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🙏🙏જીંદગીનો "જય શ્રી રામ થી હે રામ" સુધીનો સફર 'રામના સિદ્ધાંત' મુજબ થોડું પણ જીવવામાં આવે તો જીવન સફળ છે.🦚🦚

🚩 વિજયાદશમીના પાવનકારી પર્વની સર્વને શુભેચ્છાઓ 🚩

parmarmayur6557

વિજ્યાદશમીની શુભકામના ઓ 🙏🏼જય માતાજી 🙏🏼

aryvardhanshihbchauhan.477925

डिजिटल रावण दहन

देवियो, सज्जनों, असुरों और असुरणीयों,
आज दशहरा है—
जहाँ रावण जलाने से पहले
लोग सबसे पहले सेल्फी जलाएँगे।

कौन राम है कौन रावण?
ये अब DNA रिपोर्ट से नहीं,
ट्रेंडिंग हैशटैग से तय होगा।
राम वही होगा
जिसके पास फॉलोअर्स की सेना होगी,
और रावण वही—
जो आपकी पोस्ट पर डिसलाइक ठोक देगा।

आज सब मिलकर बुराई को मारेंगे—
फोटोशूट करके,
रील बनाकर,
"जय श्रीराम" कैप्शन डालकर,
और शाम तक
बुराई को "आर्काइव" कर देंगे।

पर सच कहूँ तो,
कल सुबह वही राम
किसी ठेके, किसी चुनावी वादे,
या किसी इन्बॉक्स चैट में
रावण की तरह प्रकट होंगे।

राम बने लोग
भीड़ के सामने रावण को जलाएँगे,
फिर भीड़ के पीछे
रावण की दस-दस सिरों वाली
भ्रष्ट डील, झूठ और लालसा
खुद अपने हाथों से सींचेंगे।

यहाँ हर कोई नायक है,
बस मंच बदलता रहता है—
फेसबुक पर राम,
ऑफिस में रावण,
और घर की चारदीवारी में
शायद मेघनाद तक।

आख़िरकार—
रावण अब पुतले में नहीं बसता,
वह हमारे भीतर
बायोडाटा बनाकर बैठा है,
और हम हर साल
उसे जला-जला कर
और मज़बूत करते रहते हैं।

आर्यमौलिक

deepakbundela7179

“Ravan outside is easy to burn,
Ravan within is the real battle.
#VijayaDashami #Inspiration

dhirendra342gmailcom

Good morning everyone

skmehta2906gmail.com343121

ममता गिरीश त्रिवेदी की कविताएं

mamtatrivedi444291

Good morning friends have a great day

kattupayas.101947

Maa ke bina zindagi adhoori si lagti hai,
Uski muskurahat mein hi khushi chhupi hoti hai.

Ek ma hona, kitna mushkil hai raat bhar jagna,
Uski god mein hi toh har gham ko sukoon milta hai.

Dard hote huye bhi, khud ko sambhalti hai,
Bachpan se le kar jawaani tak har mod pe saath chalti hai.

Bhook lagi ho, par pehle bache ko khilana,
Uski mamta mein hi toh poori duniya ka khazana.

Maa sirf ek rishta nahi, ek ehsaas hai,
Jo har saans mein, har dua mein, har aas m paas hai.

by---Naina

nainakhan1201

🙏🎉🎂🇮🇳🎂🎉🙏

mitra1622

Happy Dashera

mitra1622

✨🌸 New Chapter LIVE! 🌸✨

The journey of Niyati: The Girl Who Waited – 12 continues… 💕

A tale of love, hope, and silent strength that grows deeper with every chapter.
In this new part, memories resurface, emotions intensify, and destiny takes another turn. 🌙 Will Niyati’s patience lead her to joy, or new challenges?

📖 Read now:
https://www.matrubharti.com/book/19982333/niyati-the-girl-who-waited-12-by-nensi-vithalani

nensivithalani.210365

જય શ્રીરામ 🚩🙏

jighnasasolanki210025

🙏💐

jighnasasolanki210025

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rajukumarchaudhary502010

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rajukumarchaudhary502010

My Tamil novel "ஒரு தேவதை பார்க்கும் நேரம் இது" published in Amazon Kindle for 2 dollars price. if you are interested please purchase it. please spread this and share with your friends (oru devathai paarkkum neram idhu)

kattupayas.101947

दूरी का धोखा — भीतर छिपा भगवान ✧

आध्यात्मिक विषयों को अक्सर इतने कठिन, कठोर और दूरस्थ बताया जाता है कि साधारण मनुष्य के लिए वे असंभव प्रतीत होने लगते हैं। यह भ्रम फैलाया गया है कि आत्मा की साधना केवल विशेष तपस्या या अत्यधिक कठोर अनुशासन से ही संभव है।

इसी कारण सामान्य जनता इस मार्ग को इतना कठिन मान बैठती है कि वे केवल पूजा-अर्चना, जय-जयकार और आरती तक सीमित रह जाती है। वास्तविक आत्म-बोध या समाधि की ओर दृष्टि डालने की हिम्मत ही नहीं कर पाती।

परन्तु सच्चाई यह है कि हर महान साधक, हर ज्ञानी आत्मा साधारण परिस्थितियों से ही जन्मा है। न कोई विशेष धन, न सुविधाएँ, न ऊँची शिक्षा — फिर भी उन्होंने अपने भीतर की संभावना को पहचानकर जीवन का उच्चतम लक्ष्य प्राप्त किया।

इसका संदेश साफ़ है: हर मनुष्य के भीतर वही संभावना मौजूद है। “असंभव” कहना ही आत्मा के विकास का पहला और सबसे बड़ा अवरोध है। जब हमें कहा जाता है कि यह मार्ग केवल विशिष्टों के लिए है, तो हम अपने ही भीतर की हकीकत से विमुख हो जाते हैं।

यही कारण है कि आत्मा, समाधि और परमात्मा को सातवें आसमान पर बिठा दिया गया है, जबकि उनका संबंध हमारे साधारण जीवन से ही है।

वास्तव में आत्मा बीज के समान है, जो पहले से हमारे भीतर है। उसके अंकुरण के लिए दूर-दराज़ की यात्रा या असाधारण तपस्या की ज़रूरत नहीं है। प्रकृति स्वयं उस बीज को सहारा देती है। हमें बस अपने भीतरी स्वभाव को समझना और जागरूक होना है।

लेकिन जब मन में यह कर्ता-भाव बैठा दिया जाता है — “मुझे यह करना होगा, यह तपस्या करनी होगी, ये कठिनाइयाँ झेलनी होंगी” — तब हम खुद को असहाय मानने लगते हैं। यही भ्रम असली बाधा बनता है।

सत्य यह है कि आत्मा का विकास हर व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है। यह केवल उन लोगों का विशेषाधिकार नहीं है जो कठोर तपस्या करते हैं। जब हम “असंभव” के भ्रम को त्याग देंगे और अपने भीतर की संभावना को स्वीकार करेंगे, तभी वास्तविक आध्यात्मिक उन्नति संभव हो सकेगी।

अध्याय : दूरी का धोखा — भीतर छिपा भगवान ✧

सूत्र 1.
धर्म ने आत्मा की तस्वीरें इतनी कठोर और असंभव बनाई कि आम आदमी को लगा — “यह हमारे बस का नहीं।”
➝ कठिन तपस्या और कठोर चित्र साधारण आदमी को शुरुआत में ही हरा देते हैं।

सूत्र 2.
जनता से कहा गया — बस देखो, नमन करो, जय-जयकार और आरती करो।
➝ मार्ग को असंभव बताकर पूजा ही धर्म बना दी गई।

सूत्र 3.
पर सच यह है कि कोई भी असाधारण पैदा नहीं होता। हर महान व्यक्ति साधारण, गरीब, अनपढ़ घर में जन्मा।
➝ असाधारण बनने की शुरुआत साधारणता से ही होती है।

सूत्र 4.
न धन, न सुख, न पद, न शिक्षा — साधारण मिट्टी से ही असाधारण खिले।
➝ सुविधा या संपत्ति नहीं, संघर्ष ही संभावना जगाता है।

सूत्र 5.
हर इंसान समान संभावना लेकर जन्म लेता है।
➝ किसी के भीतर कमी नहीं; फर्क बस जागरण का है।

सूत्र 6.
“असंभव” कहना ही आत्मा-विकास का पहला अवरोध है।
➝ जब शुरुआत में ही हार मान ली, तो बीज अंकुरित कैसे होगा?

सूत्र 7.
जब धर्म कहे — “वे पहुँच गए, पर तुम्हारे लिए असंभव है,” तो जनता पूजा में ही धर्म मान लेती है।
➝ पूजा आसान है, खोज कठिन लगती है।

सूत्र 8.
इसलिए समाधि, आत्मा, ईश्वर की बात सोचना भी असंभव-सा लगने लगता है।
➝ विषय को सातवें आसमान पर टाँग देने से इच्छा भी मर जाती है।

सूत्र 9.
आध्यात्मिक विषयों को सातवें आसमान पर टाँग दिया गया है।
➝ दूरी पैदा करना ही धर्म-सत्ता की चाल है।

सूत्र 10.
पर सच यह है कि इच्छा ही बीज है, और बीज भीतर है।
➝ कोई यात्रा बाहर नहीं, शुरुआत भीतर के बीज से है।

सूत्र 11.
बीज के लिए कोई अलग यात्रा नहीं करनी पड़ती; प्रकृति सब सहयोग देती है।
➝ जैसे बीज को अंकुरित होने के लिए मिट्टी, जल, सूर्य स्वाभाविक रूप से मिलते हैं।

सूत्र 12.
धर्म ने दृष्टि में कर्ता-भाव भर दिया — “इतना करना होगा, तपस्या करनी होगी, दुख उठाने होंगे।”
➝ कर्ता-भाव वही दीवार है जो सहज जागरण को रोक देता है।

सूत्र 13.
यही दृष्टि आदमी को असहाय बना देती है।
➝ जब भीतर भरोसा नहीं, तो बाहर सहारे ढूँढने ही पड़ते हैं।

सूत्र 14.
असहाय होकर वह पाखंड की शरण में चला जाता है और आगे सोच नहीं पाता।
➝ असली यात्रा रुकी रहती है, और जीवन पूजा में खो जाता है।
Agyat Agyan

bhutaji

टूटकर भी आदमी जी लेता है

टूटकर भी आदमी जी लेता है,
जैसे आधी रात के सन्नाटे में
टूटा हुआ चाँद
फिर भी उजाला बाँट देता है,
जैसे सूखे वृक्ष पर
कहीं दूर टहनी में
एक हरा पत्ता
अब भी सांस लेता है।

वह टूटता है भीतर ही भीतर,
उसके सपने बिखरते हैं
कांच की तरह ज़मीन पर,
पर बाहर से वह मुस्कुराता है—
क्योंकि घर की चौखट पर
रोते हुए चेहरे का कोई मूल्य नहीं होता।

आदमी टूटा तो बहुत बार है,
बेवफ़ा रिश्तों की चोट से,
समाज की कटु निगाहों से,
रोज़ी-रोटी की भागदौड़ में
कुचले हुए अरमानों से।
फिर भी हर सुबह
वह आँखें खोलता है,
अपने बच्चों की हँसी के लिए,
अपने माँ-बाप की दवा के लिए,
अपने जीवन की जिम्मेदारियों के लिए।

टूटकर भी आदमी जी लेता है—
क्योंकि उसे जीना पड़ता है।
उसके आँसू किसी को दिखाई नहीं देते,
वह उन्हें तकिए के नीचे दबा देता है,
रातें करवटों में काट देता है,
और सुबह वही चेहरा पहन लेता है
जो दुनिया देखना चाहती है।

उसकी आत्मा जब-जब चूर होती है,
तब-तब वह भीतर से
और कठोर बनता जाता है,
जैसे आग में तपकर
लोहे की धार और तेज़ हो जाए।

आदमी टूटकर भी जी लेता है,
क्योंकि उसके भीतर कहीं
उम्मीद की एक छोटी लौ
अब भी झिलमिलाती रहती है,
क्योंकि वह जानता है—
अंधेरा चाहे कितना भी घना हो,
भोर का उजाला
कभी बुझता नहीं।

आर्यमौलिक

deepakbundela7179

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A H☠️RROR ST👺RY....💀💀💀

hardik89

✧ भोग और बोध का रहस्य ✧

✍🏻 — 🙏🌸 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲


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प्रस्तावना

धर्म हमेशा या तो भोग के खिलाफ खड़ा दिखता है, या बोध को भविष्य में टाल देता है।
गुरु और शास्त्र मार्ग बेचते हैं—लंबी यात्रा, तपस्या, नियम, पाप–पुण्य की गिनती।
पर जीवन की सच्चाई सरल है:
भोग और बोध दो विरोधी नहीं, एक ही धारा के दो पहलू हैं।

भोग अगर अंधा है, तो बंधन है।
भोग अगर जागरूक है, तो वही प्रसाद है।
बोध अगर जीवन से भागा हुआ है, तो सूखा है।
बोध अगर जीवन को जीकर खिला है, तो वही मोक्ष है।

यह ग्रंथ इसी रहस्य को खोलता है।


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✧ अध्याय 1: ईश्वर पाने का प्रश्न ही क्यों गलत है?

लोग पूछते हैं: “ईश्वर कैसे मिलेगा?”
पर यह प्रश्न ही पहली भूल है।
क्योंकि पाने का मतलब है—ईश्वर कोई बाहर की वस्तु है।

सत्य यह है:
ईश्वर कोई वस्तु नहीं, कोई उपाधि नहीं।
ईश्वर = जीवन।
और जीवन पहले से भीतर है।

तो सही प्रश्न है: क्या मैं सचमुच जी रहा हूँ?

शास्त्र-संकेत:

“नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यः…” (कठोपनिषद् 1.2.23)

कबीर: “मोको कहाँ ढूँढे रे बन्दे, मैं तो तेरे पास में।”



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✧ अध्याय 2: जीना ही मोक्ष है

जो जीवन को नहीं जीता, उसे लगता है: “मोक्ष शेष है, ईश्वर अभी पाना है।”
पर जिसने जीवन को गहराई से जिया, वह जानता है: जीवन ही मोक्ष है।

मोक्ष कोई भविष्य नहीं, यह वर्तमान का स्वाद है।
हर अनुभव में उतरकर, हर सुख–दुःख को बोध से जीकर—
यही मुक्ति है।

शास्त्र-संकेत:

“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।” (गीता 2.47)

बुद्ध: “अप्प दीपो भव।”



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✧ अध्याय 3: पाप–पुण्य की भ्रांति

धर्म कहता है: “यह पाप है, यह पुण्य।”
पर असली कसौटी सिर्फ एक है—बोध।

गलती = पाप नहीं।
बिना बोध के जीना = पाप।
अनुभव से जागना = पुण्य।

शास्त्र-संकेत:

रैदास: “मन चंगा तो कठौती में गंगा।”

कबीर: “जिन खोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ।”



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✧ अध्याय 4: भोग से बोध तक

भोग का असली अर्थ है: हिस्सा, अंश, प्रसाद।
जब भोग अज्ञान में है, तो वह नशा और बंधन है।
जब भोग बोध के साथ है, तो वह प्रसाद और मुक्ति है।

भोग + अज्ञान = गिरावट।
भोग + बोध = उत्थान।

शास्त्र-संकेत:

“यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति।” (गीता 2.52)

संत वाणी: “भोग भोग में बोध हो, तो भोग न बंधन होय।”



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✧ अध्याय 5: त्याग का असली अर्थ

धर्म त्याग को आयोजन बना देता है—
नियम, व्रत, घोषणा।
पर त्याग कोई आयोजन नहीं, त्याग = परिणाम है।

जब बोध आता है, इच्छाएँ अपने आप झर जाती हैं।
जैसे पका फल पेड़ से गिरता है।
विकास का संकेत त्याग है, ज़बरदस्ती नहीं।

शास्त्र-संकेत:

“त्यागो हि परमो धर्मः।” (गीता 18.66 भाव)

“यदा सर्वे प्रमुच्यन्ते कामा…” (कठोपनिषद् 2.3.14)



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✧ अध्याय 6: जीवन = भोग और संन्यास का खेल

भोग और संन्यास विरोधी नहीं।
जीवन एक धारा है—हर पल भोग, हर पल संन्यास।
पूरा जिया हुआ भोग अपने आप संन्यास बन जाता है।
और संन्यास में नया भोग जन्म लेता है।

जीवन = नृत्य।
भोग और संन्यास दोनों इस नृत्य के कदम हैं।

शास्त्र-संकेत:

“क्षणे क्षणे यन्नवतामुपैति…” (योगवाशिष्ठ)

बुद्ध: “अनित्य”—हर क्षण नया जीवन।



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समापन

भोग और बोध दो विरोधी नहीं।
भोग में बोध हो तो वही प्रसाद है, वही संन्यास है।
त्याग तब होता है जब आत्मा खिलती है, जब जीवन सच में जिया जाता है।

ईश्वर कोई पाने की चीज़ नहीं,
वह तो जीने की कला है—अभी, यहीं।

जीवन ही मोक्ष है।
भोग ही मार्ग है।
और बोध ही उसका रहस्य

bhutaji

आज अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस है। यह दिवस वृद्धजनों की उचित देखभाल और उनके सम्मान के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।

अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस दुनिया भर के बुजुर्ग नागरिकों के लिए एक खास दिन है। 14 दिसंबर, 1990 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस घोषित किया था। पहला अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस 1 अक्टूबर, 1991 को मनाया गया था। तभी से यह दिवस पूरे विश्व में मनाया जाता है।

सभी वृद्धजनों को हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए प्रस्तुत है मेरी एक रचना 🙏🙏

बुजुर्ग
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घर की शान बढ़ाते हैं
ये वृद्ध ,बूढ़े और बुजुर्ग
हमसाया बन जाते हैं
यह वृद्ध ,बूढ़े और बुजुर्ग
बचपन कभी सवारां था
इन झुर्रियों भरे हाथों ने
प्रेम से पाला था कभी देकर
दुलार का प्याला ।

अपना सर्वस्व न्यौछावर करके
गमों में भी मुस्कुराते रहे
बच्चों की खातिर अपना जीवन
लुटाते रहे
उनकी खुशी में मुस्कुराते रहे
उनके गमों में आँसू बहाते रहे।
वक्त ने छीन लिया अब इनका यौवन
ये बुजुर्ग अब वृद्ध नजर आने लगे
कुछ को मिला घर में सम्मान
और कुछ वृद्धाश्रम जाने लगे।

तकदीर का खेल है निराला
बच्चे इनसे नजर चुराने लगे
ये अपने बुढ़ापे से लाचार
खुद से समझौता कर
जीवन अपना बिताने लगे।
बस इन्हें थोड़ा सा मान- सम्मान चाहिए
नाती -पोतों का प्यार चाहिए
अपने जीवन के अनुभवों की झोली
विरासत में दे जाएँ ऐसा अपनो का साथ चाहिए
कुछ नही इन्हे बस थोड़ा सा प्यार चाहिए ।

आभा दवे
मुंबई

daveabha6