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अब हाल कुछ यूं है, कि गैरों में सुरक्षित और अपनों से ख़ौफ खाने लगा हूं....!!

rohittalukdar7180

धार्मिक गुरु बनाम आध्यात्मिक गुरु — हीरे और अमेरिकन डायमंड का धर्म ✧

धार्मिक गुरु चमक बेचते हैं, आध्यात्मिक गुरु मौन बाँटते हैं।
चमक बाज़ार में टिकती है, मौन इतिहास में।

धार्मिक गुरु का संसार शोर से बनता है — मंच, माइक, माला, मीडिया।
आध्यात्मिक गुरु का संसार मौन से बनता है — एकांत, सन्नाटा, साक्षात्कार।

धार्मिक गुरु “अनुयायी” चाहता है,
आध्यात्मिक गुरु “अनुभव” चाहता है।

पहला चाहता है भीड़ बढ़े,
दूसरा चाहता है — भीतर कोई एक दीपक जल उठे।

जो आध्यात्मिक होता है, वह कभी संगठन नहीं बनाता;
पर जब वह चला जाता है, तो उसके नाम पर मंदिर, ट्रस्ट, संस्था खड़ी हो जाती है —
और धीरे-धीरे, उसकी आत्मा एक ब्रांड बन जाती है।
यहीं से जन्म होता है “धार्मिक गुरु” का —
आध्यात्मिक की मृत्यु के बाद उसका शव रूपी धर्म।

असली गुरु की पहचान सरल है —
वह कभी तुम्हें अपने नीचे नहीं रखता।
वह तुम्हें तुम्हारे भीतर भेजता है।

बाकी सब —
बस अमेरिकन डायमंड हैं।
चमकते खूब हैं, पर काट किसी को नहीं सकते।

और हाँ,
हीरा कभी बाज़ार में नहीं बिकता,
वह तो पहाड़ के भीतर ही मिलता है —
जहाँ पहुँचना मेहनत माँगता है, श्रद्धा नहीं।

🙏🌸 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

bhutaji

Protect Your Eyes This Diwali
🎆 The Festival of Lights, Not Irritation

Diwali fills our hearts with joy, colors, and bright lights — but it also brings smoke, dust, and pollution that can cause eye allergies, redness, and irritation. Taking small precautions can help you enjoy the festival safely.

👓 1. Wear Anti-Pollution Glasses

The air quality drops significantly during Diwali. Anti-pollution or protective glasses act as a shield, preventing harmful particles from entering your eyes.

💧 2. Wash Your Eyes with Clean Water

After stepping outdoors or bursting crackers, gently rinse your eyes with clean, cool water. It helps remove dust and pollutants that may cause burning or itching.

🏠 3. Limit Outdoor Exposure

Avoid staying outdoors for long hours, especially during peak pollution times (evening and night). If possible, use air purifiers indoors to reduce irritation and dryness.

🌟 Celebrate Responsibly

Remember — real brightness comes from healthy vision! Let’s make this Diwali safe, joyful, and pollution-free.

For expert eye care or irritation relief, visit Netram Eye Foundation, E-98, GK-2, New Delhi.
📞 Call us at 011-41046655 / 9319909455

netrameyecentre

પારકાં માટે જ્યાં વપરાય,
લક્ષ્મીજી ત્યાં વહેલાં જાય!

આ ધનતેરસનાં પર્વે જાણીએ દેવી લક્ષ્મીજીનું મહાત્મ્ય: https://dbf.adalaj.org/GjZuR630

#diwali #dhanteras #festivalvibes #festivals #DadaBhagwanFoundation

dadabhagwan1150

ಬ್ಲಾಗ್ ಶೀರ್ಷಿಕೆ: ಬೆಟ್ಟದ ಗಡಿಯಿಂದ ಮಲೆನಾಡಿನ ಮಡಿಲಿಗೆ: ಬೈಕ್ ಮತ್ತು ಏಕಾಂತದ 13 ಗಂಟೆಗಳ ಆತ್ಮಯಾನ
ಕರ್ನಾಟಕದ ಎರಡು ತೀರಗಳು ಒಂದು ಬದಿ ಗಂಗಾವತಿಯ ಬಿಸಿಲು ಮತ್ತು ಕೆಂಪು ಮಣ್ಣು; ಇನ್ನೊಂದು ಬದಿ ಉಡುಪಿಯ ತಂಪಾದ ಕಡಲು. ಈ 480 ಕಿ.ಮೀ ದೂರ ಕೇವಲ ರಸ್ತೆಯ ಅಳತೆಯಲ್ಲ, ಬದಲಿಗೆ ನನ್ನ ಮನಸ್ಸು ಮತ್ತು ಆತ್ಮ ನಡೆಸಿದ ಒಂದು ದೀರ್ಘ ಸಂಭಾಷಣೆಯ ಹಾದಿ.
ಚಾಲನೆಯ ಮೌನ ಬೆಳಗಿನ ಜಾವ 5:30. ಪಟ್ಟಣದ ಧೂಳಿನ ರಸ್ತೆಗಳು ಮೌನವಾಗಿದ್ದವು. ಹೆಲ್ಮೆಟ್ ಧರಿಸಿದೆ.ಅದು ನನ್ನನ್ನು ಹೊರ ಪ್ರಪಂಚದಿಂದ ಬೇರ್ಪಡಿಸಿ, ನನ್ನೊಳಗೆ ಕೇಂದ್ರೀಕರಿಸಲು ಸಿದ್ಧಗೊಳಿಸಿತು. ಬೈಕ್‌ನ ಇಂಜಿನ್ ಗುನುಗಿದ್ದು, 'ನನ್ನನ್ನು ಕರೆದುಕೊಂಡು ಹೋಗು' ಎಂದು ಆಹ್ವಾನ ನೀಡಿದಂತೆ ಭಾಸವಾಯಿತು. ನನ್ನ ಏಕಾಂತ ಪಯಣ ಶುರುವಾದಾಗ, ಜೊತೆಗಿದ್ದದ್ದು ಕೇವಲ ರಸ್ತೆ, ನನ್ನ ಬೈಕ್ ಮತ್ತು ಕ್ಷಣಕ್ಷಣದ ಆಲೋಚನೆಗಳು ಮಾತ್ರ. ಭೂಪ್ರದೇಶವು ಉಸಿರಾಡಲು ಶುರುವಾದಾಗ ಮೊದಲ ಮೂರು ಗಂಟೆಗಳ ಪಯಣದಲ್ಲಿ, ಸುತ್ತಮುತ್ತಲ ಬಂಜರು ಭೂಮಿ, ಒಣಗಿ ನಿಂತ ಮರಗಳು ಮತ್ತು ಕೆಂಪು ಮಣ್ಣಿನ ಹಳ್ಳಿಗಳು ಕಂಡವು. ಆದರೆ ಸಾಗಿದಂತೆ ದೃಶ್ಯ ಮಾಯಾವಿದ್ಯೆಯಂತೆ ಬದಲಾಯಿತು. ಹಸಿರು ಹುಲ್ಲುಗಾವಲುಗಳು, ಜೀವಂತಿಕೆಯುಳ್ಳ ಹೊಲಗಳು ರಸ್ತೆಯ ಅಂಚನ್ನು ಅಲಂಕರಿಸಿದವು. ಉಷ್ಣಾಂಶ ಇಳಿದು, ಗಾಳಿಯು ತೇವಾಂಶದಿಂದ ಕೂಡಿದಾಗ, ನನ್ನ ಪ್ರಯಾಣ ಹೊಸ ಹಂತ ತಲುಪಿದ ಅರಿವಾಯಿತು.
ಈ ಟ್ರಿಪ್‌ನ ಅತ್ಯಂತ ರೋಮಾಂಚಕ ವಿಭಾಗವೆಂದರೆ ಪಶ್ಚಿಮ ಘಟ್ಟಗಳು. ಗಂಗಾವತಿಯ ಸುಡುವ ಬಿಸಿಲು ಮಾಯವಾಗಿ, ದಟ್ಟ ಕಾಡಿನ ತಂಪಾದ ಗಾಳಿ ನನ್ನನ್ನು ಸುತ್ತುವರಿಯಿತು. ರಸ್ತೆಯ ಅಂಕುಡೊಂಕಾದ ತಿರುವುಗಳು ಪ್ರತಿ ರೈಡರ್‌ನ ಕೌಶಲ್ಯಕ್ಕೆ ಸವಾಲೆಸೆದವು. ಪ್ರತಿ ತಿರುವಿನಲ್ಲೂ ನಿಂತು ನೋಡಿದರೆ, ಮಂಜು ಆವರಿಸಿದ ಅಸ್ಪಷ್ಟ ಜಲಪಾತದ ಸಣ್ಣ ಸದ್ದು. ಅಲ್ಲಿನ ಪೂರ್ಣ ಶಾಂತಿ ನೈಜವಾದ 'ಥೆರಪಿ' ನೀಡಿತು. ಅದು ಕೇವಲ ಚಾಲನೆಯಲ್ಲ, ಅದು ಪ್ರಕೃತಿಯ ಜೊತೆಗಿನ ಒಂದು ಆಧ್ಯಾತ್ಮಿಕ ಸಂವಹನವಾಗಿತ್ತು. ಬದುಕಿನ ಎಲ್ಲ ಒತ್ತಡಗಳು ಆ ಘಟ್ಟದ ಮರಗಳಲ್ಲಿ ಉಳಿದುಹೋದವು. ಕಡಲ ತೀರದ ಕರೆಯ ಅಂತಿಮ ಸದ್ದು ಸುಮಾರು 13 ಗಂಟೆಗಳ ಕಾಲ ರಸ್ತೆಯೊಂದಿಗೆ ಕಳೆದ ನಂತರ, ಅಂತಿಮವಾಗಿ ನನ್ನ ಕಿವಿಗೆ ಸಮುದ್ರದ ಅಲೆಗಳ ಗಂಭೀರ ಸದ್ದು ಕೇಳಿಸಿತು. ಈ ಸದ್ದು ಅರಬ್ಬಿ ಸಮುದ್ರದ ಕರೆ. ದಟ್ಟ ಕಾಡುಗಳು ಹಿಂದಕ್ಕೆ ಸರಿದು, ಕಣ್ಣ ಮುಂದೆ ನೀಲಿ ಸಾಗರದ ದಿಗಂತ ಅನಾವರಣಗೊಂಡಿತು. ಉಡುಪಿಯ ಮಣ್ಣನ್ನು ಸ್ಪರ್ಶಿಸಿ, ಬೈಕ್ ನಿಲ್ಲಿಸಿ, ಹೆಲ್ಮೆಟ್ ತೆಗೆದಾಗ ಸಮುದ್ರದ ತಂಗಾಳಿ ಬಂದು ಮುಖಕ್ಕೆ ಆಲಂಗಿಸಿತು. ಆ ಒಂದು ತಂಪು ಗಾಳಿಗೆ 480 ಕಿ.ಮೀಗಳ ಎಲ್ಲ ಆಯಾಸ ಮಾಯವಾಯಿತಲ್ಲದೆ ಗಂಗಾವತಿಯ 'ಏಕಾಂತ'ವು ಉಡುಪಿಯ 'ಆನಂದದ ಶಾಂತಿಯಿಂದ' ಬದಲಾಯಿತು. ಈ ಏಕಾಂತ ಪಯಣ ನನ್ನನ್ನು ಹೊರಪ್ರಪಂಚದಿಂದ ಕತ್ತರಿಸಿದರೂ, ನನ್ನ ನೈಜ 'ನಾನು' ಯಾರು ಎಂಬುದನ್ನು ಸ್ಪಷ್ಟವಾಗಿ ತೋರಿಸಿಕೊಟ್ಟಿತು.
ಒಬ್ಬಂಟಿಯಾಗಿ ಸವಾರಿ ಮಾಡುವುದು ಕೇವಲ ಮೈಲಿಗಲ್ಲುಗಳನ್ನು ಮುಟ್ಟುವುದಲ್ಲ, ಬದಲಿಗೆ ನಮ್ಮೊಳಗಿನ ಸಾಮರ್ಥ್ಯ, ಇಚ್ಛಾಶಕ್ತಿ ಮತ್ತು ಅಂತರಂಗದ ಮಾತುಕತೆಯನ್ನು ಆಲಿಸುವುದು.
ನಿಮ್ಮ ಬೈಕ್ ಯಾವುದು? ಮತ್ತು ಯಾವ ಮಾರ್ಗದಲ್ಲಿ ನಿಮ್ಮ ನೆಚ್ಚಿನ ಸ್ಥಳ ಯಾವುದು? ಕಾಮೆಂಟ್‌ಗಳಲ್ಲಿ ಹಂಚಿಕೊಳ್ಳಿ!

sandeepjoshi.840664

✧ शून्य — मौन सत्य ✧

✍🏻 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲


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1. शून्य सत्य है, क्योंकि वह बदलकर भी नहीं बदलता।

संसार हर क्षण बदलता है — रूप, रंग, ताप, दिशा।
पर हर परिवर्तन के बाद भी जो “आधार” बना रहता है,
वही सत्य है — वही शून्य है।

जैसे लहरें उठती हैं, टूटती हैं,
पर सागर वही रहता है।
शून्य भी वैसा ही —
क्षण-क्षण अपने रूप बदलता है,
फिर उसी मूल शून्य में लौट आता है।

विज्ञान की भाषा में —
ऊर्जा न बनती है, न नष्ट होती है,
सिर्फ रूपांतरित होती है।
ध्यान की भाषा में —
सत्य न जन्म लेता है, न मरता है,
सिर्फ अपनी छाया बदलता है।


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2. शून्य वह घर है, जहाँ से सब आता और जहाँ सब लौट जाता।

हर तत्व — आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी —
शून्य की देह से निकला है।
वह सबका स्रोत है, और सबका अंत भी।

जैसे श्वास भीतर जाती और बाहर आती है,
वही गति ब्रह्मांड में चल रही है।
शून्य भीतर जाता है तो मौन बनता है,
बाहर आता है तो सृष्टि बनती है।

इसलिए सृष्टि कोई घटना नहीं —
शून्य की श्वास है।


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3. सृष्टि शून्य की “करवट” है।

जिसे हम समय, युग, परिवर्तन, इतिहास कहते हैं —
वह शून्य की करवटें हैं।
कभी वह आंख खोलता है — प्रकाश फैलता है,
कभी वह आंख मूँदता है — अंधकार छा जाता है।

यह करवट बदलने की लय ही ब्रह्मांड है।
हर निर्माण और संहार
उसकी एक-एक श्वास का उतार-चढ़ाव है।


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4. शून्य का घर गति नहीं — मौन है।

शून्य चलता नहीं,
चलने का परिणाम ही दुनिया है।
शून्य मौन है,
और उसी मौन के कंपन से समय और पदार्थ उत्पन्न होते हैं।

यह वैसा है जैसे —
नींद में सोया कोई विराट जीव,
जिसका एक छोटा सा करवट बदलना
हमारे लिए युग परिवर्तन बन जाता है।


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5. शून्य को हम शिव, विष्णु, या बुद्ध के प्रतीक से पहचान सकते हैं।

शिव — ध्यान में बैठे हैं, आँखें बंद।
विष्णु — शेष पर लेटे हैं, स्वप्न में ब्रह्मांड पलता है।
बुद्ध — मौन हैं, न जागृत न सोए।

तीनों प्रतीक एक ही बात कहते हैं —
“सत्य सोया नहीं है, वह मौन है।”
उसकी क्रियाएँ हमें गति जैसी लगती हैं,
पर उसकी प्रकृति स्थिर है।


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6. इसलिए ‘शून्य मौन’ — सत्य का सबसे सटीक नाम है।

शून्य को कहना “ईश्वर” — अपूर्ण है,
क्योंकि ईश्वर को हम व्यक्तित्व समझ लेते हैं।
शून्य को कहना “ऊर्जा” — अधूरा है,
क्योंकि ऊर्जा केवल उसका कार्य है।
शून्य को कहना “मौन” — सबसे समीप है,
क्योंकि मौन में ही वह श्वास लेता है।

शून्य मौन है — पर उसमें अनंत ब्रह्मांड छिपे हैं।
वह गतिहीन है — पर उससे सारी गति निकलती है।
वह शब्दरहित है — पर सभी शब्द उसी की प्रतिध्वनि हैं।


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7. सार-सूत्र

> सूत्र १: शून्य बदलता है, ताकि अपने न बदलने को सिद्ध कर सके।
सूत्र २: जो उत्पन्न होता है, वही समा जाता है — यही शून्य का चक्र है।
सूत्र ३: सृष्टि शून्य की करवट है; समय उसकी श्वास है।
सूत्र ४: मौन उसका निवास है, और गति उसका खेल।
सूत्र ५: शून्य मौन ही एकमात्र सत्य है — बाकी सब उसकी लहरें हैं।

bhutaji

ममता गिरीश त्रिवेदी की कविताएं
कविता का शीर्षक है। जीवन के मौसम

mamtatrivedi444291

તું બાળક બનાવી દે મને,
સાદગી પાછી આપી દે મને,

હવે થાક્યો દુનિયાના ખેલમાં,
થોડું નિર્દોષપણું આપી દે મને,

સ્વાર્થી બની ખોવાઈ ગયો છું,
નિર્મળ હાસ્ય આપી દે મને,

મારાં જ કર્મો મને કરડે છે,
અંતરમા શાંતિ આપી દે મને,

હું દુનીયા જીતી પણ હાર્યો છું,
તું બાળક બનાવી દે મને.

મનોજ નાવડીયા

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manojnavadiya7402

🙏🙏सुप्रभात 🙏🙏
‌आपका दिन मंगलमय हो

sonishakya18273gmail.com308865

Good morning friends have a great day

kattupayas.101947

ममता गिरीश त्रिवेदी की कविताएं
कविता का शीर्षक है। साया

mamtatrivedi444291

Goodnight friends

kattupayas.101947

એક નજરે સૌંદર્ય ભાળી, હૃદય પ્રેમે છલકાય;
બીજી પળે એ જ પંખ જોઈ, ભક્તિમાં જીવ તલ્લીન થાય.
કાન્હાના માથે બિરાજી, આ પંખ અજાયબી બતાવે;
પ્રેમથી પરમ તરફની, આ અદ્ભુત લીલા સમજાવે.
DHAMAK

heenagopiyani.493689

अज्ञात अज्ञानी

“सबसे वास्तविक रूप में यदि मनुष्य स्वयं को अज्ञात और अज्ञानी समझे, तब केवल अस्तित्व रह जाता है” —
यहीं से आत्मज्ञान की असली देहरी शुरू होती है।

क्योंकि “जानना” हमेशा किसी से अलग खड़ा होता है।
जैसे ही तुम कहते हो — “मैं जानता हूं”,
तुम अस्तित्व से अलग हो गए।
एक सीमित देखने वाला बन गए।

पर अस्तित्व खुद तो बिना जानने के भी है —
वह बस है।
उसके होने के लिए कोई ‘ज्ञानी’ जरूरी नहीं।

ज्ञान, संस्कार, सभ्यता — सब बाहर के आवरण हैं।
वे व्यवस्था देते हैं, पर सत्य नहीं देते।
सत्य तभी झलकता है जब सारा जाना हुआ गिरता है।
जब भीतर यह स्वीकार होता है — “मैं नहीं जानता”।
यह स्वीकार ही सतीत्व का टूटना है —
जहाँ झूठी स्थिरताएँ, झूठी निश्चितताएँ ढहती हैं।

और तभी जो शेष बचता है —
वही आत्मा है।
वही शुद्ध अज्ञात, जो किसी नाम या विचार में नहीं बंधता।

ज्ञान से जो मिलता है वह क्षणिक होता है;

अज्ञान की गोद में जो मिलता है, वह सनातन।
@highlight Agyat Agyani

bhutaji

मशीन के भीतर एक मनुष्य ✧
विज्ञान, शिक्षा और धर्म—तीनों ने मिलकर हमें सुव्यवस्थित कर दिया है।
हमारे शब्द, हमारी मुस्कान, हमारे आँसुओं की समय-सारिणी बन गई है।
वह जीवन जो कभी अनिश्चित, खिलता और प्रयोगशील था, अब एक चुके हुए कार्यक्रम की तरह चलता है।

अस्तित्व कभी मशीन नहीं बनाता।
अस्तित्व जन्म देता है — विबन्धित, अराजक, कहीं-कहीं जर्जर पर जिंदा।
लेकिन समाज के नियमों ने उस जन्म को पॉलिश कर दिया; स्वभावों को मोड़ा गया, आकांक्षाओं को अभिलेखित कर दिया गया।

खतरा केवल बाहरी नहीं—खतरा भीतर दबी हुई ऊर्जा का है।
जिसे हमने अनदेखा कर रखा है, उसे हमने विवेक और अनुशासन के नाम पर दफना दिया।
इसी दमन से असुर की पीठ पर उभरे हुए छायाचित्र उभरते हैं; उसी दमन से देवत्व के गीत चुप होते हैं।

प्रकृति ने विविधता दी है: असुर, मानव और देव—तीनों संभावनाएँ हमारे भीतर बराबर मौजूद हैं।
लेकिन सभ्यता ने इन्हें इकठ्ठा कर अचेतन रूप से एक स्वरूप में बाँध दिया—एक तरह का 'ठीक' मनुष्य, जो प्रबंधनीय हो।
अगर राम या कृष्ण आज उठ खड़े हों, तो उन्हें न ही सम्मान मिलेगा न ही समझ; वे पागल या विद्रोही कहे जाएँगे।

असल विपत्ति यह नहीं कि कोई महान व्यक्ति जन्म ले—विपत्ति यह है कि उस जन्म का समाज से मेल नहीं बैठता।
भीड़ उस सत्ता को नकार देती है जो व्यवस्था के विरुद्ध बोले; और व्यवस्था ही भीड़ को आकार देती है।
इसलिए केवल तस्वीरों में ही देवता सुरक्षित हैं—जीवित होते तो असहज होते।

पर भीतर एक कणिका बची रहती है — वह सन्नाटा नहीं, हलचल है; वह पुर्जा नहीं, प्रवाह है।
वही कणिका पूछती है: क्या मैं पूरक हूं या स्वयं अस्तित्व?
यदि वह कणिका सुन पाई जाए, यदि उसे मौका दिया जाए — तो मशीन के भीतर भी एक मनुष्य फिर खिल उठेगा।

यह किसी भविष्यवाणी का कथन नहीं—सिर्फ एक सच की पहचान है।
हमारे समय का रहस्य यही है: व्यवस्था ने कितना भी समेट लिया, पर अस्तित्व की अनिश्चितता हमेशा कहीं न कहीं बची रहती है।
और उसी अनिश्चितता में असली मानव बनने की राह छिपी है।

🙏🌸 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

bhutaji

यहाँ गरना कोई चाहता नहीं, और जीना किसी को आता नहीं...

rohittalukdar7180

“बुद्धत्व”
जो आज भी अकेला चलता है —
वह भीड़ से नहीं, अपने भीतर से जुड़ा है।
उसे साथ की ज़रूरत नहीं, क्योंकि उसे सत्य का स्वाद मिल चुका है।

जो प्रश्न पूछने से डरता नहीं —
वह परंपरा की दीवारें तोड़ चुका है।
प्रश्न डर को जलाता है, और जहाँ डर नहीं,
वहीं से बोध जन्म लेता है।

जो किसी देवता, किताब या संस्था की छाया में नहीं छिपता —
वह समझ चुका है कि कोई भी छाया, चाहे कितनी भी पवित्र हो,
सत्य का स्थान नहीं ले सकती।

वह मंदिर नहीं बनाता —
क्योंकि उसे पता है कि हर मंदिर के भीतर एक नया पिंजरा जन्म लेता है।
वह अपने भीतर दीपक जलाता है —
क्योंकि उसे बाहरी रोशनी से अब उधार नहीं चाहिए।

यही है “बुद्ध” —
न अतीत का व्यक्ति,
न किसी पंथ का नाम,
बल्कि चेतना की वह लपट जो आज भी उन सब में जलती है
जो स्वयं से चलने की हिम्मत रखते हैं।

Agyat Agyani

bhutaji

✧ बुद्ध — न संगठन, न एकता, केवल सजगता ✧

बुद्ध ने कभी भी धर्म, संगठन या एकता की बात नहीं की।
उन्होंने न किसी झंडे के नीचे लोगों को बुलाया,
न किसी काफ़िले का नेतृत्व किया।
उन्होंने बस कहा —
“अपने भीतर चलो।”

भीड़ को दिशा चाहिए।
सजग आदमी को बस देखने की आँख चाहिए।

बुद्ध जानते थे —
जहाँ भी भीड़ बनती है, वहाँ अंधापन जन्म लेता है।
भीड़ चाहे धार्मिक हो या राजनीतिक,
उसका पहला काम होता है — सोचने वाले को मौन करना।

इसलिए उन्होंने कहा —
“अप्प दीपो भव” — स्वयं प्रकाश बनो।
किसी और के उजाले पर निर्भर मत रहो।
किसी ग्रंथ, किसी गुरु, किसी नियम को
अपनी चेतना पर हावी मत होने दो।

बुद्ध ने कभी नहीं कहा —
“मेरे पीछे चलो।”
उन्होंने कहा —
“मेरे जैसा देखो।”

यह अंतर बहुत सूक्ष्म है —
और यही जगह है जहाँ से बुद्ध मरे, और बुद्धमत जन्मा।
जहाँ सजगता थी, वहाँ अनुकरण आ गया।
जहाँ स्वतंत्रता थी, वहाँ नियम बन गए।
जहाँ खोज थी, वहाँ संगठन बन गया।

लोगों ने समझा — “संघ” का अर्थ भीड़ है।
पर बुद्ध के लिए “संघ” का मतलब था —
सजग आत्माओं का समुदाय,
जहाँ कोई नेता नहीं,
कोई अनुयायी नहीं,
सिर्फ़ खोजी हैं।

आज के तथाकथित “बुद्धमार्गी”
बुद्ध के नहीं —
भीड़ के शिष्य हैं।
वे फिर वही कर रहे हैं
जिसके विरुद्ध बुद्ध उठे थे —
मूर्ति बनाना, पूजा करना, जुलूस निकालना,
और “हम बनाम वे” की राजनीति।

बुद्ध ने धर्म को तोड़ा था,
लोगों ने उनके नाम पर नया धर्म बना लिया।
उन्होंने कहा था —
“मैं तुम्हें कुछ नहीं दूँगा, सिर्फ़ देखने की कला दूँगा।”
और हमने कहा —
“हमें नियम चाहिए, संगठन चाहिए, सुरक्षा चाहिए।”

सच यह है —
बुद्ध किसी धर्म के संस्थापक नहीं थे,
वे तो धर्म तोड़ने वाले थे।
उन्होंने कहा —
धर्म वह नहीं जो समाज देता है,
धर्म वह है जो भीतर से जागता है।

इसलिए जो सच में बुद्ध का अनुयायी है,
वह कभी अनुयायी नहीं रहेगा।
वह स्वयं बुद्ध बन जाएगा।
क्योंकि बुद्धत्व कोई परंपरा नहीं —
वह चेतना की अवस्था है।

---

जो आज “बुद्ध” के नाम पर भीड़ जुटाते हैं,
मंदिर बनाते हैं,
नारे लगाते हैं,
वे बुद्ध के विरोधी हैं,
चाहे नाम कितना भी पवित्र क्यों न हो।

बुद्ध ने कहा था —
“जो मार्ग मैं दिखा रहा हूँ, उस पर अकेले चलना होगा।”
भीड़ नहीं चल सकती,
सिर्फ़ व्यक्ति चल सकता है।

इसलिए —
जो बुद्ध को सच में मानता है,
वह किसी ध्वज के नीचे नहीं रहेगा।
वह मौन में रहेगा,
सत्य की जाँच में रहेगा,
और हर क्षण खुद से पूछता रहेगा —
"क्या मैं देख रहा हूँ,
या बस मान रहा हूँ?"

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✍🏻 — 𝓐𝓰𝔂𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

bhutaji

लात मारने की आदत तो ओलाद को मां की पेट से ही होती हैं
फर्क बस इतना है
पेट में लात मार कर मां बाप फूले नहीं समाते
लेकिन
बुढ़ापे में लात पड़ने पर आशु रोक नहीं पाते

rohittalukdar7180

निकले जो तेरी याद के पहलू तमाम रात, आंखों से टपकते रहे आंसू तमाम रात,

मैंने ये तेरे नाम की मेहंदी क्या लगाई, हाथों से निकलती रही खुशबू तमाम रात...!!

rohittalukdar7180

Good afternoon friends

kattupayas.101947

મળે ખાવાનું ભાત ભાતનું,
શું ખાવું શું ન ખાવું?
સાંભળવું ન કોઈનું આમાં ક્યારેય,
હોય જે પ્રકૃતિ પોતાનાં શરીરની,
ખાવું ખોરાક અનુરૂપ એને!
ફેલાવવા જાગૃતિ અન્ન પ્રત્યેની,
અટકાવવા એનો બગાડ,
ઉજવે દુનિયા 16 ઑક્ટોબરે,
'વિશ્વ ખાદ્ય દિવસ'.
ચાલો લઈએ સંકલ્પ આજે,
વેડફીશું નહીં અન્નનો એકેય દાણો,
હોય ભૂખ જેટલી,
થાળીમાં લઈશું એટલું જ!
છોડી દેખાડો બૂફે ભોજનનો,
જમાડીએ આમંત્રિતોને પ્રેમથી
બેસાડી પંગતમાં ભાવથી!
અટકશે બગાડ અન્નનો પંગતમાં,
પેટ ભરી ખાશે સૌ આગંતુકો!

s13jyahoo.co.uk3258

ममता गिरीश त्रिवेदी की कविताएं
कविता का शीर्षक है! द्वार द्वार

mamtatrivedi444291