चरित्रहीन
कितना कठोर शब्द है...कितना कुंठित विकल करने वाला
पर कितने ही सहज रूप में ये शब्द स्त्री के लिए रोज उपयोग किया जाता है और उपयुक्त भी लगता है।
इस दाग को मिटाने के लिए स्त्री सदियों से कोशिश कर रही , अग्नि परीक्षा दे रही...पर जाने कितने पक्के रंगों से बना है कि मिटता ही नहीं।
पुरुष कितनी आसानी से कह देता है चरित्रहीन उन स्त्रियों को जो उसकी बनाई परिधि से बाहर झांकती है...शातिर पुरुष कहता है चरित्रहीन हर उस स्त्री को जो अपने मत, ख्वाब और परिभाषाएं बुनती है। शायद डरता है वो इन चरित्रहीन स्त्रियों से...ये उसे अपने अस्तित्व के लिए थोड़ा खतरा जान पड़ती है क्योंकि "चरित्रहीन" कहना दरअसल उसकी घबराहट का दूसरा नाम है।
जिस स्त्री को वह बाँधना चाहता है, वह जब उसके घेरे को लांघ देती है, तो उसकी सत्ता डगमगा जाती है।
ये वही स्त्रियां हैं
जो सदियों की बेड़ियाँ तोड़कर
अपने लिए आकाश खोज लेती हैं।
वो स्त्रियां जो सवाल करती हैं,
जो हर अपमान को सहकर भी मुस्कान बो देती है।
जो अपने दुख को कविता और
अपने साहस को क्रांति बना देती हैं
जो बंद दरवाज़ों को तोड़ती है,
जो अपने आँसुओं से ख्वाब सींचती है,
जो टूटे आईनों में भी अपना चेहरा ढूंढ लेती है
जो अपनी चुप्पियों को बगावत बना देती है।
वो स्त्रियां...जिनके कदमों की आहट से सदियाँ काँप जाती हैं,
जिनके सपनों से नई दुनियाएँ जन्म लेती हैं
इतिहास गवाह है, कि हर "चरित्रहीन" कही गई स्त्री ने दुनिया को नया रास्ता दिया है।
ArUu ✍️