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स्वयं का लगाया नागफनी भी गुलाब लगता है (भाग-3) डूबने से बचना हो तो हाथ-पैर चलाना ज़रूरी होता है। अब मैं रोज घर पर ही घण्टों तक लेशन रीड करने लगी। बात करते वक़्त सही बोलने का प्रयास करना शुरू किया और सबसे कहा ग़लत शब्द पर टोक देना और जब इससे भी सुकून नहीं मिला तो आध्यात्मिक पत्रिका पढ़ना शुरू किया। एक योगा सुबह ठीक 4 बजे करना था। तो रोज बिना किसी के जगाए वो योगा भी किया। क्योंकि मेरी समस्या बड़ी नहीं थी इसलिए कुछ दिन में ही वह चार अक्षर मैं सही और स्पष्ट बोलने लगी। सरल शब्दों में कहूँ तो मेरा तुतलाना बंद हो गया। इस बात को वर्षों हो चुके हैं मगर मुझे आज तक समझ नहीं आया कि लोग केवल कमियां ही क्यों देखते हैं, खूबियां क्यों नहीं। किसी का मज़ाक बनाकर उसका अपमान करके, उसे खुद से कम आँककर, नीचा दिखाकर कौन सी ख़ुशी मिलती है। किसी से यह कहना.."अरे तू कितना मोटा है या कितनी मोटी है"। तू पतला/पतली है। काला/ गोरा/ साँवला या किसी के चेहरे पर बेहूदा टिप्पणी करना.. किसी के तुतलाने या हकलाने का मज़ाक बनाना.. यकीन मानिए बहुत आसान होता है। किसी के रंग-रूप या शारीरिक बनावट पर टिप्पणी करना या बेवज़ह ही बिना मांगे सलाह देना ही बड़ा बेतुका है। मज़ाक भी तब तक ही अच्छा लगता है जब तक हद में हो। क्या आप स्वयं का मज़ाक बनता देख या अपमान होता देख ख़ुश होंगे..? मुझे लगता है लोगों को आईने में अपनी सूरत नहीं सीरत देखनी चाहिए.. मगर व्यक्ति कुछ बोलने से पहले स्वयं को नहीं देखता। मैंने कहा ना.. "स्वयं का लगाया नागफनी भी गुलाब लगता है। मगर, क्या किसी का मज़ाक उड़ाकर और उसको दुःखी करके आपको सुकून की नींद आ जाती है..? मुझे तो नहीं आएगी! 💔 #रूपकीबातें #roopkibaatein #roopanjalisinghparmar #roop
जी शुक्रिया🙏🙏
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