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New bites

🙏सुप्रभात 🙏
आपका दिन मंगलमय हो 🌄

sonishakya18273gmail.com308865

मैं


मैंने बताना तो चाहा,
तुमने सुना क्यों नहीं?
मैंने जताना तो चाहा,
तुम्हें यक़ी हुआ ही नहीं?

तुम्हें इंतज़ार रहा,
मेरे पलट जाने का।
मैं सोचती रह गयी,
तुमने पुकारा क्यों नहीं?

पल बीतें, मौसम बदले,
वक़्त ठहरा ही नही।
बदलती रहीं तारीखें,
हम बदले क्यों नहीं?

छोड़ देते काश,
अपने "मैं" को हम।
हम सोचते ही रहे,
हमसे हुआ क्यों नही?



मधु शलिनी वर्मा

madhushaliniverma056780

हथेली में तो मैं रहती हूँ।


आज कल क़िताबों की दुनिया में,
तुम्हें जी लिया करती हूँ।
तुम हक़ीक़त में जीते हो,
मैं फैंटसी में तुम्हें पा लिया करती हूँ।।

पढ़नी आती है, तुम्हें सबकी किस्मत,
तो, जरूर मेरा भी पढ़ा होगा।
तारीख और वक़्त के हिसाब से,
पलड़ो में जरूर मुझे भी तौल होगा।।

इल्म तो होगा तुम्हे जरूर,
मेरी तीरगी से भरी,
जिंदगी और फ़सानो का।
तभी, कुछ सुनहरे पल बिखेर कर,
खुश हो लेने के लिए,
मुझे अकेला छोड़ा होगा।।

मुमकिन हैं, कभी पढ़ के,
मेरी नही, अपनी क़िस्मत,
तुम मुझे जान पाओगे।
मुकम्मिल होगा ये,
जब तारीखों के साथ,
लकीरों को भी पढ़ना सिख जाओगे।।

क्योंकि छोटी ही सही,
तुम्हारी हथेली में,
मेरे नाम की भी इक लकीर है।
तारीखे झूठी हो सकती है,
लकीरें तोें बस सच की
हीं जुबां बोलती हैं।।

और गर फिर भी,
दिलो-ओ-दिमाग में,
मैं तुम्हारे आती नहीं हूँ।
हमसफ़र, हमदम, हमराज़,
या दोस्त भी कहलाती नही हूँ।।

तो, फिर चलो,
ये सोच के ही खुश हो रहती हूँ।
तुम्हारे दिल मे न सही,
हथेली में तो मैं रहती हूँ।।


मधु शलिनी वर्मा

madhushaliniverma056780

શરદ પૂનમ😊

s13jyahoo.co.uk3258

શુભ રાત્રી

mrsfaridadesar

**मरे हुए लोग**

वे लोग जो रोज़ सांस लेते हैं,
पर जिनमें जीवन नहीं होता।
जिनकी आँखों में कोई सपना नहीं,
चेहरे पर कोई प्रकाश नहीं—
बस एक निःशब्द अंधकार का बोझ।

वे चलते हैं, बोलते हैं, खाते हैं,
पर कुछ *महसूस* नहीं करते।
किसी की पीड़ा उन्हें नहीं छूती,
किसी की पुकार कानों तक नहीं जाती।
उनके दिलों के दरवाज़े,
लालच और स्वार्थ के ताले में बंद हैं।

वे हँसते हैं—पर मशीन की तरह,
बोलते हैं—पर मन के बिना।
उनके भीतर आत्मा नहीं,
बस एक निर्धारक प्रोग्राम चलता है—
“कैसे अपने स्वार्थ को पूरा किया जाए।”

इन जीवित लाशों के बीच
मानवता सिसकती है।
संवेदना एक पुरानी किताब बन गई है,
जिसे अब कोई पलटता नहीं।
करुणा का नाम अब मज़ाक है,
और ईमानदारी एक मूर्खता।

सड़कों पर भीड़ है, पर मनुष्यता नहीं।
हर चेहरा मुखौटे में है,
हर नज़र किसी छल की गणना कर रही है।
ये वही लोग हैं—
जो ज़िंदा होकर भी कब्रों में सोते हैं।

कभी किसी रोते बच्चे की आवाज़
इन पाषाणों से टकराकर लौट आती है,
कभी कोई वृद्ध गिड़गिड़ाता है—
पर ये बुत हिलते भी नहीं।
जिन्हें अपने सिवा किसी का होना
महसूस ही नहीं होता—
वे ही हैं *जीवित रूपी मृत लोग*।

और शायद यही सबसे बड़ा शोक है—
कि अब मृत्यु से डर नहीं लगता,
मनुष्यता की मृत्यु तो पहले ही हो चुकी है।

आर्यमौलिक

deepakbundela7179

🦋... SuNo ┤_★__
कोई पूछे तो क्या हो ग़म की शिद्दत
किस तरह रोई,

ज़मीं पर आ के देखो आसमानों की
कज़ा रोई,

वो लिपटा जिस्म है, या प्यार का
मंज़र है वीराना,

वो मासूमियत है जिसकी आरज़ू पर
ये दुनिया रोई,

ये चादर जिस पे अरबी नक़्श हैं ये
ओढ़नी माँ की,

कि इक तारीख़ है जो हर्फ़-दर-हर्फ़
आज़ादी रोई,

कहाँ तक देखें हम, इस ज़ुल्म की
तारीख़ को लिख कर,

ये पत्थर रो पड़े, ये रेत की दीवार-ओ-
दर रोई,

परिंदा 🕊 बैठा है काँधे पे, शायद
पूछता होगा,

ज़रा सा अम्न दे दो, इस वतन में क्यूँ
हवा रोई,

ऐ इन्सानों सुनो, ये दास्ताँ बे-जान
लबों की है,

कि इक कलियाँ, खिली भी ना थी
और गुलज़ार रोई...🔥
╭─❀💔༻ 
╨──────────━❥
♦❙❙➛ज़ख़्मी-ऐ-ज़ुबानी•❙❙♦
#LoVeAaShiQ_SinGh
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loveguruaashiq.661810

स्त्री समानता के नाम— मौलिकता का नाश न करे ✧
✍🏻 — 🙏🌸 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

समानता का अर्थ यह नहीं कि दोनों एक जैसे बन जाएँ।
समानता का अर्थ है — भिन्न होकर भी पूर्ण होना।
स्त्री को समानता देना, यह नहीं कि उसे पुरुष बना दिया जाए।
स्त्री तब ही समान होती है जब पुरुष अपने भीतर की गहराई पर खड़ा हो सके —
जहाँ दोनों की भिन्नता विरोध नहीं, पूरक बन जाती है।

आज सभ्यता लिंगभेद मिटाने की बात करती है।
पर जहाँ जड़ स्तर पर लिंग मिटते हैं,
वहाँ आत्मा मर जाती है और मशीनें जन्म लेती हैं।
यह “लिंग-मुक्त समाज” नहीं, आत्मा-मुक्त युग है।
जहाँ सब कुछ गिना जाता है, पर कुछ भी महसूस नहीं किया जाता।

स्त्री की मौलिकता — उसकी श्री —
मौन, करुणा और सृजन की लय में खड़ी है।
वह देह नहीं, भाव है;
वह इच्छा नहीं, आह्वान है।
उसकी नारीत्व में ही धर्म का बीज छिपा है।
पुरुष उस तल पर खड़ा नहीं हो सकता,
वह केवल प्रेम कर सकता है, श्रद्धा कर सकता है —
यही उसका धर्म है।

पर पुरुष प्रेम नहीं कर पाता —
इसलिए वह भेद मिटाना चाहता है।
क्योंकि भेद में ही उसका दर्प टूटता है,
और झुकना उसे मृत्यु-सा लगता है।
प्रेम झुकना है —
और पुरुष झुकना नहीं जानता।
तो उसने चाल चली —
भेद मिटा दो, ताकि प्रेम की ज़रूरत ही न रहे।
पर उस मिटाने में ही प्रेम खो गया।
अब समानता नहीं बची — केवल प्रतियोगिता बची।

यह पुरुष का पुराना खेल है —
पहले उसने स्त्री को पर्दे में रखा,
क्योंकि उसकी गहराई से डरता था।
अब उसे पुरुष बनाकर मैदान में उतारा,
ताकि दोनों एक ही धरातल पर लड़ें,
और उसकी हार किसी को न दिखे।
दोनों ही स्थितियों में स्त्री हारी —
पहले मौन खोया, अब लय।

पुरुष ने स्त्री को नहीं समझा,
और यही उसकी कमजोरी है।
स्त्री ने पुरुष को नहीं समझा,
यह उसकी सरलता है।
पुरुष ने अपनी कमजोरी छिपाने के लिए
स्त्री की मासूमियत को नादानी कह दिया,
और उसकी नादानी को सिद्धांत बना दिया।

अब प्रेम नहीं रहा —
अब बुद्धि है, तर्क है, बराबरी का शोर है।
और इसी शोर में आत्मा की धड़कन खो गई।
लिंग का भेद मिटाना नहीं चाहिए,
उसे समझना चाहिए।
क्योंकि वही भेद सृष्टि की लय है,
वही मिलन का रहस्य है।

स्त्री जब श्री में खड़ी होती है —
संसार सुगंधित होता है।
पुरुष जब श्रद्धा में झुकता है —
धर्म जाग्रत होता है।
समानता का अर्थ है —
दोनों अपने स्वरूप में पूर्ण हों।
तभी प्रेम संभव है,
तभी जीवन आत्मा का उत्सव बनता है।

bhutaji

Goodnight friends

kattupayas.101947

🌟 Exciting News! 🌟

I am delighted to share some wonderful news with all of you! 🎉
One more of my articles has been published in Akila Daily. This achievement motivates me to continue writing and sharing meaningful stories with all of you.
Thank you for your continuous support and encouragement! 🙏
— Nensi Vithalani

nensivithalani.210365

ક્યાં મળે છે! આવી વેચાતી બજારે દોસ્તી જેનું મૂલ્ય અમૂલ્ય હોય!

છતાં પણ મૂલ્યથી વેચાતી આ દોસ્તી બંદગીથી મફતમાં મળે કોઈ બંદાને આ દોસ્તી.
- વાત્સલ્ય

savdanjimakwana3600

जीवन भागा जा रहा है ✧

मनुष्य भागा जा रहा है —
कहीं पहुँचने की जल्दी में,
पर कहाँ जाना है —
यह पूछने की फुर्सत नहीं।

धार्मिक भाग रहा ईश्वर की ओर,
भौतिक भाग रहा बाज़ार की ओर,
दोनों के कदम थके हुए हैं,
दोनों की आँखें बुझी हुई हैं।

किसी ने पूछा नहीं —
“क्यों भाग रहा हूँ?”
क्योंकि ठहरना सबसे कठिन है।
ठहरने में सामना है —
अपने ही शून्य से,
अपने ही सत्य से।

वह कहता है — “जीने के लिए भागता हूँ।”
पर सच यह है —
भागने में जीना खो गया।

जब एक पल बस रुककर
तूने देखा —
पत्ते की हरियाली, हवा का गीत,
अपने दिल की नब्ज़ की आवाज़...
उसी पल जीवन लौट आया।

जीना कभी भविष्य में नहीं था,
ना ही स्वर्ग में,
ना ही किसी ईश्वर के दर्शन में —
जीना तो इस सांस में है,
जो तू बिना चाह के ले सके।

जो ठहर गया —
वही पहुँचा।
बाकी सब बस रास्ते की धूल हैं।

🙏🌸 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

bhutaji

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rajukumarchaudhary502010

Zero to Billionaire – भाग 3: ई-कॉमर्स का विस्तार और पहली बड़ी सफलता ✦

छोटे व्यवसायियों के लिए अवसर

आरव ने अपने प्लेटफ़ॉर्म को केवल वेबसाइट बनाने तक सीमित नहीं रखा। उसका लक्ष्य था कि हर छोटे व्यवसायी को ऑनलाइन बिक्री का मौका मिले।

उसने वेबसाइट को मोबाइल-फ्रेंडली बनाया।

उपयोगकर्ता अनुभव सरल रखा, ताकि टेक्निकल ज्ञान न रखने वाले भी इसे इस्तेमाल कर सकें।

छोटे व्यवसायियों के लिए मार्केटिंग, ऑर्डर मैनेजमेंट और ग्राहक समर्थन आसान बनाया।


धीरे-धीरे प्लेटफ़ॉर्म पर पहले 100 ग्राहक जुड़े। फिर 500, फिर 1,000। लोग देख रहे थे कि आरव का प्लेटफ़ॉर्म उनके व्यापार में बदलाव ला रहा था।


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टीम और संसाधन का विस्तार

आरव ने महसूस किया कि अकेले काम करना मुश्किल है।

उसने एक छोटी टीम बनाई।

टीम में डेवलपर्स, मार्केटिंग एक्सपर्ट्स और ग्राहक सहायता स्टाफ शामिल हुए।

टीम के साथ मिलकर वेबसाइट और सेवाओं को सुधारते रहे।


पहली बार आरव ने अनुभव किया कि सफलता केवल मेहनत से नहीं, टीमवर्क और नेतृत्व से आती है।


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पहली बड़ी सफलता

कुछ महीनों में प्लेटफ़ॉर्म ने ध्यान आकर्षित किया।

एक बड़ी निवेशक कंपनी ने निवेश की पेशकश की।

यह निवेश आरव के प्लेटफ़ॉर्म को और बड़ा करने में मददगार साबित हुआ।

प्लेटफ़ॉर्म ने लाखों रुपये का मुनाफ़ा कमाया और मीडिया में उसका नाम छाया।


लोग अब कहने लगे—

> “वह लड़का जिसने छोटे व्यवसायियों को डिजिटल दुनिया से जोड़ा, अब उनके लिए चमत्कार कर रहा है।”




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चुनौतियाँ और दबाव

सफलता के साथ चुनौतियाँ भी बढ़ी।

तकनीकी अपग्रेड की जरूरत थी।

टीम मैनेजमेंट और निवेशकों की उम्मीदों का दबाव था।

नए प्रतियोगी मार्केट में प्रवेश कर रहे थे।


लेकिन आरव ने हर चुनौती को सीखने और सुधारने का मौका माना।

उसने टीम को प्रशिक्षित किया।

सिस्टम मजबूत किया।

मार्केटिंग और सर्विस को बेहतर बनाया।



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भाग 3 की सीख

1. सफलता अकेले नहीं आती – टीमवर्क जरूरी है।


2. छोटे कदम बड़ी उपलब्धियों की नींव रखते हैं।


3. सच्चा लीडर चुनौतियों में अवसर देखता है।

rajukumarchaudhary502010

बड़े शहर के छोटे लोग

ऊँची-ऊँची इमारतें हैं,
उससे भी ऊँचा लालच है।
चारों दिशाओं में पक्की सड़के हैं,
रोशनी में तर-बतर,
और टूटी-फूटी सबकी मानस है।

बड़ी-बड़ी गाड़ियाँ हैं,
उससे भी बड़ा आलस है।
किस काम की वो शोहरतें,
किस काम की वह तरक्की,
जहाँ पैदल चलना भी आफ़त है।

चमकती ये रंगीन बस्तियाँ,
विज्ञान और विकास की बदौलत,
ये उच्च कोटि की आबादियाँ।
आविष्कार और विलासिता की मूरत हैं,
इंसानियत और कुदरत के मुख़ालिफ़त।
कैसे बड़े लोग हैं?
हर चीज़ को स्वार्थ के तराजू से नापते है।

rtjd.387186

যারা "মিশন ইন্ডিয়ানা"র প্রথম ১০টি পর্ব পড়েছেন তারা দয়া করে আমাকে ম্যাসেজ করুন।

deep86

new bl story

shivankshirathore736036

मुझे नही पता इश्क क्या सजा देगा
लोग कहते है थोड़ा तो मजा देगा

दिल की धड़कन बड़ेगी , बड़ेगी बेचेनिया
रातो को कमबख्त जगा देगा

यू तो इश्क पर कई किताबे पड़ी
बाकी तो वक्त ही समझा देगा

कभी खुशी देगा कभी गम देगा
साला आँखो दरिया बना देगा .

mashaallhakhan600196

શરદપૂનમની આજ અજવાળી
રાત છે
રાધાને કાનના પરિણયની
વાત છે
વિધાતાના લેખમાં વિરહની
ઘાત છે
પણ રાધા કાનના પ્રેમ આગળ
કાનો મ્હાત છે…
-કામિની

kamini6601

फूल खिलते हैं बिखर जाते हैं,
दिल मिलते हैं, बिछड़ जाते हैं...

mrsfaridadesar

मनुष्य का ध्येय क्या है? वास्तव में हिन्दुस्तान के मनुष्य परमात्मा बन सकते हैं। खुद का परमात्मापन प्राप्त करना, वह सबसे अंतिम ध्येय है। - दादा भगवान

अधिक जानकारी के लिए: https://dbf.adalaj.org/NRqWJDK8

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dadabhagwan1150

#उपवासाचे_पदार्थ

⭐राजगिरा पीठ रताळे वडे

⭐साहित्य
लाल रताळी दोन
(पांढरी पण वापरू शकता)
दोन वाट्या राजगिरा पीठ
अर्धी वाटी दाण्याचे कूट
साखर एक चमचा
वाटीभर ताक
बारीक मिरची चिरुन आणि मीठ चवीनुसार
जीरे चमचाभर
कोथींबीर

⭐कृती
लाल रताळी धुवून किसून घेतली
हा कीस कच्चाच घेतला
राजगिरा पीठ दाण्याचे कूट साखर बारीक मिरची जिरे चिरलेली कोथींबीर
हे सर्व मीठ व ताक घालुन एकत्र केले
वर थोडे गरम तेलाचे मोहन घालून
लागल्यास थोडे पाणी घालुन भिजवुन गोळा करून ठेवून
अर्धा तास झाकुन ठेवले

⭐अर्ध्या तासानंतर तेल कडकडीत तापवून आच मंद केली
व हाताला थोडे तेल लावुन तयार मिश्रणाचे वडे हातावर थापून मध्ये भोक पडले
मंद आचेवर खरपूस तळून घेतले

⭐बाहेरून कुरकुरीत व आतून छान खुसखुशीत होतात
सोबत ताक

तळलेले नको असल्यास याचे थालीपीठ सुद्धा उत्तम होते...

jayvrishaligmailcom

ज्यादा नहीं बस थोड़ा वक्त चाहिए
वक्त को समझने के लिए..
समझ को वक्त चाहिए पहचानने के लिए..
डॉ अनामिका
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