KAVYOTSAV Quotes in Hindi, Gujarati, Marathi and English | Matrubharti

KAVYOTSAV Quotes, often spoken by influential individuals or derived from literature, can spark motivation and encourage people to take action. Whether it's facing challenges or overcoming obstacles, reading or hearing a powerful KAVYOTSAV quote can lift spirits and rekindle determination. KAVYOTSAV Quotes distill complex ideas or experiences into short, memorable phrases. They carry timeless wisdom that often helps people navigate life situations, offering clarity and insight in just a few words.

KAVYOTSAV bites

कविता

आओ !
अर्पण कुमार

आओ
अपनी तमाम व्यस्तताओं के
बीच आओ
तमाम नाराजगियों के
रहते भी
आओ कि प्यार करें
इस अँधेरे में
एक-दूसरे से लगकर
एक-दूसरे को रोशन करें

आओ
कि दुनियादारी लगी रहेगी
कि इसी दुनियादारी में
प्रेम के लिए
भी कोई कोना
सुरक्षित रखना होगा
आओ कि बच्चे सो गए हैं

आओ कि
बड़ों का
एक-दूसरे से सुख-दुख
साझा करने का
यही समय है
जानता हूँ कि
थकान हावी है शरीर पर
जम्हाई पर जम्हाई आ रही है
पोर-पोर दुख रहा है बदन का
मगर आओ कि
कुछ देर और
विलंबित रखें
अपनी थकान को
कल रविवार है
सुबह देर तक सोते रहेंगे
इसके एवज़ में

किसी भी सूरत में
सिर्फ इसके लिए
समय निकालना
आज भी हसरत की चीज़ है
कि गृहस्थी के तमाम
दबावों के बीच
इस प्रेम को भी एक
अनिवार्य अंग मानकर
चलना होगा
आओ कि घर की
उठापटक तो चलती रहेगी
कि इसी उठापटक में
प्रेम भी किया जाए
कि गृहस्थी में निश्चिंतता
कभी नहीं आ पाएगी
उसकी जरूरत भी नहीं
आओ कि प्रेम करते हुए
कुछ निश्चिंत हुआ जाए।
...
....
#KAVYOTSAV -2

कविता

अँगीठी बना चेहरा
अर्पण कुमार

दरवाजे के आगे
कुर्सी पर बैठा
खुले, चमकते
आकाश को निहारता
फैलाए पैर, निश्चिंतता से
पीता तेज धूप को
जी भर
आँखें बंद किए
तुम्हें सोच रहा हूँ
... ... ...

और तुम आ गई हो
दुनिया की
सुध-बुध भुलाती
मेरी चेतना में
मेरी पेशानी पर
दपदपाती, चमकती
बूँदों की शक्ल में
जैसे आ जाती है
कोयले में
सूरज की लाली
या फिर
अँगीठी की गोद में
उग आते हैं
नन्हें-नन्हें
कई सूरज चमकदार
लह-लह करते
कोयलों के

तुम तपा रही हो
मेरे चेहरे को
और मेरा चेहरा
अँगीठी बन गया है
जिस पर तुम
रोटी सेंक रही हो
मेरे लिए ही,
तुम्हारे सधे हाथों की
लकदक करती उँगलियाँ
जल जाती हैं
झन्न से
छुआती हैं जब
गर्म किसी कोयले से
और झटक लेती हो तुम
तब अपना हाथ
तुर्शी में एकदम से
मगर बैठे हुए
जस का तस
भूख के पास
स्वाद की दुनिया रचती

बैठकर मेरी पेशानी पर
चुहचुहा रही हो तुम
बूँद-बूँद में ढलकर
मैंने ढीला छोड़ दिया है
अपने अंग-अंग को

तुम उतर रही हो
आहिस्ता-आहिस्ता
पोर-पोर में
और मैं
उठना नहीं चाह रहा हूँ
कुर्सी से
जो प्रतीत हो रही है
अब तुम्हारी गोद
पृथ्वी का
सबसे अधिक सुरक्षित
सबसे अधिक गरम
कोना, मेरे लिए।
..........
#KAVYOTSAV -2

#KAVYOTSAV -2#

રમુજી કાવ્ય

#KAVYOTSAV -2

गिरे जो विशाल वट वृक्ष



गिरे जो विशाल वट वृक्ष,
होएं अनेक वीभत्स दृश्य।

दो दिन संक्षिप्त रुदालियाँ,
फिर विस्तृत खुशहालियाँ।

पहले दिन टूटें चूड़ियाँ,
तेरहवें दिन बनें पूड़ियाँ।

मृत्यु पर सजे बँटवारा मंच,
रचित हों नित नवीन प्रपंच।

रिश्तों के दरकें विश्वास,
चारों ओर धन की आस।

गिरे जो विशाल वट वृक्ष,
होएं अनेक वीभत्स दृश्य।

नौकरी, मकान और व्यापार,
होएं कई-कई हिस्सेदार।

दिखें दुनिया के अजीब रंग,
जर - जमीन को होए जंग।

भूला प्रेम भाव को चित्त,
चर्चा में है केवल वित्त।

सभ्यता प्रदर्शन में थे मगन,
हुआ उनका चरित्र नग्न।

गिरे जो विशाल वट वृक्ष,
होएं अनेक वीभत्स दृश्य।

भूले वृक्ष की निर्मल छाया,
चर्चा केंद्र में धन की माया।

जड़ों में जिसने दिया न जल,
तोड़ना चाहें अमूल्य फल।

लालच बनाए व्यवहार वक्र,
रचे मनुष्य अनेक कुचक्र।

 कर रहे वो गणनाएँ सरल,
किसको कितना मिले तरल।

गिरे जो विशाल वट वृक्ष,
होएं अनेक वीभत्स दृश्य।

उसने बसाई एक नन्हीं सृष्टि,
हो रही जिसमें अलगाव वृष्टि।

एक परिवार और एक रक्त,
हुआ खण्ड - खण्ड विभक्त।

ओढ़ लालच, भावनाएँ सुप्त,
योजनाएँ गुप्त, प्रेम विलुप्त।


इसके तर्क, उसके कुतर्क,
घर बना, अब एक नर्क।

गिरे जो विशाल वट वृक्ष,
होएं अनेक वीभत्स दृश्य।

मृतक की वस्तुएँ फैलाएँ दोष,
इसके दान का करो उद्घोष।

पुरानी खटिया, पुराने कपड़े,
इनके लिए, कौन झगड़े।

पुरानी चद्दर का भी किया दान,
रह गए जमीन और मकान।

पुरानी वस्तुएँ बड़ी दोष युक्त,
आभूषण, संपत्ति दोष मुक्त।

गिरे जो विशाल वट वृक्ष,
होएं अनेक वीभत्स दृश्य।

बँटवारे में हो, ये भी चर्चा,
किसने कितना किया खर्चा।

न एक तिहाई न आधा-आधा,
मैं बड़ा, मेरा हिस्सा ज्यादा।

तुम लड़की और तुम दामाद,
तुम क्यों कर रहे विवाद।

ब्याह हुआ अब हुईं पराई,
क्यों संपत्ति को नजर उठाई।

गिरे जो विशाल वट वृक्ष,
होएं अनेक वीभत्स दृश्य।

मुझको चाहिए मेरा अधिकार,
तू परदेसी तुझ पे धिक्कार।

मुझे मिले सब कारोबार,
मैं था एकलौता सेवादार।

मैंने ही उसका बुढ़ापा ढोया,
मैं ही सबसे ज्यादा रोया।

अब न प्रेम, न है संयम,
न तू प्रथम, न मैं दोयम।

गिरे जो विशाल वट वृक्ष,
होएं अनेक वीभत्स दृश्य।

अनेक-अनेक हैं कामनाएँ,
ताक पर रखी भावनाएँ।

अनेक-अनेक निकले तंज,
रिश्तों में अब केवल रंज।

अनेक-अनेक हैं दावेदार,
जिव्हा देखो बड़ी धारदार।

अनेक-अनेक जागीं दुष्टताएँ,
रसातल में पहुँची शिष्टताएँ।

गिरे जो विशाल वट वृक्ष,
होएं अनेक वीभत्स दृश्य।

वट वृक्ष जब हो जाए पस्त,
बँटवारा बनाए सबको व्यस्त।

वट वृक्ष का भूल जाएँ किस्सा,
मिल जाए जब अपना हिस्सा।

न कोई दवा न कोई मरहम,
बस सम्पत्ति ही भुलवाए गम।

ऐ सम्पत्ति शत् - शत् नमन,
तेरा प्रवेश तो दुःख गमन।

गिरे जो विशाल वट वृक्ष,
होएं अनेक वीभत्स दृश्य।


गिरे जो विशाल वट वृक्ष,
होएं अनेक वीभत्स दृश्य।

प्रांजल सक्सेना

#KAVYOTSAV --2


जागो भारत वासी


मैं इस भारत मां की बेटी...
इक अलख लगाने आई हूं।
जो सोए पड़े हैं वर्षों से ...
मैं उन्हें जगाने आई हूं।

पग- पग पर संस्कृति मिटी हुई...
नारी की लाज है लुटी हुई।
कोई देता इन्हें इंसाफ नहीं...
क्या सच में यहां भगवान नहीं?
किस उम्र से इन्हें छिपा के रखें?
क्या जन्म से बुर्का पहनाके रखें?
जो छिपे हुए आस्तीनो में...
वो सर्प भगाने आई हूं।
मैं अलख लगाने आई हूं।

जुगनू मांगो ,तारे मांगो...
जो चाहे तुम प्यारे मांगो।
जो झरना नदी में गिरता है..
उसके बहते धारे मांगो।
ये सब तो सिर्फ हमारे हैं..
हम भारत मां को प्यारे हैं।
कोई फिर से कब्जा कर न सके..
तुमको समझाने आई हूं।
मैं अलख लगाने आई हूं।।

बोतल के पानी को छोड़ो..
आंखों का पानी बिकता है।
वो बिल्कुल वैसा होता नहीं...
जो जैसा सामने दिखता है।
जो देखने में लगती सीता...
अंदर से शील बिल्कुल रीता।
कलयुग में सभी बिकाऊ है...
बस यही बतलाने आई है।
"सुमन" अलख लगाने आई है।।


सीमा शिवहरे "सुमन"
भोपाल मध्यप्रदेश

वेदना गहीवरत्या ऊरातल्या , डोळ्यात साठलेल्या दाट स्वप्नांच्या
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