चावल,जौ, गेहूँ ,धन -सम्पदा सब तो इन्ही का है |
फिर भी भोलेनाथ भोले ही ठहरे | लोगो के परपंच , नाटक
से भी प्रसन्न हो जाते है | असल चढ़ावा तो उसी दूरी का है जिसे तय कर हम मन्दिर तक जाते हैं मगर फिर भी कभी मन्दिर हमारे पास नही आता |

Hindi Thought by Ruchi Dixit : 111848075

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now