आजकल अजीब हालात हो गए हैं।
कुछ लड़कियाँ एक साथ दो-तीन लड़कों से रिश्ते बना लेती हैं।
फिर वही लड़कियाँ उन सिंगल लड़कियों पर उंगली उठाती हैं –
"देखो, बड़ी सती-सावित्री बनती है!"
असल में ऐसा वे इसलिए कहती हैं क्योंकि उन्हें डर होता है –
कहीं उनकी अपनी पोल न खुल जाए,
कहीं उनका असली चेहरा न सामने आ जाए।
इसलिए वे दूसरों की इज़्ज़त को गिराने की कोशिश करती हैं।
पर सच यही है –
कोई भी लड़की या लड़का पूरी तरह सती-सावित्री या हरिश्चंद्र बनने का दावा नहीं कर सकता।
लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि जो सिंगल हैं, वे बुरे हैं।
बल्कि सिंगल रहकर भी अपनी पवित्रता और इज़्ज़त बचाए रखना
आज की दुनिया में बहुत बड़ी बात है।
रिवाज़ बदल गए हैं,
अब बॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड का चलन ज़्यादा हो गया है।
पर इसके बीच वे लड़कियाँ और लड़के,
जो रिश्तों में ईमानदार और सच्चे हैं,
उनकी पहचान कहीं छिप-सी गई है।
इसलिए ये बात दोनों पर लागू होती है –
स्त्री पर भी और पुरुष पर भी।
इज़्ज़त और चरित्र किसी एक का नहीं,
बल्कि दोनों का आईना होते हैं।