Fruit of hard work in Hindi Moral Stories by Vijay Sharma Erry books and stories PDF | मेहनत का फल

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मेहनत का फल

नीचे लगभग 2000 शब्दों में विस्तृत संस्करण प्रस्तुत है:मेहनत का फलगाँव के एक छोटे-से कच्चे मकान में एक साधारण सा परिवार रहता था — पिता रामचरण, माँ सीता और उनकी इकलौती बेटी रीना। यह परिवार गरीबी में जकड़ा हुआ था, मगर सपनों में समृद्ध था। रामचरण एक मजदूर थे, जो दिनभर ईंटें ढोते और सीमेंट मिलाकर कुछ रुपये कमाते थे। सीता दूसरों के घरों में खाना पकाने का काम करती थीं, जिससे परिवार का गुजारा मुश्किल से चल पाता था।रीना बचपन से ही पढ़ने में बहुत होशियार और जिज्ञासु थी। वह गाँव के सरकारी स्कूल में पढ़ने जाती थी। स्कूल में वह हमेशा अव्वल आती और अपनी सहपाठियों से आगे रहती। गाँव में बच्चों को पढ़ने-लिखने में कोई विशेष दिलचस्पी नहीं थी, विशेषकर लड़कियों को लेकर तो सोच ही यह थी कि “लड़कियों का पढ़ना-लिखना क्या काम का?” मगर सीता और रामचरण का यह सपना था कि वे अपनी बेटी को पढ़ाएँगे और कुछ अच्छा बनने का मौका देंगे।रीना के लिए स्कूल जाना कभी आसान नहीं था। कभी किताबें पुरानी मिलतीं तो कभी जर्जर सी चप्पलें पहने स्कूल जाना पड़ता। सहपाठी कभी उसका मजाक उड़ाते तो कभी गाँव की औरतें सीता से कह देतीं, “क्यों पैसा खर्च करती हो पढ़ाई में? शादी कर दो, बस निभ जाए जीवन।”मगर सीता और रामचरण ने कभी रीना का हौसला कम नहीं होने दिया। सीता कहतीं, “रीना, मेहनत का फल एक दिन ज़रूर मिलेगा। बस लगे रहो बेटी, लगे रहो।”रीना यह बात सीने में बैठाकर आगे बढ़ने लगी। स्कूल से लौटकर वह माँ का हाथ बंटाती, खाना बनाती, सफाई करती, और जब रात हो जाती तो दीये या लैंप की रौशनी में पढ़ने बैठ जाती। उसकी आंखें कभी नींद से बोझिल हो जातीं तो माँ सीता उसकी पीठ सहलाकर कह देतीं, “बस थोड़ा सा और पढ़ ले बेटी, यह मेहनत एक दिन तुझे उड़ान देगी।”रीना जैसे-जैसे आगे बढ़ने लगी, गाँव में उसका नाम होने लगा। दसवीं कक्षा में अव्वल स्थान लाने के बाद गाँव के स्कूल में उसकी तारीफ होने लगी। मगर गरीबी एक दीवार की तरह उसकी राह में खड़ी थी। बारहवीं में पढ़ने के लिए फीस चाहिए थी, किताबें लेनी थीं, बस का खर्चा जुटाना था। रामचरण और सीता कभी कभी पूरी रात बैठकर यह सोचते कि पैसा कहां से लाएँ? सीता ने अपनी कुछ चाँदी की चूड़ियाँ बेच दीं, रामचरण ने एक और मजदूरी का काम ले लिया, बस अपनी बेटी का सपना बचाने के लिए!रीना यह सब देखती तो उसकी आँखें भर आतीं, मगर साथ-साथ उसके अंदर एक जिद्द सी बैठने लगी कि वह पढ़कर कुछ बनेगी, और माँ-बाप के सभी कष्टों का कर्ज़ चुकाएगी।बारहवीं में जब रीना ने जिले में पहला स्थान हासिल किया तो सभी हैरान रह गए। गाँव में उसकी सराहना होने लगी और लोगों ने यह कहना शुरू किया, “देखो! गरीबी में जन्म लेने वाली बेटी ने नाम रौशन किया है।”रीना ने अब गाँव के साधारण कॉलेज में दाखिला ले लिया। कॉलेज में पढ़ाई तो हो रही थी, मगर खर्चे बढ़ने लगे थे। अब वह बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगी ताकि अपनी पढ़ाई और किताबों का खर्च उठा सके। सुबह कॉलेज जाती, दोपहर में बच्चों को पढ़ाती और रात में अपनी परीक्षा की तैयारी करती रहती। माँ सीता कभी कह देतीं, “रीना, थोड़ा आराम कर ले बेटी,” तो वह बस मुस्कुराकर कह देती, “माँ, जब तक सपना पूरा नहीं हो जाता, तब तक नींद नहीं ले सकती।”कॉलेज में रहते हुए ही प्रशासनिक परीक्षा का ख्याल उसके दिमाग में बैठ गया। गाँव में प्रशासनिक परीक्षा का नाम तक नहीं सुना गया था, मगर रीना जानती थी कि यह वह राह है जो उसकी गरीबी और दूसरों के ताने मिटा सकती है।रीना लाइब्रेरी में बैठकर पुराने अखबार पढ़ने लगी, प्रतियोगिता की किताबें लाने लगी, और अपनी नोटबुक में नोट्स बनाने लगी। जो सहपाठी मौज-मस्ती में लगे रहते, वह उन सब से अलग थी — एक साधारण सी लड़की, जो अपनी साधारण सी डायरी में एक असाधारण सपना लिखने में मशगूल रहती थी।समय बीतने लगा। कॉलेज खत्म हुआ तो प्रशासनिक परीक्षा की तैयारी में और तेजी ले आई। खर्चे बढ़े तो रीना ने बच्चों को पढ़ाने का काम और बढ़ा लिया। कभी-कभी दो या तीन बच्चों के समूह पढ़ाने बैठ जाती। जो भी पैसा बचता, उससे परीक्षा की किताबें खरीद लेती या परीक्षा का शुल्क चुकाती।गाँव में लोग अब यह कहने लगे, “पढ़ने का फायदा क्या है? गरीबों का तो बस गरीबी में जीना लिखा है!” मगर रीना ने कभी उन बातों की ओर ध्यान नहीं दिया। वह जानती थी कि अगर सपने में सच्चाई है और इरादे में दम है तो राहें अपने आप खुलने लगेंगी।रीना अपनी परीक्षा में बैठी। परीक्षा कठिन थी, मगर वह पूरी ताकत और मेहनत से जुटी रही। परीक्षा के परिणाम में जब वह पूरे राज्य में अव्वल स्थान पर आई तो जैसे एक सपना साकार हो गया! माँ सीता और पिता रामचरण की आँखें आँसूओं से भर आईं। गाँव में ढोल-नगाड़े बजे, जो कभी उसकी गरीबी और सपनों का मजाक उड़ाते थे, वे अब उसी रीना का नाम लेकर अपनी बेटियों को पढ़ाने लगे!रीना एक प्रशासनिक अधिकारी बनकर गाँव लौट आई। जब वह अपनी सरकारी गाड़ी से उतरी तो गाँव में जैसे जश्न सा माहौल हो गया। सीता और रामचरण सीने में गर्व समेटे अपनी बेटी के गाल चूमने लगे। गाँव के बुजुर्गों ने रीना के माथे पर तिलक किया और कहने लगे, “रीना, तुमने यह साबित कर दिया है कि मेहनत कभी बेकार नहीं जाती।”रीना की आँखें भर आईं। वह अपनी माँ और पिता से लिपटकर बोली, “जो कुछ मैंने किया है, वह आप दोनों के विश्वास और हौसले का फल है। आप दोनों ने गरीबी में रहकर जो सपने मेरे लिए देखे, आज वह पूरे हुए।”गाँव में जश्न का माहौल था, और यह सीख दीवारों और दिलों में बस गई कि मेहनत का फल कभी खाली नहीं जाता। गरीबी और मुश्किलें कितनी भी हों, अगर सपने में सच्चाई है, तो जीत उस सपने और उस मेहनत की ही होगी।लेखक: विजय शर्मा ‘एरी’प्रमाणपत्र: यह रचना मेरी मौलिक एवं स्वरचित है।पता: गली कुटिया वाली, वार्ड नं. 3, अजनाला, अमृतसर, पंजाब, पिन कोड–143102