सोचो! कोई सोचता क्यों नहीं है?
मैं हूं क्या ? कोई बताता क्यों नहीं है?
अधूरे शब्दों का लहजा तो समझ आता है मुझे
पर मैं खुद को समझ आती क्यों नहीं?
मैं शब्दों का मोल भाव करने लगी हूं
मैं गलत क्यों सही होकर भी बताई जाती हूं?
मन का व्यथा बताऊं किससे
झूठा दिखाई मेरा अस्तित्व देता है ......
बहुत सवाल है ए खुदा तुम से
पर जवाब तुम भी मुझे दे नहीं पाओगे
उलझन बहुत बड़ी है खुद को कैसे समझाओगे
मैं तो हूं ही गलत सही कैसे बताओगे??
_Manshi K