🌌 एपिसोड 42 — “वक़्त की परछाइयों में लिखा इश्क़”
(कहानी: मेरे इश्क़ में शामिल रुमानियत है)
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🌙 1. नई लय की शुरुआत
दिल्ली की ठंडी शाम थी।
रूहाना अपने स्टूडियो “रूह की कलम” की खिड़की के पास बैठी थी।
सामने रखे कैनवास पर अधूरी पेंटिंग थी —
दो रूहें, जो एक-दूसरे की ओर बढ़ रही थीं,
मगर बीच में नीली रोशनी की दीवार थी।
वो उस पेंटिंग को निहार रही थी जब अर्जुन ने पीछे से कहा,
“अब भी वही रंग?”
रूहाना मुस्कराई,
“कुछ कहानियाँ खत्म होकर भी अधूरी रह जाती हैं, अर्जुन।”
अर्जुन ने उसके पास आकर ब्रश थामा,
“तो चलो, उन्हें पूरा करते हैं — अपने रंगों से।”
उसने नीली रेखा को सुनहरे में मिला दिया।
रूहाना ने गहरी साँस ली —
जैसे उस पल किसी अनदेखी रूह ने मुस्कराकर उन्हें आशीर्वाद दिया हो।
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🌧️ 2. हवेली की दस्तक
रात के आठ बजे थे।
बाहर अचानक बिजली कड़की — और रूहाना को लगा,
जैसे किसी ने उसके स्टूडियो का दरवाज़ा खटखटाया हो।
वो बाहर आई —
कोई नहीं था।
बस दरवाज़े पर वही नीली तितली बैठी थी।
उसके पंखों पर नमी थी, और नीचे गिरा एक छोटा-सा लिफाफा।
रूहाना ने उसे उठाया —
लिफाफे पर लिखा था:
> “जहाँ कहानी जन्मी थी,
वहाँ एक आख़िरी सुर बाकी है।”
उसने काँपते हाथों से लिफाफा खोला —
अंदर दरभंगा हवेली की पुरानी तस्वीर थी।
और पीछे लिखा था —
“तुम्हारे लौटने का वक़्त आ गया है।”
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🔥 3. अतीत की पुकार
अर्जुन ने तस्वीर देखी और कहा,
“क्या ये कोई मज़ाक है?”
रूहाना ने सिर हिलाया,
“नहीं… हवेली हमें बुला रही है।
वो खत्म नहीं हुई, अर्जुन — उसने बस हमें जाने दिया था।”
अर्जुन ने गहरी साँस ली।
“तो अब क्या? फिर वही रहस्य?”
“नहीं,” रूहाना बोली,
“इस बार शायद हवेली खुद को मुक्त करना चाहती है।”
वो खिड़की के बाहर देख रही थी —
दिल्ली की रात में एक अजीब नीला उजाला फैलने लगा था,
जैसे दरभंगा की धुंध फिर से लौट रही हो।
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🌌 4. वक़्त का द्वार
सुबह होते ही दोनों ने दरभंगा के लिए ट्रेन पकड़ी।
रेल की खिड़की से बाहर खेत, मंदिर और कोहरे में लिपटी पगडंडियाँ गुज़र रही थीं।
रूहाना चुप थी,
उसके हाथ में वही नीली तितली का पंख था —
जो अब हल्की सुनहरी चमक छोड़ रहा था।
अर्जुन ने कहा,
“अगर हवेली अब भी ज़िंदा है,
तो शायद वो चाहती है कि हम उसकी अधूरी कहानी सुनें।”
रूहाना ने धीरे से जवाब दिया,
“या शायद वो हमें अगली कहानी लिखवाना चाहती है…”
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🌠 5. नीली धुंध की वापसी
जब वो दरभंगा पहुँचे,
तो आसमान में फिर वही नीली रौशनी झिलमिला रही थी।
हवेली दूर से शांत दिख रही थी,
मगर जैसे-जैसे वो पास पहुँचे,
दीवारों पर पुराने सुर उभरने लगे —
वही संगीत जो रूहान और रुमी के वक्त बजा था।
अर्जुन ने रूहाना का हाथ थामा,
“कहानी फिर से शुरू हो गई है।”
रूहाना ने मुस्कराकर कहा,
“हाँ… और इस बार, शायद हम खुद कहानी हैं।”
नीली हवा में वही गूंज उठी —
> “इश्क़ ख़त्म नहीं होता… वो बस रूहें बदल लेता है।”
और उसी पल हवेली के द्वार अपने आप खुल गए।
अंदर नीली रौशनी की लहरें नाच रही थीं —
जैसे कोई अनकहा संगीत फिर से जन्म ले रहा हो।
बाहर निकलते वक्त हवेली शांत थी।
अब कोई रोशनी नहीं, कोई गूंज नहीं —
बस हवा में एक सुकून था।
रूहाना ने पीछे मुड़कर देखा —
हवेली की खिड़की पर वही नीली तितली बैठी थी।
वो मुस्कराई और फुसफुसाई,
“अब कहानी तुम्हारे हवाले है…”
तितली उड़ गई,
और हवेली की दीवारों पर सुनहरी चमक फैल गई —
मानो उसने अपना रहस्य,
अपनी रूह की कलम,
अपने असली वारिसों को दे दिया हो।
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💫 एपिसोड 42 हुक लाइन:
> “हर कहानी जब अपने आख़िरी सुर पर पहुँचती है,
तो वक़्त नई धुन रच देता है —
क्योंकि इश्क़ कभी ख़त्म नहीं होता,
वो बस अगला रूप चुनता है।” 🌙