त बीज,
जिसे अधिकारों की धूप चाहिए—
बराबरी की, स्वतंत्रता की,
और जीने के सौम्य अवसरों की।
मनुष्य का पहला गीत
करुणा की स्वर-लहरियों से जन्मता है,
जहाँ किसी भी हृदय को
दूसरे हृदय से कम नहीं आँका जाता।
जहाँ रंग, धर्म, भाषा,
सीमाएँ और सरहदें
मानवता की उड़ान को बाँध नहीं पातीं,
और हर आँख में वही स्वप्न पलता है—
न्याय का, सुरक्षा का, सम्मान का।
विश्व मानव अधिकार दिवस
सिर्फ एक तिथि नहीं,
एक दर्पण है—
जिसमें हम स्वयं को देखते हैं,
कि हम कितने मानव हैं,
और दूसरों के मानव होने को
कितना स्वीकारते हैं।
आओ, आज फिर संकल्प लें—
कि हर डरे हुए कदम को हम सहारा देंगे,
हर टूटी हुई आवाज़ को शब्द देंगे,
और हर अन्याय के विरुद्ध
अपनी चेतना को जगा कर रखेंगे।
क्योंकि अधिकार किताबों में नहीं,
दिलों में जन्म लेते हैं;
और मानवता का असली सौंदर्य
तभी निखरता है—
जब हम एक-दूसरे को
पूरा मनुष्य बनने देते हैं।
✒️ — @arav $olanki