#बेवकूफ
थॉमस आलवा एडिसन..
छोटे से थे हम तब हमारे कदम भी पाठशाला
की ओर खेलते कूदते रखे थे कुछ चीज जानने
कीथी जिज्ञासा मनमें कुतूहल होताथा बार-बार
हम सोचते रहते फिर भी समझ में कुछभी नहीं आता था मास्टरजी ने हमें एक छोटासा कागज
दिया पता नहीं शायद उसमें क्यालिख डाला था
मां ने देखावह कागज तब मांभी फूटफूटके रोई
थी हमारा बच्चा बहुत तेज है अब हम स्कूल में
नहीं घरपर ही पढ़ाएंगे उन्होंने एक विश्वास दिया
तबसे मां ही शिक्षक थी, मां ही विद्या थी, वही निरंतर ज्ञान बटके हमें पढ़ाती थी हमने आखिर
घर कोही हमारी पाठशाला का इक नाम दिया
वह रसायनविज्ञान की पुस्तक लेकर मां ने हमें समझाया था घरमें ही हमने लैब बनाई औरएक
रेल के डिब्बे में पर रसायन गिरने सेजल गया डिब्बा बहुत पीटा हमें तब से हमें कानमे कम सुनाई देता था अच्छा हुआ दुनिया की बेकार
की बातें अब हम मैं नहीं सुनाई दिया करेगी ।
हम लग चुके थे हमारी मेहनत में दिन-रात ना
तो हमने कभी घड़ी को देखा था कई बार हम असफल हुए हमारी जिंदगी में भी अंधेरा था 10000 बार सेभी ज्यादा तरीके ढूंढ तब जा
कर आखिर हमने बल्ब का आविष्कार किया
अंधेरों सेभरी जिंदगी में हमेंने इस दुनिया को आखिर कड़ी मेहनतसे रोशनीका चिराग दिया
अब तो हमारे भी चर्चे हो रहे थे दुनिया में सब
लोग हमें भी पहचानने लगे थे ग्रामोफोन, बल्ब
इेलेकट्रिक ट्रेन सबसे ज्यादा 1093 नहीं चीजों
का आविष्कार किया आखिर एकदिन वह खत पढ़ा जो मां ने संभाल के रखा था "आपका
बच्चा मेनटली वीक है उसे अब स्कूल मत
भेजिए " आंसू रुकते नहीं थे अब हमारी आंखों
से आखीर उस मां नेही पढ़ाके हमें सदी का सब
से जीनियस महान वैज्ञानिक का खिताब दिया l
सुनिलकुमार शाह