Hindi Quote in Motivational by Agyat Agyani

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"इच्छा से वासना तक — जीवन ऊर्जा का रहस्य"
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इच्छा – यह जीवन की पहली चिंगारी है। भीतर का पहला जागरण। जन्म लेने के साथ ही आँख खुलती है, भूख-प्यास उठती है, जिज्ञासा जन्म लेती है। यही मूल गति है — सृजन का बीज। इच्छा कभी स्वप्न बनती है, कभी हक़ीक़त को आकार देती है।

काम – इच्छा की शाखाएँ। इच्छा जब गति पकड़ती है तो काम बन जाती है। काम के कई रूप हैं — भोजन की खोज, भूख-प्यास का तृप्ति, स्पर्श-सुख, दृष्टि का आनन्द। यह सब शरीर और जीवन की बुनियादी गतियाँ हैं। काम भीतर से भी उठ सकता है (ऊर्जा, स्वप्न, कल्पना), और बाहर भी प्रकट हो सकता है (स्त्री-संबंध, रचना, आनंद)।

सेक्स – काम का एक विशिष्ट रूप, जो शरीर और प्रजनन से जुड़ा है। सही जगह और सही दृष्टि से यह प्रेम और रचनात्मकता में बदल सकता है, लेकिन केवल भोग की दृष्टि से यह सीमित और गिरा हुआ रूप है।

वासना – जब इच्छा या काम को अनुचित, अनीतिगत या दमनकारी ढंग से पकड़ लिया जाता है। जैसे स्त्री को केवल भोग की वस्तु मानना, या धन/विषय/पद को पाना किसी भी कीमत पर। वासना का केंद्र असंतुलन और स्वार्थ है।

इच्छा — पहली गति

शास्त्र प्रमाण: ब्रह्मसूत्र कहता है – “लोकवत्तु लीला कैवल्यम्” — सृष्टि ब्रह्म की लीला है, इच्छा की पहली लहर है।

सूक्ष्म रहस्य: इच्छा जीवन की आँख है। जब शिशु जन्म लेता है, उसका पहला रोना भीतर उठी इच्छा की ध्वनि है। यही "मैं होना चाहता हूँ" की घोषणा है।

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2. काम — मूल प्रवृत्ति

शास्त्र प्रमाण: कामसूत्र और ऋग्वेद में "काम" को सृष्टि का प्रथम देवता कहा गया — “कामस्तदग्रे समवर्तताधि” (ऋग्वेद 10.129.4)।

सूक्ष्म रहस्य: काम सिर्फ़ यौन ऊर्जा नहीं है, यह मूल आकर्षण है जिससे जीवन बहता है — अन्न की ओर आकर्षण, संगीत की ओर आकर्षण, साथी की ओर आकर्षण।

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3. सेक्स — काम का विशेष रूप

शास्त्र प्रमाण: उपनिषद कहते हैं — “स योषित्संगो लोको वै स लोकः” — स्त्री-पुरुष का संग प्रजनन और जीवन की निरंतरता का साधन है।

सूक्ष्म रहस्य: सेक्स ऊर्जा के बहिर्मुख रूप में है। यदि इसे प्रेम और ध्यान में बदला जाए, तो यही ऊर्जा भीतर उठकर समाधि का द्वार बनती है।

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4. वासना — विकृति

शास्त्र प्रमाण: गीता कहती है — “कामेष क्रोधेष रजोगुणसमुद्भवाः महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम्” (गीता 3.37) — काम जब वासना बन जाता है, तो वही महापाप और वैरी है।

सूक्ष्म रहस्य: वासना वह जगह है जहाँ ऊर्जा दबी या विकृत होकर निकलती है। इच्छा का निष्कपट बीज यहाँ तृष्णा और स्वार्थ में बदल जाता है।

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5. सीढ़ी का रहस्य

इच्छा → काम (मूल लहर)

काम → सेक्स (एक शाखा)

सेक्स → प्रेम (अगर चेतना है)

प्रेम → समाधि (ऊर्जा का आरोहण)

सेक्स → वासना (अगर अनीति है)

वासना → बंधन (लत और पीड़ा)

👉 इसलिए शास्त्र कहते हैं:

वेद: काम सृष्टि की जड़ है।

गीता: वासना बंधन है।

उपनिषद: सेक्स भी ध्यान का द्वार बन सकता है।

तंत्र: काम ही समाधि का पुल है।

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Hindi Motivational by Agyat Agyani : 112000580
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