दर्द है और आह है साहिब,
मुफलिसी इक गुनाह है साहिब,,
सिर्फ इंसान समझ लो हमको,
सिर्फ इतनी सी चाह है साहिब,,
अपने इंमा का है सबूत यही,
ये खुदा खुद गवाह है साहिब,,
रोज जीते हैं रोज मरते हैं,
जिंदगी कत्लगाह है साहिब,,
जख्म से पांव भरे रहते हैं,
अपनी पथरीली राह है साहिब,,
आपके घर में और बरकत हो,
आरजू बेपनाह है साहिब,,
दर्द "रावत" को मिला है इतना,
जिसकी ना कोई थाह है साहिब,,
रचनाकार
भरत सिंह रावत
भोपाल
7999473420
9993685955