KAVYOTSAV Quotes in Hindi, Gujarati, Marathi and English | Matrubharti

KAVYOTSAV Quotes, often spoken by influential individuals or derived from literature, can spark motivation and encourage people to take action. Whether it's facing challenges or overcoming obstacles, reading or hearing a powerful KAVYOTSAV quote can lift spirits and rekindle determination. KAVYOTSAV Quotes distill complex ideas or experiences into short, memorable phrases. They carry timeless wisdom that often helps people navigate life situations, offering clarity and insight in just a few words.

KAVYOTSAV bites

#KAVYOTSAV -2

विषय - हास्य

बंदर मामा •••••••••

एक दिन बंदर जी ने गाया गाना 
सुनकर सभी हुए हैरान 
वाह वाही के साथ ताल ठोक दी 
गधे जी ने राल छोड़ दी 
सुनकर जंगल के राजा शेर ने 
आदेश फरमाया 
करो छटपट बंदर को हाजिर 
उसने क्यो गाना गाया
अजी सिर खुजलाते 
उछल कूद करते 
आये बंदर मामा  
आज्ञा करो राजाजी 
कैसे आज बुलाया
कहां से सीखा ऐसा गाना 
सच-सच बतलाओ बंदर मामा 
अजी गाना हम ने नहीं गाया 
अब मुस्काए बंदर मामा 
वह तो एक टेप रिकॉर्ड था 
जिसमें लता मंगेशकर का नाम था।।

कृष्ण कुमार शर्मा ।


हंसते रहिए मुस्कुराते रहिए............

एक बड़ी सी मुस्कुराहट के साथ आप सभी को विश्व हास्य दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।

कविता

छोरों बीच शहर
अर्पण कुमार

भोर में जागा
बिस्तर पर लेटा
बंद किए आँखें
निमग्नता में
डूबा हूँ आकंठ
स्मृति-सरोवर में तुम्हारे,
दूर किसी मंदिर से
शंख-ध्वनि आती है
उठान लेती और
क्रमशः शांत होती जाती,
कमरे से बाहर
नहीं निकला हूँ अब तक
मगर सभी गतिविधियाँ
दिख रही हैं मुझे
यहीं से
आवाज़ के भी अपने चेहरे होते हैं
कोई अपना दुपहिया
स्टार्ट करता है
और कुछ देर के लिए
उपस्थिति दर्ज़ कराता
वातावरण में अपनी पों-पों की
गायब हो जाता है
तेज़ी से अपनी मंज़िल ओर

जगने की तैयारी करते
शहर की खटराग सुनता हूँ मैं
अपने बंद अँधेरे कमरे में
चौकन्ने और शांत कानों से
किसी घर का दरवाज़ा
खुल रहा है
किसी दुकान का शटर
किसी के बच्चे जाग रहे हैं
किसी के मियाँ
कोई बर्तन मल रहा है
कोई अपनी आँखें
चिर-परिचित मुहल्ले का
अस्तित्व ढल जाता है
उतनी देर
निराकार मगर क्रियाशील ईश्वर में
हवा की सांय-सांय पर
कब्ज़ा जमा लिया है पक्षियों ने
अपने सामूहिक कलरव से

हॉकर
गिराकर अखबार
धप्प से
बरामदे में
चला गया है
दूसरी गलियों में
अपनी पुरानी साइकिल पर
ताज़ी खबरों का बंडल लादे
सुर्खियाँ फड़फड़ा रही हैं
दस्तक देतीं दरवाज़े पर
मैं कमरा खोल देता हूँ

शहर के इस छोर पर
सूरज अपनी गठरी खोल चुका है
दिन के शुरुआत की
आधिकारिक घोषणा हो चुकी है
अब तुम्हें भी
उठकर मेरी कविता से जाना होगा
शहर के उस छोर पर
बीती रात जहाँ
तुम सोयी तो ज़रूर थी
मगर
बदलकर करवट
चुपके से पलट आयी थी
इस छोर पर

आँखों में चढ़ी
एक छोर की खुमारी को मलते हुए
शुरू करना है तुम्हें
अपनी दिनचर्या सारी
शहर के दूसरे छोर पर

.......... ....
#KAVYOTSAV -2

#KAVYOTSAV 2
#काव्योत्सव

एक अहेसास


जिस बदन को चलते हुए देखा हे,
जलते हुए आज उसे मै देखूँगा
कैसे ?

सुबह जिन हाथों से चाय बनाती थी , उन हाथों को में अपने ही हाथों से
आज जलाऊंगा कैसे ?

साथ जीने, मरने का वादा तोड़कर
क्यो चली गयी तुम ?
अकेले इस सफर को अब में पूरी करूँगा केसे ?

बिना कुछ कहे ही,मेरी हर बात जान
जाती थी तुम ,
अन कही वह सब बातें, आज में
बताऊगा किसे ?

आज तक मेरे घर को तुमने संवार कर रखा था,
तुम्हारे बिना उस घर में , अकेले मै
रह पाऊंगा कैसे ?


बीत गए सुख और दुख के दिन
अब तक तुम्हारे साथ,
बचे हुए इन दिनों को तुम्हारे बिना अकेले , मै बिताऊँगा कैसे ?

क्यो चली गई तुम इस तरह मुजे
मझधारमें छोड़कर ?
छिपा कर रखे हुवे इन आंसुओ
को अब मै रोकूंगा कैसे ?

हरसुख रायवडेरा

#KAVYOTSAV -2
#खेळी_आयुष्याची

रोजचाच मी तरी स्वत:ला नव्याने पाहतो
हरलो कित्येकदा तरी शर्यतीत नव्याने पाहतो

जाळून आलो होतो चिता भंगलेल्या स्वप्नांची
पून्हा त्याच स्वप्नांना नव्याने रंगवून पाहतो

नशिबाचे नि माझे गुण कधीच जुळले नाही
तरीही नशिबाला नव्याने आजमावून पाहतो

सरळ वाटॆनॆ करीत आलो प्रवास आयुष्याचा
आता थोडा आडवाटॆने चालून पाहतो

तेच चंद्रसुर्य, तेच आकाश अन मी ही तोच असणार
फक्त आयुष्याची खेळी नव्याने खेळून पाहतो

चंद्रकांत शास्त्रकार

#KAVYOTSAV 2


मिल-बैठ सुनें ज़रा आओ ,मौसम की आहट
ठण्डे हैं पड़ गए रिश्ते ,भर दें गरमाहट
मौका है चलो दें निकाल ,कटुता की कीलें
आओ यारा एक कप चाय ,साथ-साथ पी लें

फिर से इशारों में खेलें ,प्यार वाला खेल
जो कुछ भी मन में है दबा ,सब कुछ दें उड़ेल
मन से हो मन का संवाद ,होंठों को सी लें
आओ यारा एक कप चाय ,साथ-साथ पी लें

जितने भी हैं शिकवे-गिले ,बिसरायें सारे
होली के आँचल में मिलकर ,टाँक दें सितारे
मस्ती में चूर समा ... जी भर कर जी लें
आओ यारा एक कप चाय, साथ साथ पी लें

कविता

हथेली का खालीपन
अर्पण कुमार

खाली हथेली पर
उदास नहीं होता
हाँ, इतराता ज़रूर हूँ मैं
सोचता हूँ...
खाली है यह
तो जाने किन मूल्यवान चीज़ों से
कब भर जाए
अभी नहीं तो फिर कभी
आज नहीं तो कल
कल नहीं तो परसों

खाली तो है यह,
मगर किसी सीमा से मुक्त भी
खाली है,
सो इसपर कुछ भी
रखा जा सकता है
देखें अगर
इससे हवा और रोशनी
कैसे उन्मुक्त गुजरती है
आकाश उतर कर
कैसे धम्म से बैठ गया है इसपर
और इस विराटता को महसूसतीं
मेरी ये पाँचों उँगलियाँ
इस खालीपन को
गोया उत्सव में
बदलती चली जा रही हैं

धूप में बैठता हूँ देर तलक
और धूप में चमकती हथेली को
देखता हूँ भरपूर
लकीरों से भरी त्वचा पर
सोने की परत चढ़ी महसूस होती है

मैं कृतज्ञ हो उठता हूँ
मेरा दाहिना हाथ हिलने लगता है
ऊपर आकाश में चमकते सूरज को
अभिभावदन करती हथेली का चेहरा
मुझे बड़ा संतोषप्रद दिखता है

निराश नहीं करती
मुझे मेरी रिक्त हथेली
क्योंकि मेरे भीतर का विश्वास
इसे खाली
मानने को तैयार नहीं
ठीक वैसे ही जैसे
अभी पश्चिम में डूब रहे सूरज को
देखते हुए
मेरी विज्ञान-सम्मत दृष्टि
उसे तिरोहित होना
नहीं मानती

मुझे भरोसा नहीं
किसी भविष्यवाणी में
मगर जब कोई नज़ूमी
मेरी हथेली को
देखना चाहता है
तो मैं सहर्ष
आगे कर देता हूँ इसे
उसका माखौल उड़ाना
मेरा मकसद नहीं होता
मगर अपनी हथेली को
दो व्यक्तियों के बीच
यूँ पुल बनता देख
मुझे अच्छा लगता है
अच्छी बुरी जितनी बातें
मेरे
अनजाने भविष्य को लेकर
बताई जाती है
यह हथेली
उस सारे वाग्जाल के केंद्र में पड़ी
हल्के से मुस्कुरा देती है
मानो कह रही हो कि
जैसे यह पूरी सृष्टि ही
एक वाग्जाल हो

ये खाली हथेलियाँ ही हैं
जिनके बीच रखकर
जुए के पासे फेंके जाते हैं
राजा रंक और रंक राजा
बन जाता है
इन खाली हथेलियों पर
बसंत में
हम भांति-भांति के रंग
बनाते हैं
और अपने प्रेमीजनों के गालों पर
लगा देते हैं

सोचता हूँ ...
ये हथेलियाँ
निस्सार कैसे हो सकती है
जो कई चेहरों के
दुलार-दर्प से
जगमग हों!
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#KAVYOTSAV -2