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New bites

ભાઈબીજ😊

ભાવથી જમાડે બહેન આજે,
પ્રેમથી જમે એનાં ભાઈ ભાભી!
નથી જરુર કોઈ ભેટ કે કવરની,
આંગણે આવી ઉભા રહે સૌ,
એ જ સાચી ખુશી બહેનની!
મોટા ભાઈ ભાભીનું કરે સન્માન,
ને નાનાંને ઘણો વ્હાલ!
આ જ તો છે ભાઈ બહેનનો સંસાર!

s13jyahoo.co.uk3258

ममता गिरीश त्रिवेदी की कविताएं

mamtatrivedi444291

हाइकु

यादो के संग,
कटा जीवन सारा,
कहानी न थी।

raj7802

અમે' 'નેગેટિવ'ને 'પોઝિટિવ'થી જીતીએ છીએ. - દાદા ભગવાન

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#quote #quoteoftheday #spiritualquotes #Positivity #DadaBhagwanFoundation

dadabhagwan1150

એક દિવસ મળવાની
આશાએ વર્ષો વીતેલા છે,
અમુક સબંધ મેં આવી
રીતે પણ નિભાવેલા છે... ✍🏻✍🏻 ભરત આહીર

bharatahir7418

તું ખાલી આંખો ની વાત કરે છે....
અહીં તો શબ્દો પણ ભીંજાય ગયા છે તારી યાદ માં..!✍🏻✍🏻 ભરત આહીર

bharatahir7418

भक्ति सौदा नहीं

भक्ति कोई सौदा नहीं, सौंपना है खुद को सरल भाव में,
जहाँ नहीं तिजोरी खुलती, खुलता है मन प्रभु के नाव में।

कर्म से खिलती आस्था, मशीन नहीं कोई वरदान की,
भक्ति वो दीया है अंदर, जलता मनुज के ज्ञान की।

मंदिर में रुपया चढ़ाने से, सुख नहीं उतरता आसमान से,
धरती पर जो सींचे श्रम से, अमृत झरता उसी किसान से।

भक्ति की माला गिनने से पहले, अपने मन को परखो ज़रा,
क्या तुम लोभ से पूज रहे हो या सच्चे समर्पण से प्रभु को धरा?

अंधविश्वास के कोहरे में डगमग न होने दो अपनी सोच,
ईश्वर उसी के पास बैठा है, जो कर्म करे निष्काम रौश।

भक्ति से धन नहीं, मन का उजियारा मिलता है,
जो खुद को पहचान ले, वही सच्चा भाग्यविधाता मिलता है।
****
आर्यमौलिक
https://dbarymoulikblog.blogspot.com/2025/10/blog-post.html

deepakbundela7179

🙏🙏સઘળાં સગાંસંબંધીઓ વચ્ચે 'ચીરહરણ' દ્રોપદીનું થાય ત્યારે 'ચીર પુરવા' "ભાઈ કૃષ્ણ" આવે છે.

બધાજ 'ભય' ભલે રહ્યા બહેનને દરેક 'ભયથી મુક્તિ' અપાવવા એક "ભાઈ" દોડી આવે છે.🦚🦚

🚩ભાઈબીજ નાં પવિત્ર પર્વની સર્વને શુભેચ્છાઓ 🚩

parmarmayur6557

Good morning friends

kattupayas.101947

*बीत गई दिवाली और कह गई कि* ………
दिवाली के बाद भी चंद दीपक
जला कर रखना
एक दीपक आस का
एक दीपक विश्वास का
एक दीपक प्रेम का
एक दीपक शांति का
एक दीपक मुस्कुराहट का
एक दीपक अपनों के साथ का
एक दीपक स्वास्थ का
एक दीपक भाईचारे का
एक दीपक बड़ों के आशीर्वाद का
एक दीपक छोटों के दुलार का
एक दीपक निस्वार्थ सेवा का

*इन ग्यारह दीपको के साथ बिताना अगले ग्यारह महीने, मैं 11 नवम्बर 2026 को फिर से आऊँगी और फिर नए दीपक जला लेना !*

*एक बार पुनः दिवाली की शुभकामनाएं।*
😊🙏🏻🙏🏻

आर्यमौलिक

deepakbundela7179

,🙏🙏सुप्रभात 🙏🙏
आपका दिन मंगलमय हो

sonishakya18273gmail.com308865

गोवर्धन पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं 🌹🌹🙏🌹🌹

drbhattdamayntih1903

🦋...𝕊𝕦ℕ𝕠 न┤_★__
मेरी हसरत, मेरी चाहत, मेरी धड़कन
                 मेरी जान,

तुम्हारी यादों में ही खो जाने को जी
                  चाहता है,

ये दुनिया के सारे अफ़साने, ये तन्हाई
                    के साये,

तुम्हारे साथ मिल कर मुस्कुराने को
                 जी चाहता है,

तुम्हारी आँख का काजल तुम्हारी मीठी
                    सी बातें,

तुम्हारे पास ही बस ठहर जाने को जी
                   चाहता है,

तुम्हारी साँस की खुशबू, तुम्हारी लबों
                   की नरमी,

तुम्हारे ज़िक्र में ही घुल जाने को जी
                  चाहता है,

चाँद की शीतलता हो तुम, या सवेरे
की पहली किरण,

तुम्हारे  नूर  से सँवर जाने  को  जी
                चाहता है,

ये दिल है इक सागर, जो लहरों को
                 पुकारता है,

तुम्हारी  मोहब्बत के साहिल पे रुक
         जाने को जी चाहता है,

कोई मुश्किल न हो राहों में, कोई दूरी
               न हो दरमियाँ,

तुम्हारे साथ ही जीने और मर जाने को
             जी चाहता है...❤️
╭─❀💔༻ 
╨───────────━❥
♦❙❙➛ज़ख़्मी-ऐ-ज़ुबानी•❙❙♦
 #LoVeAaShiQ_SinGh
╨───────────━❥

loveguruaashiq.661810

👍👍

arunanoza6712

Goodnight friends sleep well sweet dreams

kattupayas.101947

KON HAi AAP by Gunjan gayatri

Aaj mein pahado
Se pucha kon hai aap?

Ek jor ki waha chali
Aur boli
"Jaha dhan leherati vo
Khet hu mein
Jaha Mann ko
Shanti milti hai
Voh dharti hu mein
Jaha devi ,devta vaas
Karte hai voh bhoomi hu
Jaha raat ko
Mandan lagta hai
Voh medini hu mein
Jismein aanneko prakar
Ke pashu -pakshi rehte hai
Voh vashundhara hu mein
Yaha chalne wali hawa hu mein
Jo ab shant hai ko ghar hu mein

Fir usne mujhse pucha
Kon ho tum noni(girl)

Mein ne kaha
Aap mein basne wali
Awaj hu
Apki dharti par
Dhaan lagane wali
Kisaan hu mein
Jo aaj bhi sab ka
Saath chahti hai
Voh Pratiksha hu mai

gunjangayatri949036

નવા વર્ષની નવી યાદ એક ચા ની સાથ.. માતૃભારતી પરિવારના દરેક સદસ્યને નવા વર્ષની ખૂબ ખૂબ શુભેરછા સાથે જય શ્રી રાધેકૃષ્ણ 🙏🏻

falgunidostgmailcom

coming soon 🥰
25/10/2025

sutharhome643gmail.com224617

जन्म ओर मृत्यु तो उसके हाथ में, राम नाम सत्य है सत्य बोलो गत् है ,ये शब्द सब लोगो ने सुना होगा ,आज मेरे नाना श्री ने अपने शरीर को छोड़ दिया ,जब मै वहां गया तो आज बड़े गौर से दिल लगा कर मैने ये शब्द सुना । राम नाम सत्य है सत्य बोलो गत् है , बहुत सुकून वाला शब्द था , फिर मेरे मन में इस शब्द को गहराई से जानने की इच्छा उत्पन्न हुई, उसी भीड़ में एक महानुभाव मिले उन से इस शब्द के बारे जानने की तीव्रता हुई ,
(इतनी भीड़ थी इस शब्द को बोलने वाली लेकिन इस शब्द को बोलते सब है लेकिन उस पर अमल कोई नहीं करता है , लड़ाई झगड़े, झूठ, फरेब भाई भाई के खून का प्यासा आज कल पत्नी पति के खून की प्यासी है हर कोई पैसे संपति के चक्कर में बुड्ढे मा बाप को मार रहे है ,फिर कहते हम सब समझते है ) खैर इस का मतलब बताया
राम नाम सत्य है, सत्य बोलो गत्य है" का अर्थ है कि मृत्यु के समय केवल भगवान राम का नाम ही सत्य है, बाकी सब नश्वर और व्यर्थ है। यह नारा साथ चल रहे लोगों को यह याद दिलाने के लिए है कि जीवन की सारी मोह-माया, धन-दौलत और रिश्ते-नाते क्षणभंगुर हैं, जबकि भगवान का नाम ही एकमात्र शाश्वत सत्य है, जो आत्मा को सद्गति और मुक्ति दिलाता है। "सत्य बोलो गत्य है" का अर्थ है कि सत्य का मार्ग ही मुक्ति का मार्ग है, और राम के नाम का जाप करने से ही मनुष्य को सही रास्ता और शांति मिलती है।
राम नाम सत्य है": यह इस बात पर जोर देता है कि जन्म लेने वाले हर व्यक्ति की मृत्यु निश्चित है। मृत्यु एक अटल सत्य है, और भगवान राम का नाम इस सत्य का प्रतीक है। यह सांसारिक सुखों और भौतिक चीजों को नश्वर और असत्य मानता है।
इसका अर्थ है कि सच बोलकर और सत्य के मार्ग पर चलकर ही आत्मा को सद्गति या मुक्ति मिलती है। यह बताता है कि जो लोग जीवन भर सत्य बोलते और अच्छे कर्म करते हैं, वे मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त करते हैं।
यह वाक्य केवल मृतक के लिए नहीं, बल्कि शव यात्रा में साथ चल रहे परिजनों और मित्रों के लिए एक संदेश है। यह उन्हें याद दिलाता है कि वे जल्द ही इस संसार को छोड़ देंगे, और मृत्यु के बाद केवल उनका कर्म ही साथ जाएगा।

अगर आपको समझ आया तो गौर जरूर करे क्या जो हम कर रहे वो सही है ,अपने आस पास गौर से देखे ,।
कॉमेंट शेयर जरूर करें 🙏
_____________________
लेखक भगवत सिंह नरूका

mystory021699

આસોને અલવિદા કરી
કારતક આવે ટહૂકા કરી
ખુશીઓ સમેટી લો પ્યારી
નવા વરસની આવી સવારી…
-કામિની

kamini6601

finaly આપણે વિક્રમ સંવંત 2082મા પહોંચી ગયા....
🧨🧨🌠🌠🌠🎊🎊🎊🥳🥳🥳🥰🥰😃😃😃
આપ સૌને વિક્રમ સંવંત 2082ના નવા વર્ષની મંગળ કામના સહ "નુતન વર્ષાભિનંદન"
💐💐🍫🍫🍫🍫🍫🍫🍫🍫
ઈશ્વર આપ સૌને સુખ, સમૃદ્ધિ, સ્વસ્થ આરોગ્ય પ્રદાન કરી આપ સૌના તથા આપના પરિજનોના તમામ મનોરથ પરિપૂર્ણ કરે.
આવેલ નવુ વર્ષ આપના માટે સફળતા, પ્રગતિ, સાહસ અને આપના સપનાને સાકાર કરવા માટે નવી ઊર્જા પ્રદાન કરે .
જય શ્રીરામ 🚩🙏

jighnasasolanki210025

फिर से रिस्टार्ट (भाग 1: टूटा हुआ घर)

रात का सन्नाटा था।
आसमान में बादल गरज रहे थे, जैसे खुद भगवान भी किसी की तकलीफ़ पर रो रहे हों।
एक पुराने, मिट्टी के घर में टिमटिमाता बल्ब लटका था — कभी जलता, कभी बुझता।

अंदर से चीखें आ रही थीं।

“मत मारो रामू… बच्चे देख रहे हैं!”
सीमा ने अपनी हथेली से गाल को ढक लिया, जहाँ उसके पति का थप्पड़ अभी-अभी पड़ा था।
लेकिन रामू की आँखों में सिर्फ़ शराब का नशा था — और दिल में ग़ुस्से का लावा।

हाथ में सस्ती दारू की बोतल, होंठों पर बदबू, और ज़ुबान पर गालियाँ।

रामू (चिल्लाते हुए): “पैसे कहाँ हैं तेरे पास? बोल!”
सीमा (रोते हुए): “आज जो सिलाई की थी, बस दो सौ रुपये मिले हैं। बच्चों के लिए दूध लाना है…”
रामू: “दूध? पहले मेरा हक़! मैं इस घर का मर्द हूँ!”

वो दो सौ रुपये उसकी मुट्ठी से छीन लेता है।
सोनू (10 साल) और प्रीति (8 साल) कोने में बैठे काँप रहे थे।
सोनू धीरे से बोला — “माँ… पापा फिर से पीकर आए हैं…”

रामू मुड़कर चीखता है —
“चुप रह बदमाश! तेरे लिए ही तो मेहनत करता हूँ!”
और फिर ज़ोर से दरवाज़ा पटककर बाहर चला गया।

दरवाज़ा बंद हुआ, पर कमरे में एक गहरा सन्नाटा छा गया।
सीमा ज़मीन पर बैठी, आँसू रोकने की कोशिश कर रही थी।
बच्चे उसके सीने से लिपट गए।

सीमा (धीरे से): “मत रो मेरे लाल… एक दिन सब ठीक होगा। तुम्हारे पापा अच्छे इंसान बनेंगे।”
प्रीति (मासूमियत से): “माँ, क्या भगवान उन्हें बदल देंगे?”
सीमा: “हाँ बेटा… भगवान सबको एक बार फिर मौका देता है — फिर से शुरू करने का…”

वो बाहर झाँकती है — आसमान में बिजली चमकती है।
शायद ऊपर कोई सुन रहा था।


---

अगले दिन की सुबह।
रामू थका-हारा शराब की दुकान के बाहर पड़ा था।
शरीर गंदा, कपड़े मैले, और जेब में एक भी पैसा नहीं।

पास से उसका दोस्त बबलू गुज़रता है —
बबलू (हँसते हुए): “अबे रामू, आज फिर पत्नी से पिटा क्या?”
रामू: “तेरी तो… जा, अपना काम देख!”

वो उठकर लड़खड़ाता हुआ घर की तरफ़ चलता है।
दरवाज़ा खोलता है — बच्चे स्कूल जाने की तैयारी में हैं।
सीमा बिना कुछ बोले रोटी बेल रही है।
चूल्हे की आँच उसके चेहरे पर पड़ रही है, पर दिल में ठंडक है।

रामू धीरे से कहता है —
“चाय बना दे।”
सीमा बिना देखे जवाब देती है — “दूध नहीं है।”
रामू कुछ पल चुप रहता है, फिर बोतल ढूँढने लगता है।
वो खाली है।

गुस्से में कुर्सी पटकता है — “हरामी औरत, कुछ नहीं बचाती!”
बच्चे डर के मारे भाग जाते हैं।
सीमा की आँखों में आँसू नहीं हैं अब — बस पत्थर जैसी शांति है।


---

शाम को।
रामू फिर से शराब के नशे में डूबा, सड़क पर चलता है।
चार लोग हँस रहे हैं, कोई गाना बजा रहा है, पर उसे सिर्फ़ आवाज़ें सुनाई देती हैं —
“निकम्मा बाप… नालायक पति…”

वो ठोकर खाता है और गिर जाता है।
सिर दीवार से टकराता है, और खून निकलता है।

दृश्य धुँधला होता है।
और अब वो सपने में है…


---

🌙 भयानक सपना

अँधेरा चारों ओर।
घर में सन्नाटा।
वो दरवाज़ा खोलता है —
सीमा फर्श पर पड़ी है, बच्चों के पास ज़हर की शीशियाँ हैं।

दीवार पर लिखा है —
“अब हमें दर्द नहीं चाहिए। अलविदा, रामू…”

रामू घुटनों पर गिर पड़ता है —
“नहीं… नहीं! मैंने गलती की… भगवान, मुझे एक मौका दे दो!”
वो चीखता है, रोता है, और अपने सीने पर हाथ मारता है।
अचानक कोई आवाज़ आती है —

“अगर तुझे सच में पछतावा है… तो अब से फिर से शुरू कर।”


---

रामू हड़बड़ाकर उठता है।
साँसें तेज़ चल रही हैं, माथे से पसीना टपक रहा है।
वो देखता है — वो ज़िंदा है!
बच्चे सो रहे हैं, सीमा चूल्हे के पास लेटी है।

वो काँपते हाथों से बच्चों के सिर पर हाथ रखता है।
पहली बार उसकी आँखों से आँसू गिरते हैं — पछतावे के आँसू।

रामू (धीरे से): “भगवान, मैं अब कभी शराब नहीं छूऊँगा… अब से मैं बदल जाऊँगा…”


---

🌅 नई सुबह

अगली सुबह रामू ने बोतल नहीं उठाई।
वो पुरानी अलमारी से कपड़े निकालता है, साफ़ करता है, इस्त्री करता है, और साइकिल लेकर निकल जाता है।
सीमा हैरान होकर देखती है —
“कहाँ जा रहे हो?”
रामू (मुस्कुराते हुए): “काम ढूँढने।”

वो बाज़ार में जाता है।
कपड़े की दुकानों पर घूमता है, माल उठाता है, और सड़कों पर कपड़े बेचने लगता है।
लोग पहले हँसते हैं —
“अरे ये तो वही शराबी है!”
लेकिन रामू अब किसी की हँसी नहीं सुनता।
वो सिर्फ़ अपने बच्चों की मुस्कान सोचता है।

शाम को जब वो घर लौटता है, उसके हाथ में पहली बार अपनी कमाई होती है — सौ रुपये।
वो नोट सीमा के सामने रखता है —
“ये बच्चों के दूध के लिए… और तुम्हारे सिलाई के लिए।”

सीमा चुप रहती है, पर उसकी आँखें सब कह जाती हैं।
वो पहली बार मुस्कुराती है।


---

रात को रामू आसमान की तरफ़ देखता है।
तारों के बीच उसे वही सपना याद आता है।
वो फुसफुसाता है —
“भगवान, शुक्रिया… तूने मुझे एक और मौका दिया — फिर से रिस्टार्ट करने का।”


---

भाग 1 समाप्त।
(अगले भाग में: “सीमा की मेहनत और रामू का संघर्ष शुरू — कपड़े की छोटी दुकान की नींव”

rajukumarchaudhary502010

बच्चे देख रहे हैं!”
सीमा ने अपनी हथेली से गाल को ढक लिया, जहाँ उसके पति का थप्पड़ अभी-अभी पड़ा था।
लेकिन रामू की आँखों में सिर्फ़ शराब का नशा था — और दिल में ग़ुस्से का लावा।

हाथ में सस्ती दारू की बोतल, होंठों पर बदबू, और ज़ुबान पर गालियाँ।

रामू (चिल्लाते हुए): “पैसे कहाँ हैं तेरे पास? बोल!”
सीमा (रोते हुए): “आज जो सिलाई की थी, बस दो सौ रुपये मिले हैं। बच्चों के लिए दूध लाना है…”
रामू: “दूध? पहले मेरा हक़! मैं इस घर का मर्द हूँ!”

वो दो सौ रुपये उसकी मुट्ठी से छीन लेता है।
सोनू (10 साल) और प्रीति (8 साल) कोने में बैठे काँप रहे थे।
सोनू धीरे से बोला — “माँ… पापा फिर से पीकर आए हैं…”

रामू मुड़कर चीखता है —
“चुप रह बदमाश! तेरे लिए ही तो मेहनत करता हूँ!”
और फिर ज़ोर से दरवाज़ा पटककर बाहर चला गया।

दरवाज़ा बंद हुआ, पर कमरे में एक गहरा सन्नाटा छा गया।
सीमा ज़मीन पर बैठी, आँसू रोकने की कोशिश कर रही थी।
बच्चे उसके सीने से लिपट गए।

सीमा (धीरे से): “मत रो मेरे लाल… एक दिन सब ठीक होगा। तुम्हारे पापा अच्छे इंसान बनेंगे।”
प्रीति (मासूमियत से): “माँ, क्या भगवान उन्हें बदल देंगे?”
सीमा: “हाँ बेटा… भगवान सबको एक बार फिर मौका देता है — फिर से शुरू करने का…”

वो बाहर झाँकती है — आसमान में बिजली चमकती है।
शायद ऊपर कोई सुन रहा था।


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अगले दिन की सुबह।
रामू थका-हारा शराब की दुकान के बाहर पड़ा था।
शरीर गंदा, कपड़े मैले, और जेब में एक भी पैसा नहीं।

पास से उसका दोस्त बबलू गुज़रता है —
बबलू (हँसते हुए): “अबे रामू, आज फिर पत्नी से पिटा क्या?”
रामू: “तेरी तो… जा, अपना काम देख!”

वो उठकर लड़खड़ाता हुआ घर की तरफ़ चलता है।
दरवाज़ा खोलता है — बच्चे स्कूल जाने की तैयारी में हैं।
सीमा बिना कुछ बोले रोटी बेल रही है।
चूल्हे की आँच उसके चेहरे पर पड़ रही है, पर दिल में ठंडक है।

रामू धीरे से कहता है —
“चाय बना दे।”
सीमा बिना देखे जवाब देती है — “दूध नहीं है।”
रामू कुछ पल चुप रहता है, फिर बोतल ढूँढने लगता है।
वो खाली है।

गुस्से में कुर्सी पटकता है — “हरामी औरत, कुछ नहीं बचाती!”
बच्चे डर के मारे भाग जाते हैं।
सीमा की आँखों में आँसू नहीं हैं अब — बस पत्थर जैसी शांति है।


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शाम को।
रामू फिर से शराब के नशे में डूबा, सड़क पर चलता है।
चार लोग हँस रहे हैं, कोई गाना बजा रहा है, पर उसे सिर्फ़ आवाज़ें सुनाई देती हैं —
“निकम्मा बाप… नालायक पति…”

वो ठोकर खाता है और गिर जाता है।
सिर दीवार से टकराता है, और खून निकलता है।

दृश्य धुँधला होता है।
और अब वो सपने में है…


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🌙 भयानक सपना

अँधेरा चारों ओर।
घर में सन्नाटा।
वो दरवाज़ा खोलता है —
सीमा फर्श पर पड़ी है, बच्चों के पास ज़हर की शीशियाँ हैं।

दीवार पर लिखा है —
“अब हमें दर्द नहीं चाहिए। अलविदा, रामू…”

रामू घुटनों पर गिर पड़ता है —
“नहीं… नहीं! मैंने गलती की… भगवान, मुझे एक मौका दे दो!”
वो चीखता है, रोता है, और अपने सीने पर हाथ मारता है।
अचानक कोई आवाज़ आती है —

“अगर तुझे सच में पछतावा है… तो अब से फिर से शुरू कर।”


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रामू हड़बड़ाकर उठता है।
साँसें तेज़ चल रही हैं, माथे से पसीना टपक रहा है।
वो देखता है — वो ज़िंदा है!
बच्चे सो रहे हैं, सीमा चूल्हे के पास लेटी है।

वो काँपते हाथों से बच्चों के सिर पर हाथ रखता है।
पहली बार उसकी आँखों से आँसू गिरते हैं — पछतावे के आँसू।

रामू (धीरे से): “भगवान, मैं अब कभी शराब नहीं छूऊँगा… अब से मैं बदल जाऊँगा…”


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🌅 नई सुबह

अगली सुबह रामू ने बोतल नहीं उठाई।
वो पुरानी अलमारी से कपड़े निकालता है, साफ़ करता है, इस्त्री करता है, और साइकिल लेकर निकल जाता है।
सीमा हैरान होकर देखती है —
“कहाँ जा रहे हो?”
रामू (मुस्कुराते हुए): “काम ढूँढने।”

वो बाज़ार में जाता है।
कपड़े की दुकानों पर घूमता है, माल उठाता है, और सड़कों पर कपड़े बेचने लगता है।
लोग पहले हँसते हैं —
“अरे ये तो वही शराबी है!”
लेकिन रामू अब किसी की हँसी नहीं सुनता।
वो सिर्फ़ अपने बच्चों की मुस्कान सोचता है।

शाम को जब वो घर लौटता है, उसके हाथ में पहली बार अपनी कमाई होती है — सौ रुपये।
वो नोट सीमा के सामने रखता है —
“ये बच्चों के दूध के लिए… और तुम्हारे सिलाई के लिए।”

सीमा चुप रहती है, पर उसकी आँखें सब कह जाती हैं।
वो पहली बार मुस्कुराती है।


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रात को रामू आसमान की तरफ़ देखता है।
तारों के बीच उसे वही सपना याद आता है।
वो फुसफुसाता है —
“भगवान, शुक्रिया… तूने मुझे एक और मौका दिया — फिर से रिस्टार्ट करने का।”


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भाग 1 समाप्त।
(अगले भाग में: “सीमा की मेहनत और रामू का संघर्ष शुरू — कपड़े की छोटी दुकान की नीं

rajukumarchaudhary502010

फिर से रिस्टार्ट (भाग 1: टूटा हुआ घर)

रात का सन्नाटा था।
आसमान में बादल गरज रहे थे, जैसे खुद भगवान भी किसी की तकलीफ़ पर रो रहे हों।
एक पुराने, मिट्टी के घर में टिमटिमाता बल्ब लटका था — कभी जलता, कभी बुझता।

अंदर से चीखें आ रही थीं।

“मत मारो रामू… बच्चे देख रहे हैं!”
सीमा ने अपनी हथेली से गाल को ढक लिया, जहाँ उसके पति का थप्पड़ अभी-अभी पड़ा था।
लेकिन रामू की आँखों में सिर्फ़ शराब का नशा था — और दिल में ग़ुस्से का लावा।

हाथ में सस्ती दारू की बोतल, होंठों पर बदबू, और ज़ुबान पर गालियाँ।

रामू (चिल्लाते हुए): “पैसे कहाँ हैं तेरे पास? बोल!”
सीमा (रोते हुए): “आज जो सिलाई की थी, बस दो सौ रुपये मिले हैं। बच्चों के लिए दूध लाना है…”
रामू: “दूध? पहले मेरा हक़! मैं इस घर का मर्द हूँ!”

वो दो सौ रुपये उसकी मुट्ठी से छीन लेता है।
सोनू (10 साल) और प्रीति (8 साल) कोने में बैठे काँप रहे थे।
सोनू धीरे से बोला — “माँ… पापा फिर से पीकर आए हैं…”

रामू मुड़कर चीखता है —
“चुप रह बदमाश! तेरे लिए ही तो मेहनत करता हूँ!”
और फिर ज़ोर से दरवाज़ा पटककर बाहर चला गया।

दरवाज़ा बंद हुआ, पर कमरे में एक गहरा सन्नाटा छा गया।
सीमा ज़मीन पर बैठी, आँसू रोकने की कोशिश कर रही थी।
बच्चे उसके सीने से लिपट गए।

सीमा (धीरे से): “मत रो मेरे लाल… एक दिन सब ठीक होगा। तुम्हारे पापा अच्छे इंसान बनेंगे।”
प्रीति (मासूमियत से): “माँ, क्या भगवान उन्हें बदल देंगे?”
सीमा: “हाँ बेटा… भगवान सबको एक बार फिर मौका देता है — फिर से शुरू करने का…”

वो बाहर झाँकती है — आसमान में बिजली चमकती है।
शायद ऊपर कोई सुन रहा था।


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अगले दिन की सुबह।
रामू थका-हारा शराब की दुकान के बाहर पड़ा था।
शरीर गंदा, कपड़े मैले, और जेब में एक भी पैसा नहीं।

पास से उसका दोस्त बबलू गुज़रता है —
बबलू (हँसते हुए): “अबे रामू, आज फिर पत्नी से पिटा क्या?”
रामू: “तेरी तो… जा, अपना काम देख!”

वो उठकर लड़खड़ाता हुआ घर की तरफ़ चलता है।
दरवाज़ा खोलता है — बच्चे स्कूल जाने की तैयारी में हैं।
सीमा बिना कुछ बोले रोटी बेल रही है।
चूल्हे की आँच उसके चेहरे पर पड़ रही है, पर दिल में ठंडक है।

रामू धीरे से कहता है —
“चाय बना दे।”
सीमा बिना देखे जवाब देती है — “दूध नहीं है।”
रामू कुछ पल चुप रहता है, फिर बोतल ढूँढने लगता है।
वो खाली है।

गुस्से में कुर्सी पटकता है — “हरामी औरत, कुछ नहीं बचाती!”
बच्चे डर के मारे भाग जाते हैं।
सीमा की आँखों में आँसू नहीं हैं अब — बस पत्थर जैसी शांति है।


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शाम को।
रामू फिर से शराब के नशे में डूबा, सड़क पर चलता है।
चार लोग हँस रहे हैं, कोई गाना बजा रहा है, पर उसे सिर्फ़ आवाज़ें सुनाई देती हैं —
“निकम्मा बाप… नालायक पति…”

वो ठोकर खाता है और गिर जाता है।
सिर दीवार से टकराता है, और खून निकलता है।

दृश्य धुँधला होता है।
और अब वो सपने में है…


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🌙 भयानक सपना

अँधेरा चारों ओर।
घर में सन्नाटा।
वो दरवाज़ा खोलता है —
सीमा फर्श पर पड़ी है, बच्चों के पास ज़हर की शीशियाँ हैं।

दीवार पर लिखा है —
“अब हमें दर्द नहीं चाहिए। अलविदा, रामू…”

रामू घुटनों पर गिर पड़ता है —
“नहीं… नहीं! मैंने गलती की… भगवान, मुझे एक मौका दे दो!”
वो चीखता है, रोता है, और अपने सीने पर हाथ मारता है।
अचानक कोई आवाज़ आती है —

“अगर तुझे सच में पछतावा है… तो अब से फिर से शुरू कर।”


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रामू हड़बड़ाकर उठता है।
साँसें तेज़ चल रही हैं, माथे से पसीना टपक रहा है।
वो देखता है — वो ज़िंदा है!
बच्चे सो रहे हैं, सीमा चूल्हे के पास लेटी है।

वो काँपते हाथों से बच्चों के सिर पर हाथ रखता है।
पहली बार उसकी आँखों से आँसू गिरते हैं — पछतावे के आँसू।

रामू (धीरे से): “भगवान, मैं अब कभी शराब नहीं छूऊँगा… अब से मैं बदल जाऊँगा…”


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🌅 नई सुबह

अगली सुबह रामू ने बोतल नहीं उठाई।
वो पुरानी अलमारी से कपड़े निकालता है, साफ़ करता है, इस्त्री करता है, और साइकिल लेकर निकल जाता है।
सीमा हैरान होकर देखती है —
“कहाँ जा रहे हो?”
रामू (मुस्कुराते हुए): “काम ढूँढने।”

वो बाज़ार में जाता है।
कपड़े की दुकानों पर घूमता है, माल उठाता है, और सड़कों पर कपड़े बेचने लगता है।
लोग पहले हँसते हैं —
“अरे ये तो वही शराबी है!”
लेकिन रामू अब किसी की हँसी नहीं सुनता।
वो सिर्फ़ अपने बच्चों की मुस्कान सोचता है।

शाम को जब वो घर लौटता है, उसके हाथ में पहली बार अपनी कमाई होती है — सौ रुपये।
वो नोट सीमा के सामने रखता है —
“ये बच्चों के दूध के लिए… और तुम्हारे सिलाई के लिए।”

सीमा चुप रहती है, पर उसकी आँखें सब कह जाती हैं।
वो पहली बार मुस्कुराती है।


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रात को रामू आसमान की तरफ़ देखता है।
तारों के बीच उसे वही सपना याद आता है।
वो फुसफुसाता है —
“भगवान, शुक्रिया… तूने मुझे एक और मौका दिया — फिर से रिस्टार्ट करने का।”


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भाग 1 समाप्त।
(अगले भाग में: “सीमा की मेहनत और रामू का संघर्ष शुरू — कपड़े की छोटी दुकान की नींव”

rajukumarchaudhary502010