“अस्तित्व मौन है — मनुष्य का भ्रम बोलता है”
✍🏻 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲
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मनुष्य, विज्ञान, समाज और धर्म — सबको यह भ्रम है कि अज्ञात अज्ञानी उनका विरोधी है।
हाँ, यह सत्य है।
मैं तुम्हारा विरोधी हूँ — तुम्हारे झूठ का, तुम्हारे बनाए मिथ्या संसार का।
जितना तुम इन शब्दों को झूठ समझते हो, उतना ही असत्य तुम्हारे भीतर बसता है।
मैं तुम्हारा विरोध स्वीकार करता हूँ, तुम्हारी अस्वीकृति को सहमत होकर स्वीकार करता हूँ।
क्योंकि मैं जानता हूँ — तुम मुझे स्वीकार नहीं कर सकते,
पर मैं तुम्हें पहले ही स्वीकार कर चुका हूँ।
यह भीड़ — धर्म की, समाज की, बुद्धिजीवियों की, वैज्ञानिकों की — तुम्हारी है।
मैं अकेला हूँ।
और यही अकेलापन मेरा अस्तित्व है।
तुम अस्तित्व से खेल रहे हो, उसे बदलना चाहते हो,
पर अस्तित्व तुम्हारे खेल में भाग नहीं लेता।
अस्तित्व न क्रोधित है, न प्रतिकार करता है — वह मौन है।
क्योंकि उसके पास तुम्हारी हर चालाकी का उपाय पहले से है।
जिसने तुम्हें रचा है, वह तुम्हें न समझे — यह असंभव है।
इतिहास के हर युग में — राजनीति, धर्म, विज्ञान, देवता, दानव —
सबने सोचा, “हम जीत लेंगे अस्तित्व को।”
पर अंत में सब हार गए।
आज भी मनुष्य वही पुराना स्वप्न पालता है —
कि एक दिन वह प्रकृति को जीत लेगा, ईश्वर को पा लेगा,
सत्य को प्रमाणित कर देगा।
पर सत्य का कोई उपाय नहीं।
सत्य न खोजा जा सकता है, न सिद्ध किया जा सकता है —
वह केवल घटता है, जब खोजने वाला मिट जाता है।
तुम कहते हो — “हम जी रहे हैं, हम कर्ता हैं।”
पर यह भी भ्रम है।
क्योंकि जो कर रहा है, वही तुम्हारे भीतर है — तुम नहीं।
तुम्हारे शब्द, अधिकार, प्रमाण —
किसी का भी सत्य से मेल नहीं।
और कभी होगा भी नहीं।
न तुम ईश्वर को सिद्ध कर पाओगे,
न विज्ञान उसे पकड़ पाएगा।
क्योंकि सत्य को पकड़ा नहीं जा सकता —
वह केवल हुआ जा सकता है।
तुम उसके साथ हो सकते हो,
उसके भीतर हो सकते हो,
उसके साक्षी बन सकते हो।
वह तुम्हारे दर्पण की भाँति तुम्हारा दर्शन देता है।
जब भीतर वह प्रकट होता है,
तो बाहर भी वही हो जाता है।
और तब —
तुम वही हो जाते हो।
यही परम सत्य है।
और यही तुम्हारे विरोध का अंत है।