KAVYOTSAV Quotes in Hindi, Gujarati, Marathi and English | Matrubharti

KAVYOTSAV Quotes, often spoken by influential individuals or derived from literature, can spark motivation and encourage people to take action. Whether it's facing challenges or overcoming obstacles, reading or hearing a powerful KAVYOTSAV quote can lift spirits and rekindle determination. KAVYOTSAV Quotes distill complex ideas or experiences into short, memorable phrases. They carry timeless wisdom that often helps people navigate life situations, offering clarity and insight in just a few words.

KAVYOTSAV bites

#kavyotsav -2
Subject : Bhavna

#KAVYOTSAV -2

विषय - अध्यात्म

माँ शारदे•••••••••••


हे माँ शारदे वरदान दे।
अब विद्या का तू दान दे।।

घनघोर अंधेरा छाया है 
मन व्याकुल होता आया है
आशा की एक अंशु दिखा दे।।

हे माँ शारदे ...........................
अब विद्या का.........................

मानस पटल में वास कर 
रोम तारों में झंकार भर
ज्ञान के भंडार भर दे।।

हे माँ शारदे ............................
अब विद्या का..........................

देह में ज्ञान का संचार हो, माँ 
ह्रदय में बस तेरा ही वास हो, माँ 
हे वाग्देवी वाणी में हुंकार भर दे।। 

हे माँ शारदे ..............................
अब विद्या का............................

नेहा शर्मा।

#KAVYOTSAV -2


तुम खामोश थे....

सही को गलत और
गलत को सही कहा जा रहा था
वाकिफ तुम थे हर बात से
हर तोहमत से
फिर भी
तुम खामोश थे....

सच घुट रहा था
झूट का बोलबाला था
उम्मीदों का दिया
बुझने ही वाला था
फिर भी
तुम खामोश थे....

ज़रूरत थी की तुम बोलते
अपने हयात होने का
कुछ तो सबूत देते
गलत को गलत कहते
पर अफ्सोस
तुम खामोश थे....


© आसीफ जारियावाला
asif4214@gmail.com

#KAVYOTSAV -2

"या रब ...."

किस्मत मेरी भी सँवार दे या रब
रहमतें मुझे भी हजा़र दे या रब

ख्वाहिशों का एक हुजूम है सीने में
जज़्बातों पर अपने इख्तियार दे या रब

मायूस है दिल तेरे बन्दों के रवैये से
रूह को मेरी अब करार दे या रब

गुनाहों से लब्रेज़ दिलों को साफ करे जो
अब हमें ऐसा कोई आबशार दे या रब

जिस तरह सूरज फतेह पाए अंधेरों पर
इस तरह मुश्किलों से गुजा़र दे या रब

©-आसीफ जारियावाला
asif4214@gmail.com

साथ
#KAVYOTSAV -2
क्यों न हम उस वक्त तक साथ निभाये
जब तुम एक हाथ में लाठी थामे
दूजे हाथ से मुझे थाम लो
जब हमारे सिर के बाल ही नही
बल्कि...
भौहों पर भी सफेदी छा जाये
जब हमारे मुंह से दांत भी
अलविदा कह चुके हों
और आंखों से पलकें भी
आधी झड़ जायें
उस पल में भी मैं
तुम्हारी ठोड़ी को पकड़कर
तुम्हारे करीब आऊँ
और
एक धीमी सी मुस्कान
तुम्हारे चेहरे पर तैर जाये
जब हम इस दुनिया में होते हुए भी
केवल एक दूजे में ही गुम हो
जब केवल मध्य में हम दोनो ही चमके
और चारों ओर के सब दृश्य गौण हो ।।

नेहा भारद्वाज
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कविता

रतजगे में चाँद
अर्पण कुमार

आज रविवार था
छुट्टी का दिन
एकाध बार
किन्हीं ज़रूरी कामों से
बाहर गया
और फिर पढ़ने-लिखने के
अपने कारोबार में
लगा रहा
समय पर
दिन का भोजन किया
और जहाँ थोड़ी सी
झपकी का अंदेशा था
वहाँ देर शाम तक
सोता रहा
...................

और अब यह क्या
रात में
आँखों से नींद ही गायब है
सोमवार की भोर
हो चुकी है
दीवार-घड़ी ने
साढ़े चार बज़ा डाले हैं
मगर आज
आँखों ने शायद
रतजगा करने की
ठान ली है
बाहर बरामदे में
कई बार झाँक आया
खिड़की के छज्जे पर
बैठा कबूतर
आवाज़ करने पर भी
न फड़फड़ाया और न भागा
संभवतः वह भी गहरी नींद में हो
दुबारा ऐसी हिमाकत करने से
खुद को रोक लिया
खिड़की के छज्जे पर
चाँदनी-नहाई रात में यूँ बैठे-बैठे
वह क्या मजे की नींद ले रहा है
इस समय किसी अंदेशे का
उसे कोई खटका भी तो नहीं है
आखिर तभी तो वह
दिन की तरह चौकन्ना नहीं है
मगर उसे लेकर
एक ख्याल और आता है
क्या जाने अलसायी रात में
बिखरते ओस की बूँदों ने
उसके पंखों को भी
भारी कर दिया हो

आज ही अखबार में पढ़ा था
कि आज चाँद
धरती के कुछ अधिक करीब रहेगा
और इसलिए कुछ अधिक बड़ा
और चमकीला दिखेगा
बरामदे में लगी जाली को हटाकर
कई बार चाँद को देख आया
रात के इस बीतते पहर में
उसे देखने से प्रीतिकर
और क्या हो सकता है!
चाँद भी शुरू–शुरू में
पूरब की तरफ था
अपनी गति से
क्रमशः पश्चिम की तरफ होता गया
बीच में एकाध बार तो
गर्दन टेंढ़ी कर उसे देख लिया
मगर अब वह इतना
पश्चिम जा चुका है कि
उसे अपने बरामदे से
नहीं देख सकता
चौदह-मंज़िला फ्लैटों की
इस सोसायटी में
दीवारें भी तो
अमृत-पान करने के मूड में
रास्ते में आ खड़ी होती हैं
चाँद को तकने के लिए
अब छत पर ही जाना
एकमात्र विकल्प है
मगर फ्लैट का दरवाज़ा खोलकर
पहली मंज़िल से चौदहवीं मंज़िल पर
इस घड़ी छत पर जाना....
कौन मानेगा कि
चाँद मुझे खींचकर
छत पर लाया है
लोग तो कुछ और ही
अर्थ लगाएंगे
और लोग ही क्यों
पत्नी को भी मुझपर
शक हो सकता है
और जाने कितने निर्दोष चेहरे
अचानक से उसे
कुलक्षणी लगने लग सकते हैं

यह रतजगा भी
कितना खतरनाक है
तभी सबसे मुनासिब यही लगा
कि इस रतजगे को
कविता में दर्ज़ कर लिया जाए
चाँदनी की इस शीतलता को
कविता के कटोरे में
उतार ली जाए।
...........
#KAVYOTSAV -2

कविता

व्हाट्स-अप डीपी
अर्पण कुमार

मैं उससे प्यार करने लगा हूँ
या इसे यूँ कहना
कुछ ज़्यादा ठीक होगा
कि वह मुझे अच्छी लगने लगी है
मगर उससे यह सब
मैं कह नहीं सकता
हर चीज़ कहना संभव भी नहीं
वक़्त के अलग अलग सिरों पर
खड़े हैं हम
सोचता हूँ
क्या उसे किसी उलझन में
डालना ज़रूरी है!
क्या उससे
अपने दिल का भेद खोले बिना
रहा नहीं जा सकता!
अपनी ही धुन में खोए
किसी गुमनाम संगीतकार सा
मैं सिर्फ़ स्वयं को
अपना संयोजन सुनाता हूँ

उससे बेमतलब के चैट
सप्ताह में दो तीन बार तो
हो ही जाते हैं
बचे दिन बाक़ी
उन संवादों की ख़ुशबू में
हो गिरफ़्तार बीत जाते हैं
क्या समय का यूँ सरसराता
और गुनगुनाता हुआ
निकल जाना
प्यार का कोई हासिल नहीं है
क्या सामनेवाले से
इज़हार कर देना ही सब कुछ है!

आजकल भोर में
यही कोई चार बजे के आसपास
मेरी नींद टूट जाती है
बीच-बीच में
पास की पटरी से
ट्रेन के गुज़रने की आवाज आती है
मन तो बावरा है
कहाँ से कहाँ की सोच लेता है
वह इस ट्रेन में बैठ
मुझसे मिलने आ रही है
आ रही है क्या!
ओह, नहीं आई।
कोई बात नहीं
अगली में आ जाएगी
दिल जाने कब हार मानेगा!
मैं भी यहीं हूँ
पटरियाँ भी यहीं हैं
और देश में
अभी ट्रेन का चलना
कोई बंद थोड़े ही न हुआ है!
भोर के ये बेमतलब
और मीठे से ख़याल
इतना सुकून कैसे देते हैं!
पूछता हूँ अपने आप से
प्यार से भला और क्या चाहिए!
मैं व्हाट्स अप का
उसका डीपी (डिस्पले पिक्चर)
देखता रहता हूँ
आज उसका हेयर स्टाइल
इस तरह का है
तो कल उसने यह कपड़े पहने थे
परसों एक पार्टी में
उसने ख़ूब डांस किया था

अपने मोबाइल पर
उसकी ये तस्वीरें देखते हुए
मुझे कई बार गुमान होता है
वह किसी रैंप पर
कैट-वॉक कर रही है
पूरी स्पॉट लाइट
उस पर आ जमी है
और मैं
हॉल के एक अँधेरे कोने में बैठा
बस उसे निहार रहा हूँ
मेरे अंदर
उजाले का कोई झरना फूट पड़ता है।
............
#KAVYOTSAV -2