"मैं कुछ ऐसा जानता हूँ...
जो शायद कोई नहीं जानता।"
"ना किताबों में लिखा है,
ना किसी पुराने पन्ने पर धूल चढ़ा है..."
"वो न कोई सपना था, न हकीकत की रेखा...
बस एक पल था…
जो मेरे अंदर बीत गया,
बिना किसी आवाज़ के..."
"मैं जानता हूँ उन सन्नाटों की जुबान,
जिन्हें कोई सुन नहीं सकता।
मैंने देखा है रंग अंधेरों में,
जहाँ रोशनी भी थककर रुक जाती है।"
"मेरे पास एक ऐसा सच है,
जो किसी सवाल का जवाब नहीं,
बल्कि खुद एक सवाल है…
जिसे पूछने की हिम्मत सबके पास नहीं।"
"मैं कुछ ऐसा जानता हूँ…
जो मेरी आंखों में तो तैरता है,
पर जुबान तक आते ही रुक जाता है।
क्योंकि हर सच…
कहा नहीं जाता।"
"मैं कुछ ऐसा जानता हूँ...
और शायद अब
उस सच को कविता बनाना ही ठीक होगा।"
"क्योंकि कभी-कभी,
एक अधूरी बात...
सबसे पूरी होती है।"
_बी.डी.ठाकोर.