समन्दर के पानी में तरंगें उठी थीं
आसमानों को छूने पतंगें चली थीं
मेरा नाम आया लबों पर तुम्हारे
तो दिल में हजारों उमंगे उठी थीं
लो चूड़ी खनक गई ये पायल की छन-छन
दिलकश बयारें सुवासित है कन-कन
खुल न जाए कहीं ये भेद दिलों का
होठों की बातों और आँखों की अनबन
मौलिक एवं स्वरचित
श्रुत कीर्ति अग्रवाल
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