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In the busy morning you called me and said I need you. Same here .Let's rule the world.

kattupayas.101947

dr.bhairavsinhraol9051

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કેસરની ક્યારી રક્તથી રંગાઈ, જોવો કાશ્મીર,
ધર્મ પૂછી ગોળીઓ ધરબાઇ, જોવો કાશ્મીર.

કાયરતાના શ્રુંગાર કરી હેવાનિયતનું નૃત્ય થયું,
દેશમાં ગોળીની અવાજ પડધાય, જોવો કાશ્મીર.

દાંમ્પત્ય જીવનના હજુ તો દિવસ થયા હતા ચાર,
કંગન તૂટવાની અવાજ સંભળાય, જોવો કાશ્મીર.

એમ સરહદ પાર કરી આવવું ક્યાં સહેલું રહ્યું હસે!
તપાસ કરો ઘરમાં હેવાન સંઘરાય, જોવો કાશ્મીર.

કહેતી હતી સરકાર કે તોડી નાખી કમર નોટબંધીથી,
એ તૂટેલી કમરે બંદૂક કેમ પકડાય? જોવો કાશ્મીર.

મનોજ મને ગંધ અંદરના ષડયંત્રની આવી રહી છે,
કયો દેશનો નેતા હવે ખૂનથી નાહી, જોવો કાશ્મીર.

મનોજ સંતોકી માનસ

manojsantokigmailcom

நீ இல்லாத இந்த காலைப்பொழுதை

எப்படி அணுகுவதென்று தெரியவில்லை

காப்பி போடும் போது சுட்டுக்கொண்டேன்

தோசை ஒன்றை கறுக்கி விட்டேன்

நீயில்லாமல் வாழ பழகவில்லை

நீயில்லாமல் எதையம் செய்ய தெரியவில்லை

திரும்ப வா நானே உனக்கும் சேர்த்து சமைக்கிறேன்

துணிகளை துவைக்கிறேன்

அலமாரியை சரி செய்கிறேன்

எப்படியாவது திரும்ப வந்துவிடு...

kattupayas.101947

भारत में दो ही मौसम चलते हैं – एक गर्मी का, दूसरा चुनाव का।
गर्मी में बिजली जाती है, चुनाव में याद्दाश्त।
नेता आते हैं, वादे करते हैं, चले जाते हैं – जैसे बारिश से पहले के बादल।

कभी कहते हैं – हम भ्रष्टाचार मिटा देंगे!
फिर धीरे से जोड़ देते हैं – "ताकि हम कर सके।"

जनता पूछे – ‘कब मिलेगा रोजगार?’
तो जवाब आता है – ‘जब हमारे पिछले वादे पूरे होंगे।’
जो आज तक तो कभी पूरे हुए नहीं।

चुनाव से पहले नेता गरीब की झोपड़ी में खाना खाते हैं,
और चुनाव के बाद गरीब को।

नेताओं का भाषण शुरू होता है – ‘मेरे प्यारे देशवासियों’
और खत्म होता है – ‘हमें वोट ज़रूर दीजिए।’
बीच में अगर कुछ समझ आया हो, तो आप वाकई काबिल हैं।

rohanbeniwal113677

Every morning is something special and unexpected things happen, and it goes on...

kattupayas.101947

Good morning

kattupayas.101947

हर रोज हम दोस्त एक विषय का चयन करते हैं लिखने के लिए। कई बार वो शब्द खुद चलकर मेरे पास आते हैं, और मैं उन्हें पकड़कर एक कहानी में ढाल देता हूँ। जैसे वो पहले से ही मेरे अंदर मौजूद हों, बस बाहर आने का इंतज़ार कर रहे हों।

आज का विषय था – "जुड़वा"। लगा, कितना आसान होगा। कितनी कहानियाँ देखी, पढ़ी, सुनी हैं इस विषय पर। जुड़वा भाई, बहनें, वो गहरा रिश्ता, वो आपसी समझ… सब कुछ मेरे ज़ेहन में था।

पर जैसे ही लिखने बैठा, कुछ भी शुरू नहीं हो सका। हर बार कुछ सोचता, पर अधूरा रह जाता। एक वाक्य भी पूरी तरह काग़ज़ पर नहीं उतर सका। कुछ था जो रुक रहा था। शायद इस बार शब्दों ने साथ नहीं दिया।

मैंने बहुत कोशिश की। कोई पुरानी याद, कोई देखा-सुना किस्सा, कोई कल्पना—सबको खंगाल डाला। पर जुड़वा शब्द के साथ कोई कहानी नहीं जुड़ सकी। ऐसा नहीं कि कहानियाँ नहीं थीं, बस उन्हें कहने का साहस नहीं था, या शायद उनकी सच्चाई मेरे लिखे से बड़ी थी।

आज मैं असफल रहा। और इसे स्वीकार करना भी ज़रूरी है। क्योंकि हर दिन लिखना आसान नहीं होता। कुछ दिन ऐसे होते हैं जब शब्द हमारे नहीं होते, और हम  बस अकेले बेबस रह जाते हैं। "मन में विचारों का सैलाब होता है, लेकिन शब्दों का साथ नहीं मिलता।

लेकिन यही तो लेखन की खूबसूरती है—हर हार में एक सीख, और हर चुप्पी में एक नई शुरुआत छुपी होती है।

आज की कहानी नहीं लिख सका, पर मैं जानता हूँ, कल फिर कोशिश करूंगा।

"क्योंकि कहानी भले ही आज न बन पाई हो, पर भरोसा है—कल के शब्द, आज की कमी पूरी कर देंगे।

rohanbeniwal113677

mbh8611

*શબ્દે શબ્દે તું લાગણી વેરી જાય છે તારા માટે લખવા બેસું ત્યાંતો શબ્દ ખુટી જાય છે.....*

*તને યાદ કરૂં બે શબ્દો લખવા ને તારા માં જ આંખે આખું સરી જવાય છે....*

*આમ રાહ જોઈ જોઈ ને કલમ પણ અમસ્તી રૂઠી જાય છે...*

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hardik89

आज की पीढ़ी, जिसे हम बड़े प्रेम से Gen Z कहते हैं, वो एक ऐसी अद्भुत प्रजाति है, जो Self-Aware भी है और Self-Obsessed भी। ये वो लोग हैं जिनकी सुबह Instagram के "Good Vibes Only" पोस्ट से होती है और रात Instagram के किसी ट्रेंड पर डांस करते हुए ख़त्म।

इनके हाथ में मोबाइल है, सिर पर हेडफ़ोन, और दिमाग में ट्रेंडिंग रील्स का डेटाबेस। किताबें इन्हें पुरानी लगती हैं, लेकिन 'Pinterest aesthetic' वाली स्टडी टेबल ज़रूर चाहिए। भगत सिंह इनके बायो में होते हैं, पर अंग्रेज़ी में "IDK, LOL, SMH" टाइप जवाब देते हैं।

इन्होंने जीवन को "soft life" और "main character energy" में बाँट रखा है। हकीकत से इनका रिश्ता बस इतना है कि ब्रेकअप होने पर Spotify पे सैड प्लेलिस्ट बना लें और कैप्शन में लिखें — "healing era"।

ये Gen Z अपने mental health के प्रति अत्यंत सजग है। हर दो दिन में social detox पर जाती है, लेकिन उससे पहले 5 स्टोरीज़ डालती है — "Taking a break. If you really care, you know where to find me (i.e., Snapchat)."

पुराने ज़माने के क्रांतिकारी जेल में जाते थे, ये ज़रा Wi-Fi चला जाए तो ही टूट जाते हैं। लोकतंत्र की समझ इन्हें मीम्स से मिलती है, और संविधान इन्हें तभी याद आता है जब उनका पसंदीदा Influencer Shadow Ban हो जाए।


बात-बात पर बोलते हैं, “We don’t vibe with toxic energy,” पर खुद बिना फ़िल्टर के बात करना इन्हें गवारा नहीं। रिश्तों में commitment नहीं चाहिए, लेकिन situationship में रोज़ाना "closure" माँगते हैं।

ये पीढ़ी सच में अनोखी है

rohanbeniwal113677

gautam0218

gautam0218

gautam0218

gautam0218

Being single is not a sin. Being single and waiting for the right person is better than pain in the heart

kattupayas.101947

कश्मीर, जो कभी सुकून और सुंदरता का पर्याय माना जाता था, अब खून और खौफ की पहचान बन चुका है। 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम की बर्फ़ में फिर से इंसानियत ने दम तोड़ा। 28 निर्दोष सैलानी आतंक की गोलियों का निशाना बने—न कोई दोष, न कोई अपराध। बस गलती ये थी कि वे उस वादी में सुकून ढूंढने आए थे, जहाँ अब सिर्फ़ बारूद की गंध बची है।

ये हमला सिर्फ लोगों की जान नहीं ले गया, इसने हमारी संवेदना, हमारी चेतना और हमारी चुप्पी की पोल खोल दी। क्या अब भी कोई इसे ‘मसला’ कहेगा? क्या अब भी हम यह पूछते रहेंगे कि "कौन पहले भड़का"?

आतंकी, जो खुद को किसी धार्मिक या राजनीतिक मक़सद का सिपाही कहते हैं, वो दरअसल कायर हत्यारे हैं। जो मासूमों को मारते हैं, वे न किसी खुदा के बन्दे हो सकते हैं, न किसी संघर्ष के प्रतिनिधि। वे सिर्फ और सिर्फ इंसानियत के दुश्मन हैं।

इस हमले में गोलियां नहीं चलीं, हमारी उम्मीदों पर बम गिरा।
बर्फ़ पर सिर्फ खून नहीं फैला, हमारी असफलताएं भी पड़ी थीं।

क्या हम इतना असहाय हो चुके हैं कि हर हमले के बाद सिर्फ़ बयान जारी कर देना ही हमारा उत्तर बन गया है?
कहाँ हैं वो आवाज़ें जो "विरोध की आड़ में आतंक" को जस्टीफाई करती थीं?
कहाँ हैं वो लोग जो हर आतंकी की मौत पर मानवाधिकार की मोमबत्ती जलाते हैं?

हमने आतंक के आगे घुटने नहीं टेके—हमने अपनी अंतरात्मा को मार डाला है।
हम अब आंकड़े गिनते हैं, नाम नहीं।
हम अब हेडलाइन शेयर करते हैं, आँखें नहीं नम होतीं।

यह लेख मैंने गुस्से में लिखा है—एक ऐसा गुस्सा जो भीतर से खौलता है, जब निर्दोषों को यूँ मिटा दिया जाता है और पूरा देश अगले ट्रेंड की ओर बढ़ जाता है।
शर्म आती है इस चुप्पी पर। शर्म आती है इस संवेदनहीनता पर।

अब वक़्त आ गया है कि हम इस चुप्पी को तोड़ें।
आतंकवाद के हर चेहरे को बेनकाब करें—चाहे वह किसी धर्म, जाति या राष्ट्र के नाम पर क्यों न पनपा हो।
यह लड़ाई केवल बंदूक से नहीं, विचार से भी लड़नी होगी।

और सबसे पहले उस विचार से जो कहता है—“थोड़ा समझो, दोनों तरफ दर्द है।”
नहीं साहब, दर्द तब होता है जब दिल धड़कता हो।
जो इंसानियत को मारता है, वह सिर्फ़ हत्यारा है। और हत्यारे के लिए बस एक जवाब होता है—न्याय।

rohanbeniwal113677

na kuch poocha..



na kuch maanga



tu ne dil se diya jo diya



how many of you like Shreya Ghoshal voice in #rab ne bana di jodi ? tuj me rab diktha hai

kattupayas.101947