रोज-रोज समझाने से कोई सुधरता नहीं,
जिसे बदलना ही न हो, उसे बदलता नहीं।
हज़ार किताबें पढ़ ले कोई,
अगर मन बंद है—तो ज्ञान उतरता नहीं।
आईने में चेहरा साफ हो सकता है,
पर स्वभाव का दाग यूँ ही धुलता नहीं।
उपदेश, सलाह, अनुभव—all बेअसर,
जब तक इंसान खुद सुधरना नहीं चाहता—सुधरता नहीं।
पर आशा छोड़ना भी समाधान नहीं,
क्योंकि एक ही चिंगारी कई दिलों में प्रकाश भर देती है कहीं न कहीं।
आर्यमौलिक