सुरभित पौन को प्रसंग पाय दच्छिन तें,
आई तुव संग दृग देखन सर समाज।
कूंजत विहंग अंग आनंद उमंगन मों,
तरल तरंगन सों सोभित सलिल साज॥
कहैं ‘परताप’ मंडरात चहुँ ओरन तें,
झुकि झपटत लपटत नहीं कौने काज।
सरस सुगंधयुत अमल अमंद,
मकरंद अरविंद को मलिंद क्यों न लेत आज॥
🙏🏻
- Umakant