वहां पर क्या रहें यारों, जहां इल्जाम मिलते हैं।
जो अच्छे लोग हैं, अक्सर यहां बदनाम मिलते हैं।।
बड़ी जादूगरी से दिल को यारों चाक करते हैं।
दुबारा फिर नहीं उनके कभी पैगाम मिलते हैं।।
मोहब्बत करने वालों का खसारा ही खसारा है।
मगर जब टूटता है दिल तो ग़म बेदाम मिलते हैं।।
न रोया कीजिए यूं , आजकल बेरोजगारी पर।
अगर चाहत हो करने की, बहुत से काम मिलते हैं।।
मुनासिब जो लगे तुमको, उसे तुम आज़मा लेना।
वहां रोटी भी मिलती है, वहीं पर जाम मिलते हैं।।
तुम्हारी इस अमीरी से फकीरी है मिरी अच्छी।
मुझे माता पिता के संग चारों धाम मिलते हैं।।
सभी से प्रेम कर रावत यही कहती है रामायण।
बताओ तो कहां नफरत से यारों राम मिलते हैं।।
रचनाकार
भरत सिंह रावत भोपाल
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